बुधवार, 31 दिसंबर 2008

अस्तित्व

मै अपनी छोटी बहन के काफी नजदीक हूँ, घर से लेकर बाहर तक होने वाली सारी समस्यायो को बाँटती रहती है, ये समझिये कि सोने के पहले का मेरा नियम है कि कम से कम १ घण्टे वो मुझे टेप रिकार्डर की तरह पुरा किस्सा सुनाती है, साथ मे वो अपने स्कुल की वाईस कैप्टन भी है तो सारी लड़कियों की समस्यायें भी सुनाती रहती है। उसकी सारी सहेलियाँ भी मुझसे काफी जुड़ी है... (बस अब अपनी तारीफ नहीं)...
मेरा मकसद अपनी तारीफ नही... कुछ कहना है... इन दिनो नारी, चोखेर बाली ब्लाग पर कुछ गहमा-गहमी है... रेगुलर नही देख पा रही पर समझ मे जो आया है कुछ ऐसा है कि... एक बार फिर हमारे अस्तित्व को किसी ने ललकारा है... अब ये गहमा गहमी सिर्फ किसी ब्लॉग विशेष के लिये नही बल्कि हमारे अस्तित्व के लिये है... वो चाहे ब्लॉग हो य सड़क पर चलता हुआ जीवन... चाहे घर की चारदीवारी मे रहता हुआ जीवन... चाहे बन्द मुट्ठी मे मिटता हुआ जीवन...
ऐसे सवाल उठते रहते हैं... कोई अपना आक्रोश प्रकट कर पाता है और कोई अन्दर ही अन्दर जलता रहता है...
मेरे पास जब ऐसे सवाल आते हैं तो मेरा जवाब होता है... दो ही रास्ते हैं... या तो उसे अपनी नियति मान लो.. या फिर इतनी आग पैदा करो कि तुम्हारे अस्तित्व पर किसी भी तरह का सवाल उठाने की कोई हिम्मत भी न रख सके...
ऐसा क्यों कि पुरूष जो चाहे उसका अधिकार है... और हम... हमारी इच्छा उसके अनुसार हो
पुरूष सर्व शक्तिमान और हम उसके कमेंट्स सुनने उसके ज्यादती सहने के मजबूर हो
ये नही होना चाहिये... और इसके लिये जब लड़ो तो वाकई मे लड़ो... फिर भूल जाओ कोई बन्धन... हम सिर्फ एक शरीर हैं?... अगर हाँ तो फिर कोई सवाल ही नही उठता, अगर नहीं... तो फिर हमारे किसी को अंगुली उठाने का कतई हक नही है।
हम सम्पूर्ण अस्तित्व हैं... और हमे इसे साबित करने की जरूरत नही है... तुम जानते हो... और इसलिये अपने अस्तित्व को बचाने के लिये हमारे ऊपर समाज, रिश्तेदार, सभ्यता इत्यादि दोहरे मापदंडो की सीमा डाल दी है। पर हम लड़ेंगे अपने अस्तित्व के लिये अपने हक के लिये, सामने चाहे जो कोई भी आये... वो कोई भी हो... हम लड़ेंगे...
फिर हम किसी सभ्यता समाज नियम कानुन की परवाह नही करेंगे... अपने हक के लिये अर्जून ने अपने रिश्तेदारो के प्रति गाण्डीव उठाया तो वो धर्म कहलाया.. तो हमारा कदम अधर्म कैसे हो गया?
आगे की बात.. सिर्फ लड़ेंगे कहने से बात नही बनने वाली... मै यही कहती हूँ.. लड़ो... बिना किसी झिझक के लड़ो... बिना किसी डर के लड़ो... जब जंग अपने अस्तित्व को स्थापित करने के लिये हो तो फिर तुम्हारे कदम नही रूकने चाहिये... किसी भी परिस्थिती मे नहीं... कैसा डर... बात शरीर की नही... बात सिर्फ आत्मा की भी नही.. बात है इनके मेल से बने अस्तित्व की... जिसके लिये हम जी रहे हैं. जिसके कारण हम है... फिर उसपर जब कोई सवाल उठता है तो लड़ने मे डर कैसा.... अगर आज हम नही लड़े तो हमारी आने वाली पीढीयाँ इसी आक्रोश की शिकार होंगी... मै नही चाहती कि मेरी आने वाली पीढी़ को सिर्फ इसलिये चुप रहना पड़े क्योंकि वो बेटी है... मै लड़ूँगी अपने अस्तित्व के लिये... और उस आगंतुक अस्तित्व के लिये... हमारे अस्तित्व के लिये... जिसको जो समझना है समझे...