बुधवार, 10 सितंबर 2008

लौट आओ

लौट आओ कि अंधरी ये रात हुई
अब तक खफ़ा हो, ये क्या बात हुई

चुपके से किसी तन्हा सी घड़ी में
याद आती है, थी जो मुलाकात हुई

सालती है दर्द-ए-दिल को ये खा़मोशी
आवाज दो कि अब ये ज़र्द रात हुई

कहो कैसे जिये" गरिमा" तुम्हारे बिना
तुम बिन अन्धेरी ये कायनात हुई

नहीं लौट सकते तो मत आओ
इतना बता दो इस बेरुखी की क्या बात हुई