गुरुवार, 25 अक्तूबर 2007

गाव के कुछ मजेदार किसे

बहुत दिन से हम कुछुओ नईखी लिखले, आज सागर भईया, बोलनी हा कि व्यंग लिख... त हम ई सोचनी हा कि ठीक बाती बा, हम्हु व्यन्गो के अजमाई लेतानी, का जाने की लिखे आईये जाऊँ,लेकिन ई बाती बा की, हमरा आजु ले ना बुझाईल की ई आखिर व्यंग होला का?काहे कि कौनु कौनु बतिया प जब कुल्हिये लोग हँसेला हमरा हँसिये ना आवेला, अरू कौनु कौनु बतिया प हमरा अतना हँसी आवेला अवरू केहुके आईबे ना करेला।अब ई बाती से हम बड़ी मुश्किल मे पड़ी गईल बानी कि आखिर ई व्यंग होला का? अब ई केहु समझाई दी ही तबे नु हमहूँ व्यंग लिखबी, तबले हम एगो मजेदार किसा बता देत बानी...का जाने कि इहे व्यंग होखे...

हाँ कुछु कहे के पहिले ईहो बता देत बानी की, ई किसा हम कबो अपना आँखिन नईखी देखले, बस सुनल सुनावल बतिया हटे-

हमरा बलिया जिला मे एगो गाँव बा, ओकर नाम ह मझऊँआ गाँव, ओजुगा के बारे मे किसा ह कि,
एक हाली, एगो भईस एगो कूँआ मे गिरी गईली, अब गाँव के लोग का कईल कि, घासी बटोर के, भईसिया के देखावे लागल...

चु चु... आ जा... अर्रे आ जा ना....

लेकिन भईसिया ना आईल... गऊआ के लोगवा के सामने ही भईसिया डूबी गईल... अरू गऊँवा के लोग कहे लागल कि, लागत रहल हा कि... बुझात रहल हा कि भईसिया के ढ़ेरे पियासी लागी गई रहल हा... एसे ऊ खाना खाये ना आके पानी पिये चली गईली हा..... ।


:D

अभी ई किसा निमन लागि तो फेरू ऐसन एगो किसा ले के आईबी...:)

गुरुवार, 2 अगस्त 2007

प्यार इश्क और मुहब्बत

प्यार इश्क मुहब्बत...कई लोगो को यह सुनते ही बदन मे झुरहुरी सी पैदा होने लगती है, तो कुछ लोग दर्द मे डुब जाते है, कितनो के लिये यह कड़ा इम्तेहान है, और कुछ लोग इससे नज़र बचाकर निकल जाने मे ही भलाई समझते हैं।
आज अपने एक दोस्त से बात कर रही थी, हमारी बात मजाक से शुरू हुई, उस व्यक्तव्य के साथ और दोस्तो के विचार भी मिलते गये, और हम हँसते हँसते ना जाने कहाँ तक पहुँच गये।
बात किस मोड़ निकली और कहा गयी, यह जानना उतना जरूरी नही है, लेकिन मुझे अपनी बात शुरू करने के पहले अपने उन दोस्तो को धन्यवाद कहना उचित लग रहा है जिनके कारण बात सकरात्मक मोड़ तक आयी।

अब मुद्दे पर आती हूँ।
जी बात कर रही हूँ प्यार की... आखिर होता क्या है प्यार.. सिर्फ किसी को देखा, प्रारम्भिक बात चीत हुई, और कुछ लगा कि हाँ उसके मन मे मेरे प्रति कुछ है, और इजहारे इश्क कर दिया!
तभी पता चलता है कि अर्रे रे रे ऐसा तो कुछ था ही नही, फिर दिल टुट गया, सार कुसुर सामने वाले को दे दिया...
या किसी से आपकी दोस्ती हूई आपके अच्छे बुरे वक्त मे उसने आपका साथ दे दिया, आपसे दोस्ती निभाई और आपने उसे प्यार का नाम दे दिया... उसके कहने पर कि यह सिर्फ दोस्त होने के नाते कहा था... आपके दिल को बहुत चोट आ गयी.. आखिर क्युँ ना आये.. आपको उससे प्यार जो हो गया था!!!
अपने दोस्त को कुछ भी कहने से पहले ध्यान दिजियेगा... आपके दोस्त ने दोस्ती निभाई, आपको गलतफहमी हुई उसमे उसकी क्या गलती...

मै मुद्दे से भटक ना जाऊ इसलिये इसे यही छोड़कर आगे चलती हूँ
या प्यार यह होता है कि एक साथ जीने मरने की कसमे तो खा ली, लेकिन जब साथ जीने मरने का वक्त आ गया तो समाज के डर, माँ बाप के कारण बीच मझधार मे ही साथ छोड़कर चले गये.... और उम्र भर अपने किस्मत पर रोते रहे....
या फिर अपने प्यार के खातिर सबकुछ छोड़कर निकल आये... लेकिन वक्त जब अपने साथी के साथ देने का आया, घरवालो पर कोई मुसीबत आयी तो आराम से कह दिया.. मै ऐसा नही चाहता था/चाहती थी। यह तो बस इनके कहने मे आकर अपने घरवालो को भूल गये।
यह तो हुआ दो जोड़ो के बीच मे पनपने वाले प्यार की बात... (मुझे कभी नही हुआ इसलिये कोई तजुर्बा नही है, कही गलत बोला हो तो माफी चाहती हूँ)
अब आगे मै जिस प्यार के बारे मे बात करना चाहती हूँ, वह है प्राणी मात्र के दिल मे पलने वाला प्यार।
वह प्यार जो हरेक शख्स के दिल मे अपने लिये, अपने वतन के लिये, अपने घर वालो के लिये, अपने दोस्तो के लिये पलता है, वक्त के साथ बढ़ता है, और इसका अंत हमारी ही बेवकूफी के कारण हो जाता है।
हम सब एक दुसरे को किसी ना किसी निगाह से चाहते हैं, पसन्द करते हैं, पर कह नही पाते... ऐसा क्यूँ?
मेरे एक दोस्त ने कहा कि.. आज के जमाने मे यह शब्द बहुत खतरनाक साबित हो सकता है, बहुत सोच सम्भल के इसका इस्तेमाल करना चाहिये!!
सोच सम्भल के!!! हाँ सच हमने अपने आप को इतना सम्भाल लिया है कि.. दोस्त अपने दोस्त से अपने प्यार का इजहार नही कर सकता... क्या दोस्तो के बीच प्यार नही होता, दुश्मनी होती है?
अपने भारत आम तौर पर कोई माँ-बाप अपने बच्चे से अपने प्यार का इजहार नही करते!!!
भाई बहन से नही करते!!!
आप देख लिजिये फिल्मो मे जितने भी दिल-विल, प्यार-मुहब्बत पर गाने बाने हैं, वो सब सिर्फ दो आशिको को दर्शाते हैं
क्या प्यार इतना संकुचित हो चुका है?
प्यार जिसके आधार पर सारी दुनिया बनी है, जिसकी बुनियाद पर ही कोई रिश्ता कायम रह सकता है... वो इतना अधुरा... इतना खोखला !!!
अपने आप से पुछना पड़ेगा? यहाँ जो वरिष्ठ लोग हैं... वो अपने दिल से पुछे.. क्या अपने बच्चो से आप प्यार नही करते? अगर करते हैं, तो कहने मे कैसी झिझक है?
युवा वर्ग अपने आप से पुछे वो अपने माँ-बाप से प्यार नही करते? फिर शर्म कैसी?
आज तक आप अपने प्यार का इजहार क्यो नही कर सके....?
मेरे दोस्त के अनुसार यह बहुत गम्भीर समस्या है, शायद हम लोगो मे से बहुतो के लिये यह एक गम्भीर समस्या है... पर.. इतना भी जटिल नही...
बस एक शब्द, आपके अपनो की जिन्दगी मे बहार ला सकने मे सक्षम है... शायद हमने इस बात को महसुस नही किया... पर जरूरत है कि अब इस बात हम समझे... और अपनो के लिये अपने प्यार को प्रदर्शित करें।
बहुत लोग यह तर्क देते है कि प्यार को इजहार करने की जरूरत नही... अ र्रे यह तर्क अपने प्रेमिका पर फिट नही बैथता, बाकि हर रिश्ते पर फिट बैठता हैं, आखिर क्युँ?
यही नही कुछ लोग तो अपनी बीवी से भी अपने प्यार का इजहार नही करते, और जब रिश्तो मे दरार पड़ने लगती है तो सार कुसुर उसी को दे देते हैं।
इतना संकोच......!!!
अब जरूरत है नये पहल की... आगे बढ़ें और प्यार को संकुचित दायरे से निकालकर, उसके कण कण मे खुद को डुबायें।
अपने प्यार को सही तरीके से समझे, जाने और उसे अपने जिन्दगी मे उतारे... तभी जिन्दगी प्यार से भरी-पूरी और खुशहाल बनेगी...
कहिये आपका क्या कहना है!!!

मंगलवार, 17 जुलाई 2007

"मै भी कुछ लाऊँ" - 2

पिछली पोस्ट मै भी कुछ लाऊँ मे अधुरी कलेक्शन रह गयी थी, आज इसे पुरा करने के कोशिश मे हूँ, मेरी आधी अधुरी कलेक्शन और बक बक को बर्दाश्त करने के लिये, सागर भईया, जोशी भईया (जो कि मेरे बक बक के आदी हो चुके हैं), सुनीता जी, समीर जी, Divine_India, अनुप जी, और काकेश जी का दिल से शुक्रिया करती हूँ, और आगे भी आप मेरी बकबक और कलेक्शन को बर्दाश्त करेंगे ऐसा निवेदन कर रही हूँ।





ये रहे पिरमिड्स जो कि मै चिकित्सा के दौरान उपयोग मे लाती हूँ, वैसे ये जरूरत के हिसाब से कई रंगो मे बनवाना होता है।

बाजार मे कयी तरह के रंग बिरंगे और तरह तरग के धातु कृस्टल के पिरमीड आराम से मिल जाते हैं, पर मुझे यह खुद के बनवाये प्लाई के पिरमिड ही पसन्द है, क्योकि मै इन्हे अपने हिसाब ऊर्जांवित कर सकती हूँ।

जीवन ऊर्जा पर पिरामीड थेरेपी जिन्होने पढ़ा होगा वो इसके महत्व को अच्छी तरह से समझ जायेंगे।


मुख्यतः पीले, नीले, सफेद, गुलाबी और हरे रंग के पिरामीड ज्यादा चलन मे होते है।



ये हैं जिरकॉन, पिछले पोस्ट मै भी कुछ लाऊँ पर गोल्डेन जिरकॉन का जिक्र किया था मैने... इस बार अलग अलग फोटु डालने से बचने के लिये एक साथ सभी को इक्ट्ठा कर लेना ज्यादा अच्छा लगा। ( फोटु मे रंग कुछ अजीब से आये है, मैने बहुत कोशिश की अच्छे से लेने के लिये पर ये जैसे के तैसे ही रहे)


सबसे ऊपर हरा जिरकॉन, यह भाग्योदय, पैसे के लिये भी पहना जाता है, चिकित्सा क्षेत्र मे इसका उपयोग सावधानी से किया जाना चाहिये, वरना चिकित्सक की एक गलती मरीज के लिये भारी पड़ सकती है, हरे रंग की मानसिक किरणे सभी मरीजो पर अच्छा प्रभाव नही डालती इसलिये सोच विचार कर ही इसका उपयोग करें, वैसे कुछ बिमारीयों मे इसका अपना महत्व है।


फिर बारी है काले हकीक की, चुँकि जिरकॉन काले रंग मे आता ही नही है, इसलिये यहाँ हकीक से ही काम चलाना पड़ता है, काला रंग यह किसी चिकित्सा मे काम नही आता है बल्कि, चिकित्सा के दौरान पैदा हूई नकरात्मक प्रभाव को अपने अन्दर अवशोषित करता है, इसका विशेष उपयोग कैंसर जैसी भयानक बिमारियों के चिकित्सा के समय होता है।

बैंगनी रंग का अपना कोई खास महत्व नही होता बल्कि यह अन्य रंगो के साथ मिलकर काम करता है। पर यह अपना पुरा सहयोग देता है, जिसे नजर-अन्दाज करना पागलपन ही होगा।


तत्पश्चात नीला जिरकॉन, यह अपने आपमे सात्विक धारा को प्रवाहित करता है। दिमाग स्थिर रखता है, नकरातमक भावनाओ को मिटाता है, और चिकित्सा क्षेत्र मे तो इसके बिना कुछ हो ही नही सकता है, बिमारी कोई भी हो, नीला जिरकॉन जरूर दिया जाता है।


उसके बाद है गुलाबी जिरकॉन, गुलाबी रग के प्रभाव से कौन परिचित नही है, मेरा अपना प्रयोग है कि दो लोगो को एक ही तरंग से ऊर्जांवित किया हुआ गुलाबी जिरकॉन पहनाया जाय, उनमे आपस मे होने वाले द्वेष को आराम से कम करते हुए क्रमशः मिटाया जा सकता है।

वैसे दिमागी संतुलन के वक्त यह काम मे आता है।


सफेद जिरकॉन यह तो साधरणतया दुसरे रंगो के साथ मे दिया जाता है, जैसे कि अगर किसी शक्स को गोल्डेन हीलीग चल रही है, और उसके कारण उष्मा की मात्रा बढ रही हो तो उसे सफेद जिरकॉन दिया जाता है।
यह शांति का भी प्रतीक है, उग्र स्वभाव वाले व्यक्ति को भी श्वेत चिकित्सा देते हैं, औरा बैलेंसिंग मे भी श्वेत जिरकॉन का अपना महत्व है, वैसे कई हीलर्स ऐसा मानते हैं कि सफेद रंग का उपयोग नही करना चाहिये, पर मै पिछले कई सालो से सफेद जिरकॉन को प्रयोग मे ला रही हूँ, और मुझे इसका कोई दुष्प्रभाव नही दिखा, बल्कि कई परेशानियों का समाधान इसके बिना मुश्किल ही नही नामुमकिन हो जाता है।


फिर लाल जिरकॉन चिर परिचित अन्दाज मे, यह शक्ति को सम्बोधित करते हैं, जो इंसान अपनी सहज भावुकता से परेशान होते हैं इसका उपयोग कर सकते हैं, चिकित्सा के क्षेत्र मे इसकी भुमिका अलग अन्दाज मे है, जिस किसी बिमारी मे रक्तवर्णी चिकित्सा दी जाने वाली हो, इसे सबसे ऊपर रखते हैं।


और बीच मे आपका जाना पहचान गोल्डेन जिरकॉन जिसके बारे मे पहले ही बता दिया था :)
इनके बाद भी कई रंगो का समावेश होता है, पर यह रंग सबसे ज्यादा उपयोग मे होते है। जिरकॉन इसलिये क्योकि यह लगभग हर रंग का मिलता है, और बाकी कृस्टल्स की अपेक्षा सस्ता भी है।


विशेष- अगर कोई शक्स यह सारे रंग या औरा रीडर की मदद से अपने लिये रंगो का चुनाव करवा के ऊर्जांवित जिरकॉन अपने साथ रखे तो आने वाली कई परेशानियों से निजात मिल सकता है, पर ध्यान रहे कि कलर थेरेपी का प्रयोग अपने क्षेत्र मे मास्टर हुए चिकित्सक ही कर सकते है, चाहे वह अल्फा के हों, रेकी के, या कोई भी अन्य ऊर्जा चिकित्सक, इसलिये किसी मास्टर से ही सलाह लें।






ये है हकीक, युँ तो इनका भी वही काम है जो जिरकाँन करते हैं, पर कई लोग हकीक लेना पसन्द करतें हैं, किस कारण से, ये मुझे नही पता, सबकी अपनी अपनी दलील होती है, मैने कभी कारण जानने कि कोशिश नही की, किसी को पता हो तो अवगत करा दें :)


वैसे एक राज की बात बताऊँ तो.. अगर जिरकॉन को 8th डिग्री ऊर्जा से ऊर्जांवित किया जाये तो यह उस रंग से सबन्धित नवग्रहो पर भी काम करते हैं, मतलब की.. इन्ही से महंगे रत्नो का लाभ भी पाया जा सकता है, बशर्ते की 8th डिग्री ऊर्जा से ऊर्जांवित किया जाये। :)









खि खि.... यह क्या है.. वैसे तो मै इसको बाजार से जब लायी थी तब मुझे भी नही पता था कि कभी इसे इस तरह भी प्रयोग मे लाऊँगी, मुझे तो बस यह अच्छा लगा था।


महीने भर पहले मैने इस पर प्रयोग किया... पहले तो कुछ समझ मे नही आया, पर बाद मे यह मजेदार काम करने लगा, मैने जिस कमरे मे इसे रखा है उसमे शांति मिलती है, फिर देखने के लिये कुछ दोस्तो को यह गिफ्ट कर दिया, उन्होने भी यही बात दुहराई, तो बस तबसे यह मेरे कलेक्शन मे शामिल है।



लो फिर से एक अजुबा.... :P इसकी भी कुछ ऐसे ही कहानी है, पर काम अलग.... यह टुक टुक जनाब (pet name) बिमार दोस्तो को गिफ़्ट करने के लिये ठीक है.... मेर मतलब वो दोस्त जो बिमारी के कारण हताश हो रहे हो, उन पर इसके द्वारा पहुँचा तरंग गज़ब का काम करता है।



वैसे अभी इन दोनो का व्यव्सायिक नामकरण नही किया है, पर कलेक्शन मे आ जाने पर मुझे बेहद खुशी भी है, उम्मीद है कि आपके चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी होगी।


अब.. ये क्या है.. यह है नज़र ना लगे यंत्र.. याद होगा टी वी पर बहूत छाया था कुछ दिन ... ही ही... वैसे उससे इसका कोई लेना देना नही है... मुझे इसके बारे मे एक बुढे दादा जी ने बताया था.. बाद मे एक मंत्र को सीख कर इसका उपयोग किया.. वाकई कमाल का है... जो लोग भुत-प्रेत मानते हैं उनके लिये.... मुझसे पुछो तो मानती हूँ, कि हमारे आस पास कई तरह की नकरात्मक किरणे घुमती रहती हैं, जो हमारे दिलो-दिमाग पर गहरा असर डालती हैं, यह सारा खेल उन्ही किरणो से बचने का है, जिसमे अलग अलग वस्तुये मददगार हैं इस श्रृंखला मे विशेष बीज मंत्र से और रक्तवर्णी किरणो से ऊजांवित यह ताबीज बहुत काम आता है।
लगभग मेरा कलेक्शन पुरा हूआ.. कुछ चीजे रह गयी हैं पर उन पर अभी शोध चालु है, सकरात्मक प्रतिक्रिया मिलने के बाद ही उनके बारे मे कुछ बता पाऊँगी।
पिछली पोस्ट पर काकेश जी ने कीमत बताने के लिये कहा था.... तो कहना मुनासिब होगा कि... यह समान तो मै लाती हूँ बजार से... अब मुझे कभी यह स्टॉक महंगा पडता है कभी सस्ता।
इसलिये कीमत मैने रखा है= प्रोड्क्ट+ मेरी फीस + भेजने का खर्चा।
मेरी फीस किसलिये भाई... जब बाजार मे यह चीजे मिल जायेगी... तो कहना पडेगा कि.. बजार मे आपको समान मिलेगा, ऊर्जांवित तो मै ही करूँगी ना (या कोई अन्य मास्टर)।
10 तरह के स्तर होते है, हर स्तर की फीस अलग होती है। आपको कौन से स्तर के हीलींग की जरूरत है, वो आपकी परिस्थिती देख के निश्चित की जाती है।
घबराईये मत कुछ ज्याद पंगा नही है.... साधारणतया लोग 1 महीने के लिये 2 महीने के लिये, या अपने काम के हिसाब से कॉंट्रेक्ट लेते हैं।
विस्तृत जानकारी के लिये सम्पर्क कर सकते हैं :) avgroup at gamil dot com पर।
बहुत हो गया अब इजाजत लेती हूँ, अगली पोस्ट पर मिलेंगे। टाटा

बुधवार, 13 जून 2007

मै भी कुछ लाऊँ

आजकल सबको अपना-अपना कलेक्शन दिखाने का बुखार हो गया है, तो मुझे भी ये बुखार लग गया है, पिछले 10 दिनो से सोच रही हूँ, मै क्या दिखाऊँ !

मेरे पास कार नही है, जुता भी एक ही है, हाँ मेरे भाई के खिलौने हैं पर वो तो हाथ नही लगाने देगा, फिर मुझे कुछ दिखाना भी ऐसा है जो मेरे कलेक्शन मे आता हो... सोच सोच के परेशान हो गयी...
फिर सोचा कि अपना बाल्कनी गार्डेन ही दिखा दूँ, पर गर्मी की वजह से कुछेक पौधो को छोडकर उसकी हालत खस्ता है, फिर सोचा मै अपनी लाईब्रेरी की किताबे ही दिखा लेती हूँ, पर आईडिया जमा नही, उसके बाद कई कलेक्शन दिमाग मे आते रहे और किसी ना किसी वजह से सबको काटती गयी

अभी ध्यान मे आया कि क्यूँ ना मै अपने हीलींग प्रोडक्टस ही दिखाऊँ.. एक पंथ दो काज हो जायेंगे.. मतलब दिखाना और कौन सा प्रोडक्ट क्या काम करता है बताना दोनो.


तो बस शुरू हो गयी जो प्रोड्कट्स अभी मेरे पास हैं, उनका लिस्ट बनाने मे, एक बात जरूर ध्यान रखियेगा की यह साधारण प्रोड्कट्स नही है, बल्कि इन पर घँटो का मेडिटेशन एनर्जी लगा है, अतः अगर बजार से लाकर सीधे आप उपयोग मे लायेंगे तो शायद ही काम करे।
यह है ॐ पेंडेंट विद पर्ल इसको अपने साथ रखने सात्विक विचार उत्पन्न होटल है तथा आने वाली परेशानियों से सुरक्षा होती। तथा त्रिशक्तियों का साथ मिलता है।




यह है ॐ पेंडेंट इसको , यह जीवन ऊर्जा को सम्बल बनाये रखने मे मददगार होता है।





मोती -साधारणतया यहाँ उन लोगो के लिये फायदेमंद है जिन्हे बार सर्दी जुकाम होता हो, पर अभी यहाँ दिमागी संतुलन, शांति और सात्विक सम्पूर्ण आनन्द के लिये प्रयुक्त होता है।



जिरकॉन- यहाँ है गोल्डेन जिरकॉन, वैसे जिरकॉन कई रंगो मे मै सिर्फ गोल्डेन का फोटो दिखा रही हूँ, आगे के फोटु जल्दी ही लगाऊँगी।
गोल्डेन जिरकॉन, अवसाद से दूर होने के लिये, और एकाग्रता बढाने के लिये दिया जाता है, यह और पीले रंग को एक साथ रखने से, सारे काम अच्छे ढंग से होते हैं, भाग्य साथ देता है।
बाकी बाद मे अभी और फोटु खिचने होंगे... जैसे ही और फोटु खीच कर कम्प्युटर मे लगाऊँगी, यहा हाजिर हो जाऊँगी, अभी आधी अधूरी कलेक्शन को ही बर्दाश्त कर लिजिये :)

गुरुवार, 7 जून 2007

आखिर क्यूँ?

दोस्तो कोई कहानी, कविता नही बना पायी, और ना ही कुछ लिखने का मन हो रहा था।
पर कुछ ऐसा कयी दिनो से घटित हो रहा है जिससे मन व्याकुल हो जाता है।

मेरे पास एक केस आया है जिसके संदर्भ मे लिख रही हूँ, मरीज के privacy ध्यान मे रखते हूए नाम बदल कर दे रही हूँ। मुझे कहानी लिखने का अभ्यास नही इसलिये ऐसा कोई पुट नही डाल सकी, सीधी सी सच्ची बात है, जैसे मेरा दिल गवाही दे रहा है वैसा ही लिख रही हूँ।

15 मई को बिजनौर से एक केस मिला... केस है 12 वर्षीया एक शालिनी का, मेरी यह मरीज दिन पर दिन पागल होती जा रही है।

खैर जब यह केस मुझे मिला था तो यह बताया गया कि, यह लडकी पढने मे कमजोड रही है, इस कारण अवसाद के कारण इसकी ये हालात है, तब इसके पापा से बात हूई थी, अब अवसाद दूर करना तो कोई बडी बात नही, मुझे यकिन था 2-4 दिनो मे शालिनी सामान्य होने लगेगी।

5 दिन बीत गये कुछ नही हूआ, शालिनी के पापा मुझ पर बरसे, बात थी भी, मैने बहुत यकिन से कहा था की सब ठीक हो जायेगा।
8वे दिन शालिनी की मम्मी ने रात गये फोन किया, कहने लगी इसकी बिमारी का कारण पढाई नही कुछ और है, उन्होने इतना ही बताया।

10वे फिर मम्मी ने ही फोन किया, उन्होने कहा, बेटा मेरी बेटी का इलाज जितनी जल्दी हो सके करो, और इसके पापा से बात न करना वो कुछ कहे तो कह देना मै नही कर रही हूँ। मै कुछ आगे पिछे पुछूँ उसके पहले फोन कट गया।

15वे दिन शालिनी होश मे थी, उसने जो कुछ अपनी माँ को बताया वो रिश्तो की धज्जियाँ उडा देने मे पूर्णतः समर्थ था, वैसे ये बात मुझे नही पता लगी।

3 जुन शालिनी की मम्मी को मैने कहा कि, आप जरूर कुछ छुपा रही हैं, मुझे इसके प्राभामंडल की तरंगे बहुत असमान्य लग रही हैं, बहुत जद्दोजेहद के बाद जो मुझे बताया गया-

वो है कि शालिनी के इस हालत के जिम्मेदार खुद उसके पापा हैं, उन्होने 12 वर्षीया बच्ची के साथ जो किया वो.........

शायद आगे क्या हूआ बताने की जरूरत नही है।

अब शालिनी ठीक हो रही है, पर क्या वो वास्तव मे ठीक हो पायेगी?
5 जुन को शालिनी ने आत्महत्या करने की कोशिश की थी.... कारण हम समझ सकते हैं।

मैने यह बात यहा क्यूँ लिखी समझ मे नही आ रहा है, शायद एक जद्दोजेहद मेरे मन मे भी चल रही है, शालिनी के रूप मे मेरे दिल मे भी कुछ टुट सा रहा है।
आज थोडी देर पहले मैने शालिनी से बात की... उसका दर्द, उसकी भावनाये, एहसास, कही ना कही मेरे अन्दर भुचाल पैदा कर रहे हैं।

12 साल की लडकी से क्या कहूँ, मुझे याद है जब मै 12 साल की थी तो कितनी निर्भीक निडर आत्म- स्वाभिमानी थी, और यह सब सिर्फ इसलिये कि मेरे पापाजी को मै हमेशा अपना आदर्श मानती हूँ थी और रहूँगी।
मैने जो अपने पापा से direct और indirect सीख पायी, वो हमेशा मुझे प्रेरणा देती रही, पर शालिनी के साथ ऐसा कयूँ हूआ?

ऐसा नही की ऐसी कोई घटना पहली बार हूई है, पर हर बार ऐसी घटनाये मुझमे झंझावात पैदा करती है,

आखिर क्यूँ होता है ऐसा.....? क्यूँ रिश्तो की मर्यादा की इंसानियत की बलि चढाने मे लोग बाज नही आते..... क्यूँ? हर दिशा से यही सवाल गुँज रहा है...............

रविवार, 6 मई 2007

आपकी छोटी-छोटी आदते और आपका व्यक्तित्व

आपकी छोटी-छोटी आदते और आप
दोस्तो आप सभी से दरख्वास्त है कि इन सवालो का ईमानादारी से जवाब दें, वैसे तो मै कोई राज की बात नही पुछूँगी पर किसी को यहा बताना अच्छा ना लगे तो अपने जवाब मुझे avgroup at gmail dot com पर ई-मेल कर सकते हैं
आप सब जानना चाहेंगे कि भई इतने मेहनत कयूँ?
आपके जवाब आपके व्यक्तित्व का आईना बनेंगे, शायद यहां से कुछ ऐसे बाते भी आपको पता लगे जो आप भी ना जानते हों... :)
ये भी हो सकता है कि आपके किसी समस्या का समाधान भी मिल जाये.. संभावनाओ से भरा डगर है.. आप चलिये तो सही
लिजिये सवालो का दौर शुरू करती हूँ :) उम्मीद है आपको ये सफर मजेदार लगेगा
  1. आपका शूभ नाम, उम्र स्थायी पता और वर्तमान पता( सिर्फ शहर का नाम)
  2. अभी आप क्या कर रहे हैं, और अगर अमुक काम ना कर रहे होते तो क्या करते?
  3. आपने अपना अमुक काम क्यूँ चुना? यूँ ही? आपकी इच्छा या घर वालो की इच्छा? कोई और भी कारण हो तो उल्लेख करें।
  4. आपके वर्तमान से कार्य से आप संतुष्ट हैं?
  5. आपको किस रंग का और कौन सा फूल पसन्द है और क्यूँ?
  6. आपको किस रंग का और कैसा ड्रेस पसन्द है?
  7. अगर आपके पास बहूत से रंग के पन्ने और कलम हो तो कौन सा रंग लेंगे?
  8. आपके आसपास किस रंग की अधिकता है?
  9. आपको overall कौन सा रंग आकर्षित करता है?
  10. आपको कौन सा मौसम अच्छा लगता है?
  11. अगर आपको कोई उपहार देना चाहे तो आप क्या लेना पसंद करेंगे?
  12. आप किसी को उपहार मे क्या देना चाहेंगे?
  13. आप अपनी छूट्टिया कहां और किसके साथ मनाना पसंद करेंगे?
  14. आपको खाने मे क्या पसंद है?
  15. अगर आपके प्लेट मे आपकी पसन्दीदा और नापसन्दीदा दोनो ही तरह के भोज्यपदार्थ रखा हो तो आप क्या करेंगे? नापसंदीदा भोज्यपदार्थ से किनारा कर लेंगे? दोनो ही मिला के खा लेंगे? पहले पसंदीदा वस्तु लेंगे? पहले नापसंदीदा लेंगे?
  16. आपकी 10 सकारत्मक आदते या सोच?
  17. आपकी 10 नकारत्मक आदते या सोच?
  18. क्या आप अपने वर्तमान स्थिती से पुरी तरह संतुष्ट है? अगर हां तो कारण बताईये, नही तो भी कारण बताईये
  19. क्या आप किसी शक्ति, भगवान पर विश्वास रखते हैं?
  20. अगर हां तो उनसे अगर आप उनसे कोई एक क्या शिकायत करेंगे? कोई एक बात जिसके लिये आप उनको धन्यवाद करें
  21. कोई 5 इच्छायें जो आप उनसे मांगे? (सवाल 20,21 पर वो ध्यान ना दें जो भगवान या किसे शक्ति पर विश्वास नही रखते हैं?)
  22. आप खूद को कर्म प्रधान मानते हैं कि भाग्य प्रधान?
  23. पिचाले 22 सवालो को पढकर और जवाब देकर आपको कैसा लगा?
  24. आप अपने व्यक्तित्व से संबन्धित किस प्रकार की जानकारी चाहेंगे?
  25. अगर आपके जवाबो के बाद किसी कारण से आपकी आलोचन की गयी तो आपकी प्रतिक्रिया कैसी रहेगी?

इतने सारे सवाल लिखकर मै ही थक गयी, जवाब कर्ता तो और थक जायेंगे इसलिये एक मजाकिया सवाल....

कोई मुझे एक चॉकलेट खिलायेगा.... :D

नोट- वर्तेनी अशुद्धियों के लिये माफी चाहती हूँ।

सोमवार, 30 अप्रैल 2007

अहसासो के शहर मे

अहसासो के शहर मे
खो गये हैं बोल मेरे,
मूक होकर खडी हूँ
टूट गयी है क़लम।

जो कहना है
कह ना सकूंगी,
तुम्हारे सामने
चुप भी ना रह सकूंगी।

पर कहूँ भी तो कैसे कहूँ
शब्द मिलते नही।
मौन की आवाज़
तुम सुनते ही नही।

बुधवार, 25 अप्रैल 2007

उदय-अस्त

हर रोज उदय होता है सुरज
और रोज ही अस्त होता है
सिर्फ क्षितिज पर नही
"ये" अपने दिल मे भी होता है

फर्क इतना है कि...
आसमान कि एक ही कहानी होती है
"जो" दिल मे है
उसकी रोज नयी निशानी होती है

रोज एक नये सपने को जीने के लिये
रोज एक नये सपने पर मरने के लिये
जिन्दगी के भाग-दौड मे बढने के लिये
अविचलित इस जगत मे उथल-पथल होता है

हां वहा क्षितिज पर
यहा दिल मे होता है...

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2007

क्या है सुसंगतता?

पिछली पोस्ट हाय रे मैं भुलक्कड कुछ कशमकश के साथ डाली थी, सकरात्मक टिप्पणी देखकर राहत मिली।

आगे कुछ नया लिखूँ उसके पहले खयाल आया कि कुछ दोस्त सुसंगतता के बारे मे नहीं जानते। तो कोई नया मेडिटेशन टिप दूँ उसके पहले जरूरी है कि सुसंगतता का मतलब बताया जाये।

सुसंगतता... अपने नाम के ही अनुरूप है... इस प्रक्रिया के दौरान आपके एनर्जी लेबल को ब्रम्हांडीय एनर्जी लेबल से मैच कराते हैं।
उदाहरण के तौर पर रेकी को लेते हैं... (रेकी इसलिये कि इसे बहूत लोग जानते हैं)। मोटे तौर पर रेकी एक हीलींग पद्धति है, जिसके द्वारा कई मानसिक शारीरिक रोगो का ईलाज सम्भव है।

हां तो बात हो रही थी सुसंगतता की... तो ये प्रमाणिक तथ्य है कि रेकी की शक्ति किरणे हमारे अन्दर और ब्रम्हांड मे पहले से ही विद्यमान है बस हमे उसके बारे मे पता नही होता ना ही हम उसे संचालित कर पाने मे सक्षम होते हैं।
अब सवाल उठता है कि जब हमारे अन्दर ये ताकत मौजूद है तो हमे आभास क्यूँ नहीं और हम इसे संचालित क्यूँ नहीं कर पाते?
मनीषियो ने तो इस कारण को बहूत अच्छे से समझाया है, लेख की लम्बाई कम रखने के मक्सद से मै एक उदाहरण मे स्पष्ट कर रही हूँ, कि जिस प्रकार कस्तूरी मृग अपने ही नाभि मे पल रहे कस्तूरी से अनजान रहता है, ठीक उसी प्रकार हम अपने अन्दर की रेकी से अंजान रहते हैं।
सुसंगत प्रक्रिया मे आपको उक्त एनर्जी लेवल से पहचान करा दी जाती है।


सुसंगत प्रक्रिया को ऐसे भी समझा जा सकता है कि आपको रीसीवर बनाया जाता है, ताकि ब्रम्हांड मे उपस्थित रेकी आपके लिये सुग्राह्य हो।

किसी भी तरह के सुसंगतता मे यही बात होती है, चाहे वो रेकी के लिये हो, अल्फा के लिये या कोई अन्य सभी चरणो मे सुसंगतता की मुख्य भूमिका होती है।
रेकी, अल्फा जैसे प्रणालियाँ सुसंगतता के बिना उतनी ही अधूरी है जिस प्रकार जलधारा के बिना नदी का अस्तित्व।

सुसंगतता कि विधियाँ अलग अलग हो सकती हैं, कई लोग दो दिन मे करते हैं, कई लोग खाली पेट करते हैं, लेकिन अहम बात ये होती है कि सुसंगतता के दौरान उक्त विषय का मास्टर आपके चैनल( चक्र) को औरा के तरंग को सुव्यस्थित करता है।

कई लोग सुसंगतता को लेकर तरह तरह के वहम पाल रखे हैं, सुसंगतता के पहले मुझसे की सवाल पुछे जाते हैं, जैसे कि क्या इस दौरान कोई कष्ट होता है, कोई कठिन प्रणाली है ये? इत्यादि
जवाब हमेशा कि तरह ये है कि-
ये बहूत आसान और कष्टरहित प्रक्रिया है। सुसंगतता के कुछ दिनो बाद ही आपको अपने आपमे फर्क महसूस होने लगता है, और आपको अपने अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति मे अत्यंत सहायक होता है

हाँ सुसंगतता के बाद ये ना समझे कि बस काम हो गया बल्कि आपको जो मेडिटेशन कि विधी दी जाती है, उसका अभ्यास करते रहें।
तभी आपका अभीष्ट सिद्ध होगा।

चलते चलते जोशी भईया के सवाल दिख गयें तो फिर आ गयी...उनका सवाल है-

सुसंगत कैसे करेंगी? और सुसंगत करने के बाद यह मेरे उपर असर कैसे करेगा? क्या यह संभव है

जी जैसा कि बताया है, इसके अलग अलग तरीके होते हैं... मुख्यतः आपको निश्चित समय बता दिया जाता है। जिस वक्त आपको आपने चयनित मेडिटेशन कोर्स को करना होता है, उस निश्चित समय पर आपको कोर्स मास्टर आपके औरा को संगत करके सुसंगत करता है, यह प्रक्रिया आमने सामने होती है.. ग्रैंड मास्टर दुरस्थ सुसंगत करने मे भी सक्षम होता है।

जहाँ तक मेरी बात है, मै दुरस्थ सुसंगत ज्यादा करती हूँ :)

सुसंगत के दौरान ही आपको इसका असर अनुभव होने लगता है, बाकी आपके मेडिटेशन अभ्यास से होता है।

क्या ये सम्भव है??? अब क्या कहूँ... खूद अजमाईये और अपना अनुभव भी बताईये.. चूँकि आप खूद ध्यान क्रिया करते हैं इसलिये इसका जवाब तो आपको पहले से ही पता होगा। :)

विशेष- अभी भी किसी दोस्त को सुसंगतता पर कोई सवाल हो तो जरूर पुछे जवाब देने कि कोशिश हमेशा रहेगी, और लिखने मे कोई भूल चूक हूई हो तो माफी चाहती हूँ।

गुरुवार, 5 अप्रैल 2007

हाय रे मैं भुलक्कड

ओह कल ही तो पढा था याद नही आ रहा है.....

लगता है कही देखा है आपको.... बस ध्यान मे नही आ रहा है...

अर्रे... ये समान कहा रख दिया.....

इत्यादि आम समस्यायें बनती जा रहीं हैं... यही नही एक विकट समस्या है विद्यार्थियो के लिये... पुरे साल जो पढते हैं परीक्षा भवन मे याद रहेगा कि नही...

इस समस्या के विभिन्न कारण होते है... कारण फिर कभी बताऊँगी... मै सीधे-सीधे निवारण पर आ रही हूँ।

इस समस्या के निवारण के लिये मेरी टीम ने कई लोगो पर मेडिटेशन कोर्स की कई सुसंगत क्रियाओं और स्वयं मेडिटेशन कोर्स को प्रयोग मे लिया.. आखिरकार हम एक ऐसे सुसंगत कोर्स की तरफ बढे जो दिखता तो आम कोर्स की तरह है... पर काम बहूत ज्यादा करता है।

ये पैकेज दो भागो मे बँटा है-

सम्पुर्ण शिथीलीकरण और सम्पुर्ण कल्पनाशीलता

नियम ऐसा है-

1. किसी भी शांत जगह पर कुर्सी पर बैठ जायें, इस समय आपके हाथ पैर सीधे रखे, रीढ कि हड्डी सीधी हो पर अकडी ना हो, या आप आलथी पालथी लगा के भी बैठ सकते है, बैठने कि स्थिती वैसी ही होगी या सीधे बिस्तर पर अपने मन चाही स्थिती मे लेट सकते हैं (ध्यान रहे कि लेटने कि विधी आरामादायक तो है पर कई लोगो को नींद आ जाती है, अतः अगर आप अतिनिद्रा के आदी है तो लेटने के विधी आपके लिये नही है।)

2. अब आँखे हल्की सी बन्द रखे, आप 10 बार गहरी साँस ले, और प्रत्येक साँस के साथ 10 से 0 कि गिनती लेते जायें.... जैसे कि पहली साँस और उसके साथ 10 फिर दुसरी 9 ऐसे करके 0 तक आयें।

3. अब सामान्य साँस लें... और धीरे धीरे अपने पुरे शरीर को अन्दर से सिकोडने कि कोशिश करें, फिर ढीला छोड दें, ये प्रक्रिया 5 बार दुहराये।

4. अब आज्ञा चक्र पर ध्यान लगाने कि कोशिश करें, आज्ञा चक्र यानि दोनो भौहों के बीच की जगह

कम से 5 मिनट ऐसा करने के बाद ही आपको अपने शरीर मे गर्मी या कुछ अलग सा झंझनाहट महसुस होने लगेगा, अब इस एहसास को पुरे शरीर मे फैल जाने दे (आपकी कल्पना शक्ति जितनी मजबूत होगी, उतनी जल्द रिजल्ट मिलेगा)।

5. उसके बाद पॉवर ट्रिगर बनायें, इसके लिये बाये हाथ कि मुट्ठी बन्द कर लें... जिसमे अँगुठा पहले बन्द होगा उसके उपर चारो अँगुलियां आ जायेंगी।

6. 5 मिनट तक ऐसा करके, फिर गहरी साँस ले 5 बार और आँखे खोल लिजीये, उठ जायें।


जब भी आप कुछ पढ रहे हो तो ये पॉवर ट्रिगर लगाने के बाद पढना शूरु करें, वो बात आपको याद रहेगा। और हाँ ये कोई मैजिक नही है, आप जितना इसका अभ्यास करेंगे दिन पर दिन याददाश्त बढने लगेगी।

हाँ इसके साथ एक सबसे बडी परेशानी ये है कि यह स्वयँ मेडिटेशन कोर्स जैसा काम नही करता, इसके लिये सुसंगतता की जरूरी है... कोशिश है कि इसे जल्द से जल्द स्व संचालित मेडिटेशन का रूप दिया जाये।

इसके साथ भ्रामरी प्राणायाम का पुट भी दे दिया जाये तो सोने पर सुहागा का काम होता है...

भ्रामरी प्राणायाम-

प्राणायाम स्वस्थ वातावरण मे करें।
खाली पेट या खाने के 4 घंटे बाद करें।
बूखार और कब्ज की अवस्था मे ना करें।

किसी शांत अच्छे जगह पर आलथी पालथी लगाकर या बैक वाली कूर्सी पर सीधे बैठ जायें।
रीढ की हड्डी सीधी रखें पर तनी हूई ना हो।
अब दोनो हाथो को ऊपर हवा मे लायें, मूट्ठी कुछ इस प्रकार बन्द होगी कि तर्जनी अंगुली बाहर की तरफ रहेगी।
अब तर्जनी से दोनो कान अच्छी तरह बन्द करेंगे, गहरी स्वास लेकर हल्के बन्द होंठो से ॐ का नाद करेंगे।

5 बार से शूरू कर 11 बार तक कर सकते हैं।

ये दोनो अभ्यास याददाशत शक्ति को बढाने के लिये महत्वपूर्ण है। इनका रोज अभ्यास करना चाहिये।


जाते-जाते एक विनम्र निवेदन है कि- यह मेरा व्यव्साय का अंग है इसलिये कृपया घोडे को घास से दोस्ती करने के लिये ना कहें।ही... ही... ही...:D

बुधवार, 7 मार्च 2007

जब जिंदगी बन जाये एक सवाल

जन्म तो हुआ,
जीवन ना मिला।
साँसे तो मिली,
लेने को इजाजत ना मिली।

दिल तो है...
मुस्कुराने का मौसम न मिला।
है मेरा भी वजूद
सोचने को वक्त न मिला।

बचपन बीता,
तानो की गुँज मे।
मौसम बदला,
चार-दिवारी मे।

कभी जो खेलना चाहा,
इनाम मे मिला,
गर्म सलाखो का तमाचा...

ये जिन्दगी है?
या मौत है?
आज भी...
कई बेटियों की चिखती आवज
पुछ रही है....
कहाँ है उनका बचपन?
क्या जीना मेरा अधिकार नही?

पर ये सवाल घुट के ही रह जाता है...
किसी के कानो तक कहाँ पहुँच पाता है!



गुरुवार, 1 मार्च 2007

एक सवाल

एक सवाल कई दिनो से चल रहा है,
सोचती हूँ पूछ ही लूँ।

पर किससे...?कौन सुनेगा?
कौन देगा जवाब...?
मै... या... आप...?
या वो जो...
कभी देश के नाम पर
कभी जेहाद के नाम पर
कभी जुर्म के लिये
या कानून के खातिर
खेल-खेल मे,
या राजनीति मे आकर
कितने ही घर कर देते है बरबाद।

लड्ने वालो इतना तो बता जाओ
जवाब दे दो उन अपनो को
क्या खता है उनकी...
तुम्हारे बिना
जिनके पल बन जाते हैं
जैसे सुना संग्राम

बुधवार, 21 फ़रवरी 2007

शुरुआत... जिंदगी से

जिंदगी तेरे कई रुप
कभी छाँव कभी धुप
कभी गम, कभी खुशी
चाँद के तरह बदले रुप

ये तो हुआ हरेक कि जिंदगी की कहानी, किसी की भी जिंदगी पर ये नियम चरितार्थ होता है।
फिर भी अक्सर ऐसा होता है कि लोग अपनी मिली हुई जिंदगी को कोसते रहते है। अब ये बात पक्की है कि वो कोसने वाले लोग के कारण ही कोसते होंगे।
तो बात करते है सुख और दुख की ताकि ऐसा रास्ता रास्ता निकाल सके की सिर्फ सुख सुख ही रहे दुख ना हो ताकि जिंदगी को कोसना न हो।

तो सबसे पहले दुख क्या है?
इसकी कोई परिभाषा है?

मेरे खयाल से दुख तब होता है जब हमे हमारी इच्छित वस्तु न प्राप्त हो।
युँ तो और कई कारण होंगे हरेक इंसान की अपनी व्यक्तिगत समस्या होगी फिर भी सभी प्रकार के दुखो मे आप यही पायेंगे, तो मुख्य कारण यही हुआ कि हमे हमारी इच्छित वस्तु न प्राप्त होने की स्थिती मे दुख होता है।

सुख की परिभाषा भी मिल गयी यानि दुख की ना-मौजुदगी मतलब की हमारी सारी इच्छायें जब पुरी होती रहे तो दुख नही होगा।

अब रोज-मर्रा की जिंदगी मे इतना संभव नही कि हमारी सभी माँगे पूरी हों।
फिर ऐसा क्या करें कि हमारी ज़िंदगी मे सिर्फ सुख ही सुख हो दुख ना हो?

इतना आसान होता सभी हसरतो को पा लेना,
तो चाँद पर घर नही बना लेती।
मेरे इक इशारे पर पुरी होती सभी चाहते,
हर किसी के आँखो के अश्क मै चुरा लेती।
इतना हो जाये तो क्या कहना,
दिल से मै हँसती हर दिल को हँसा लेती।

पर जमीन पर तो घर ही नही है,
चाँद कि क्या बात करुँ।
फिर भी खुशियाँ बांटनी हैं,
कहाँ से इसकी शुरुआत करुँ।

ये एक दलील हर किसी के मुँह से सुनने को मिल जाता है।
बस इतना अन्तर है कि कोई रोता है, कोई झुठी हँसी हँसता है, और कोई जिंदगी को खुबसुरत बनाने के लिए जी-जान से मेहनत करता है।

रोने की बात तो मझे कभी जमी नहीं, औ झुठी हँसी यानि समझौता जो मुझे पसन्द नहीं, बस मेहनत का रास्ता सही लगता है।


जिंदगी फूलों की सेज नही जो हर पल सुखदायी हो। सबने सुनी होगी ये बात, मानते भी होंगे पर कभी-कभी सोचती हुँ कि अगर ये जिंदगी हर पल सुखदायी हो गयी तो क्या जीने का मजा आयेगा?
जिस तरह की सिर्फ दुख ही दुख हो सुख न हो तो जीना मुश्किल हो जाता है उसी तरह सिर्फ सुख ही सुख हो तो मुश्किल न हो जायेगा।

कभी कल्पना करती हुँ सिर्फ दिन हो रात न हो, सिर्फ बसंत हो और कोई मौसम ना आये, बहुत अजीब सा लगेगा ना, तब ये सुख ही दुख का कारण बन जायेगा। फिर क्या करेंगे?

इसलिये मेरे ख्याल मे -

नदी सी कल-कल जो बहती जायें।
हर रंग, हर मौसम का असर छाये।
जो हर लम्हे को जीना सिखलाये।
असल मे यही तो जिंदगी कहलाये।