गुरुवार, 2 अगस्त 2007

प्यार इश्क और मुहब्बत

प्यार इश्क मुहब्बत...कई लोगो को यह सुनते ही बदन मे झुरहुरी सी पैदा होने लगती है, तो कुछ लोग दर्द मे डुब जाते है, कितनो के लिये यह कड़ा इम्तेहान है, और कुछ लोग इससे नज़र बचाकर निकल जाने मे ही भलाई समझते हैं।
आज अपने एक दोस्त से बात कर रही थी, हमारी बात मजाक से शुरू हुई, उस व्यक्तव्य के साथ और दोस्तो के विचार भी मिलते गये, और हम हँसते हँसते ना जाने कहाँ तक पहुँच गये।
बात किस मोड़ निकली और कहा गयी, यह जानना उतना जरूरी नही है, लेकिन मुझे अपनी बात शुरू करने के पहले अपने उन दोस्तो को धन्यवाद कहना उचित लग रहा है जिनके कारण बात सकरात्मक मोड़ तक आयी।

अब मुद्दे पर आती हूँ।
जी बात कर रही हूँ प्यार की... आखिर होता क्या है प्यार.. सिर्फ किसी को देखा, प्रारम्भिक बात चीत हुई, और कुछ लगा कि हाँ उसके मन मे मेरे प्रति कुछ है, और इजहारे इश्क कर दिया!
तभी पता चलता है कि अर्रे रे रे ऐसा तो कुछ था ही नही, फिर दिल टुट गया, सार कुसुर सामने वाले को दे दिया...
या किसी से आपकी दोस्ती हूई आपके अच्छे बुरे वक्त मे उसने आपका साथ दे दिया, आपसे दोस्ती निभाई और आपने उसे प्यार का नाम दे दिया... उसके कहने पर कि यह सिर्फ दोस्त होने के नाते कहा था... आपके दिल को बहुत चोट आ गयी.. आखिर क्युँ ना आये.. आपको उससे प्यार जो हो गया था!!!
अपने दोस्त को कुछ भी कहने से पहले ध्यान दिजियेगा... आपके दोस्त ने दोस्ती निभाई, आपको गलतफहमी हुई उसमे उसकी क्या गलती...

मै मुद्दे से भटक ना जाऊ इसलिये इसे यही छोड़कर आगे चलती हूँ
या प्यार यह होता है कि एक साथ जीने मरने की कसमे तो खा ली, लेकिन जब साथ जीने मरने का वक्त आ गया तो समाज के डर, माँ बाप के कारण बीच मझधार मे ही साथ छोड़कर चले गये.... और उम्र भर अपने किस्मत पर रोते रहे....
या फिर अपने प्यार के खातिर सबकुछ छोड़कर निकल आये... लेकिन वक्त जब अपने साथी के साथ देने का आया, घरवालो पर कोई मुसीबत आयी तो आराम से कह दिया.. मै ऐसा नही चाहता था/चाहती थी। यह तो बस इनके कहने मे आकर अपने घरवालो को भूल गये।
यह तो हुआ दो जोड़ो के बीच मे पनपने वाले प्यार की बात... (मुझे कभी नही हुआ इसलिये कोई तजुर्बा नही है, कही गलत बोला हो तो माफी चाहती हूँ)
अब आगे मै जिस प्यार के बारे मे बात करना चाहती हूँ, वह है प्राणी मात्र के दिल मे पलने वाला प्यार।
वह प्यार जो हरेक शख्स के दिल मे अपने लिये, अपने वतन के लिये, अपने घर वालो के लिये, अपने दोस्तो के लिये पलता है, वक्त के साथ बढ़ता है, और इसका अंत हमारी ही बेवकूफी के कारण हो जाता है।
हम सब एक दुसरे को किसी ना किसी निगाह से चाहते हैं, पसन्द करते हैं, पर कह नही पाते... ऐसा क्यूँ?
मेरे एक दोस्त ने कहा कि.. आज के जमाने मे यह शब्द बहुत खतरनाक साबित हो सकता है, बहुत सोच सम्भल के इसका इस्तेमाल करना चाहिये!!
सोच सम्भल के!!! हाँ सच हमने अपने आप को इतना सम्भाल लिया है कि.. दोस्त अपने दोस्त से अपने प्यार का इजहार नही कर सकता... क्या दोस्तो के बीच प्यार नही होता, दुश्मनी होती है?
अपने भारत आम तौर पर कोई माँ-बाप अपने बच्चे से अपने प्यार का इजहार नही करते!!!
भाई बहन से नही करते!!!
आप देख लिजिये फिल्मो मे जितने भी दिल-विल, प्यार-मुहब्बत पर गाने बाने हैं, वो सब सिर्फ दो आशिको को दर्शाते हैं
क्या प्यार इतना संकुचित हो चुका है?
प्यार जिसके आधार पर सारी दुनिया बनी है, जिसकी बुनियाद पर ही कोई रिश्ता कायम रह सकता है... वो इतना अधुरा... इतना खोखला !!!
अपने आप से पुछना पड़ेगा? यहाँ जो वरिष्ठ लोग हैं... वो अपने दिल से पुछे.. क्या अपने बच्चो से आप प्यार नही करते? अगर करते हैं, तो कहने मे कैसी झिझक है?
युवा वर्ग अपने आप से पुछे वो अपने माँ-बाप से प्यार नही करते? फिर शर्म कैसी?
आज तक आप अपने प्यार का इजहार क्यो नही कर सके....?
मेरे दोस्त के अनुसार यह बहुत गम्भीर समस्या है, शायद हम लोगो मे से बहुतो के लिये यह एक गम्भीर समस्या है... पर.. इतना भी जटिल नही...
बस एक शब्द, आपके अपनो की जिन्दगी मे बहार ला सकने मे सक्षम है... शायद हमने इस बात को महसुस नही किया... पर जरूरत है कि अब इस बात हम समझे... और अपनो के लिये अपने प्यार को प्रदर्शित करें।
बहुत लोग यह तर्क देते है कि प्यार को इजहार करने की जरूरत नही... अ र्रे यह तर्क अपने प्रेमिका पर फिट नही बैथता, बाकि हर रिश्ते पर फिट बैठता हैं, आखिर क्युँ?
यही नही कुछ लोग तो अपनी बीवी से भी अपने प्यार का इजहार नही करते, और जब रिश्तो मे दरार पड़ने लगती है तो सार कुसुर उसी को दे देते हैं।
इतना संकोच......!!!
अब जरूरत है नये पहल की... आगे बढ़ें और प्यार को संकुचित दायरे से निकालकर, उसके कण कण मे खुद को डुबायें।
अपने प्यार को सही तरीके से समझे, जाने और उसे अपने जिन्दगी मे उतारे... तभी जिन्दगी प्यार से भरी-पूरी और खुशहाल बनेगी...
कहिये आपका क्या कहना है!!!