सोमवार, 25 मई 2009

पत्रो वाली दास्तां

यूँ तो अब पत्र लिखने का वक्त नही रहा... मुझे खुद पत्र लिखे कई साल बीत गये... पर यहाँ कुछ सच्ची और काल्पनिक घटनाओं को मिलाकर कुछ लिखने कि कोशिश कर रही हूँ,ना ही पत्र लिखने आता है ना ही कहानी लिखने आता है... और ना ही किसी के व्यक्तिगत पत्र का उल्लेख करना उचित होगा... इसलिये खुद ही गलत सही करते हुए पहले से माफी मांगते हुए इस श्रृंखला को आगे बढ़ाने कि कोशिश कर रही हूँ और फिर लिखूँगी नहीं तो लिखने आयेगा कैसे?
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"मम्मी यह पुराने लिफाफो का पुलिंदा कैसा है? किसके पत्र हैं यह सब?" गुड़िया को एक ब्रीफकेस मे जैसे ही पुलिंदा मिला वह चहकते हुए मम्मी से पुछने लगी।
"यह तुम्हारे पापाजी और मेरे लिखे पत्र हैं।" मम्मी ने प्यार से बताया।
"ओ, वाह!" पहले तो वह चहकी, "पर मम्मी आप दोनो की तो..." गुड़िया पुछते पुछते रूक गयी, तभी अचानक पापाजी कमरे मे आ गये
"हमारा क्या बेटा?" पापा जी ने पुछा। गुड़िया बोली "मेरा मतलब आप दोनो की तो लव मैरिज नही थी, अरैन्ज मैरिज थी ना.. फिर ये पत्र...?"
मम्मी पापा जी हँसने लगे...और एक साथ बोले... "किसने कहा बेटा कि हम पत्र नहीं लिख सकते थे? "ना मेरा मतलब ऐसा नही था", गुडिया थोड़ा झेंपते हुए बोली। कुछ देर रूककर पापा जी बोले "तुम्हे इन पत्रों को पढ़ना चाहिये... तुम समझोगी की ये हमारे लिये कितनी मायने रखती है।"
"मेरे कहने का मतलब ये नही था पापा जी, गुड़िया बोली वैसे तो मै समझ रही हूँ कि ये पत्र बहुत खास हैं आप दोनो के लिये, तभी तो २७ सालो से आपने इनको सम्भाल कर रखा है" वह मुस्कुराती हुए बोली।
मम्मी पापा जी भी मुस्कुरा उठे "अच्छा तो लो पहला पत्र पढ़ो आज... ये तब के है जब मै शादी के कुछ दिनो बाद ही तुम्हारी मम्मी और घरवालो से दूर गरीबी मिटाने का संकल्प लेकर चला गया था...।" पापा जी ने यह बोलकर एक पत्र उसकी तरफ बढ़ा दिया

"जी" और गुड़िया बिना एक सेकेन्ड भी गंवाये पत्र पढ़ने लगी।



प्रिये,
जानता हूँ पत्र लिखने मे बहुत देर हो गयी है... और तुम नाराज हो रही होगी... पर क्या करूँ भारी भरकम शब्द नही आते ना ही शायरी आती है, जिन्हे लिखकर मनाऊँ, बस इतना सा आता है कि तुम नाराज मत होना... समझना... जो कुछ भी हो रहा है, हमारे लिये हो रहा है। तुम जब मेरी जिन्दगी मे आयी तो लगा कि, मै तो अंधकार मे जी ही रहा था, तुमको भी इस अंधकार मे ले आया। अंधकार भी ऐसा कि प्रकाश की किरण दूर दूर तक नज़र नही आ रही है। इसलिये भाग आया ताकि तुमको प्रकाश मे जिन्दा रखने का सामर्थ्य पा सकूँ। यहाँ आकर लग रहा है कि सिर्फ हम ही क्यों? हमारा परिवार भी उसी अंधकार मे जी रहा है, और हमारा यह उद्देश्य बनता है कि हम मिलकर उन्हे भी प्रकाश मे लायें... कहो, सही बोल रहा हूँ ना? मै जानता हूँ कि तुम "हाँ" ही कहोगी और इसलिये मेहनत बढ़ा दी... और सिर्फ इसी वजह से पत्र देने मे देर हो रही है। ज्यादा कुछ नही कहूँगा उम्मीद है कि तुम समझ जाओगी। तुम समझ जाओगी की मै क्या कर रहा हूँ और क्यों?

कहो समझ जाओगी ना?
तुम्हारा
अपना

"ओ ओ... फिर मम्मा आपने क्या जवाब दिया?" गुड़िया ने पुछ ही लिया
मम्मा ने जवाब के तौर पर एक और पत्र गुड़िया को थमा दिया।

प्राणनाथ,
आपका पत्र मिला... पढ़कर अत्यन्त खुशी हुई। मै जान गयी हूँ कि आप जो भी करेंगे अच्छा ही करेंगे, और मै आपके हर कदम पर साथ ही रहूँगी। आपसे नाराज होने का कोई औचित्य नहीं बनता है। आपसे मिलते ही मै आपको समझ गयी थी कि आप गलत नही हो सकते, और अगर कभी गलत हुए भी तो नाराज होकर बैठने से अच्छा होगा कि मै उस विषय पर आपसे बात करूँ। यह हमारा जीवन है, और यह तभी पूर्ण प्रकाश के चादर मे पल सकेगा जब हम दोनो मिलकर कोशिश करें। हमारी मेहनत जरूर रंग लायेगी। है ना? इस सफर मे आप अकेले नहीं हैं, मै भी तो हूँ, आप वहाँ मेहनत करिये और मै यहाँ, और मुझे यकीन है कि एक दिन हम सम्पूर्ण रूप से साथ और सफल होंगे। पर साथ मे मेरा अनुरोध है कि अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखियेगा... आप मेरी बात मानेंगे ना?

आपकी
सिर्फ आपकी


"अच्छा फिर क्या हुआ मम्मी?" गुड़िया ने पुछा
"आगे... हम दोनो अपने अपने कर्मभुमि पर अपना धर्म निभाने मे लग गये। कोई परेशानी भी आती तो उसका समाधान करते किसी से कोई कोई गिला, शिकायत नही... " मम्मी बोलकर चुप हो गयी या शायद यादो मे खो गयीं।
तभी पापा जी बोले "बेटा जब मंजिल तक जाने की ललक हो तो बाधायें नही डराती, पर शर्त यह है कि रास्ते को जीते हुए चलो उसे बोझ समझकर मत चलो... मंजिल से भी बेहतर तुम्हारा सफर होता है, हमेशा याद रखो कि सफर को मौज के साथ पूरा करना चाहिये"
"जी पापा जी", गुड़िया बोली " वैसे फिर दुबारा पत्र कब भेजा आपने?
"बताऊँगा, जरूर बताऊँगा, पर आज नही कल..." पापा जी ने कहा।
"ठीक है पापा जी पर कल पक्का... है ना", गुड़िया बोल पड़ी।
"हाँ, हाँ, एकदम पक्का" मम्मी पापा जी साथ मे बोले... या फिर वो उस पल एक साथ जीने लगे, शायद अपने पत्रो की दुनिया मे... उन्हे एकसाथ एक दुनिया मे देखकर गुड़िया कमरे से बाहर आ गयी... कल के इंतजार मे।

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हम भी कल मिलते हैं...

शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

वैलेनटाईन डे मेरी नज़र से

वैलेनटाइन डे आ गया है... और हवा मे खूब गर्मजोशी है... वाह वाह। गर्मजोशी उन दिलों मे हैं, जो अपने प्यार का पहले-पहल इज़हार करना चाहते हैं, और उनमे भी हैं, जिन्होने कर रखा है बस कोई अच्छा सा गिफ्ट देकर उसे पुख्ता करना चाहते हैं, और उनमे भी है जो इस हंगामे को रोक देने के लिये कुछ भी करने की पूरी तैयारी के साथ हैं। क्या मौसम है... पर जनाब गर्मजोशी वही पर नहीं है जहां होना चाहिये... प्रमाण के तौर पर
पिछले १० दिन से मैने अपने परिचितो की श्रेणी मे ४० साल और इसके ऊपर के सभी दम्पतियों को पूछ लिया कि उन्होंने इस दिन की तैयारी मे क्या किया... जवाब लगभग ऐसा था एक-दो छोड़कर...

अरे बेटा अब इस उम्र मे हम कहां इस दिन को मनायेंगे
अब वो बात कहां
अब तो बस दिन कट रहे हैं
उनको हमारी इतनी फिक्र नही, हम कुछ कह भी दें.. तो... कोई फर्क नही पड़ेगा
श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श ये बातें भी ऐसे खुलेआम की जाती हैं
ये भी कोई दिन है पता ही नही था
अरे ये अंग्रेजों ने तो ......
हद हो गयी... मै सोच रही थी, जिसके साथ ता-उम्र गुजारी है और बाकी की गुजारनी है उससे प्यार नहीं? और अगर है तो इजहार करने मे इतनी झिझक क्यों? क्या प्यार सिर्फ २० की उम्र की धरोहर है जो ४० तक जाते जाते पुरानी पड़ जाती है? जिसे याद करने मे भी शर्म आती है?
मै तो समझती थी कि प्यार अत्यंत ही पवित्र होता है और इसकी पवित्रता वक्त के साथ और गहरी होती जाती है... लेकिन प्यार तो कलंकित, अपमानित, निरूत्तरित है.. चलिये जाने देते हैं, मुझे इसका जवाब चाहिये भी नहीं... मै कुछ और ही सोच रही हूँ। क्योंकि बड़े लोगो के बीच मे बच्चे को नही पड़ना चाहिये इसलिये मै बच्चों मे बीच मे ही पड़ती हूँ।
वैसे बड़े हो या बच्चे प्यार कलंकित, अपमानित होता ही है... पर सवाल उठता है क्यों? क्यों? हमारे देश मे भी प्यार इतना अपमानित हो गया है? प्यार की पवित्रता मिट गयी है/रही है... बचा है तो... प्यार के नाम पर गंदगी, अश्लीलता, बेवफाई और निरूत्तर होता प्यार...

इससे कुछ याद आ रहा है कि कुछ दिनो पहले पड़ोस मे किसी को बेटा पैदा हुआ, कुछ दिनो बाद मै मिलने गयी तो भईया भाभी ने कहा कि बेटा जरा इसका औरा देखना, मैने कहा कि बच्चो के औरा तो कुछ खास नही होते क्योंकि औरा तो मन कि गतिविधियों पर ज्यादा चलता है और बच्चे मे इसकी कमी पायी जाती है.. फिर भी उनकी जिद्द पर यूँ ही थोड़ा चेक किया और जो समझ मे बताया... उन्होने हँसते हुए कहा कि ये बताओ ये सीधा साधा होगा या बदमाश? मैने पूछा कि आपको क्या चाहिये? उन्होने कहा कि मुझे तो बदमाश ही चाहिये सीधे साधे लड़के अच्छे नही लगते... लड़का वही अच्छा लगता है जो १०-१२ गर्ल फ्रेन्ड पटाये, मार पीट करे....
वेल, यह उनकी पर्सनल च्वॉइस है.. मै नही कहती कि सभी लोगो की होगी, पर इस बात पर इंकार कौन कर सकता है कि ऐसी च्वॉइस दूसरे किसी की नहीं होगी?
ऐसे परिवेश मे जो लड़का पलेगा वो किस तरह के भविष्य को निरूपित करेगा... कोई भी अच्छे से अंदाजा लगा सकता है। उस लड़के के लिये प्यार महज खिलवाड़ ही होगा और कुछ नहीं...

ऐसी लड़की के लिये भी माँ-बाप की अपनी च्वॉइस होती है... वो सीधी संस्कारी, इत्यादि इत्यादि होनी चाहिये... लड़की जिस परिवेश मे पलती है (अधिकांशतः) प्यार उसके लिये एक हौवे से कम नही होता... घर मे लोग प्यार का नाम तक आने नहीं देते, लड़की अपना कोई अनुभव अपने अभिभावक से बांट नही पाती, इस कंडीशन मे वह बाहर मारी मारी फिरती है/फिरेगी ही... आखिर कहीं ना कहीं उसे कुछ ना कुछ तो चाहिये और ऐसे मे उसे किसी ऐसे लड़के का साथ मिल जाता है... जो लड़की के भावना को महज खिलवाड़ ही समझता है... और जो होता है वो मुझे बताने की जरूरत नही है...

पर इसमे गलती किसकी है? इस तरह के परिवेश मे पले युवक किसी पार्क मे प्यार की पवित्रता को नज़र-अन्दाज़ करते नज़र आ जायें तो इसमे कोई आश्चर्य नही होना चाहिये... खराबी तो नीव मे मिली है उपर से कितना भी लीपा पोती कर लो बात नही बनेगी।

अक्सर मुझसे टीनेज लड़कियाँ मिलती हैं और अपने कुछ अनसुलझे सवालों के जवाब मांगती रहती हैं, सवाल ऐसे कोई भारी भरकम नही होते जिनका जवाब उनके माता पिता नहीं दे सकते... मै अक्सर उनको कहती हूँ कि आप अपने ममा से ही पूछ सकती थी... तो जवाब होता है कि ना दीदी वो तुरन्त मुझे गलत समझ लेती हैं...
पता नहीं, क्या माँ इस दौर से नही गुजरी होंगी? जो बदलाव शारिरिक, मानसिक हारमोनल स्तर के दौर से यह लड़की गुजर रही है... उसकी माँ को भी गुजरना पड़ा होगा और आने वाली प्रत्येक पीढ़ी को गुजरना पड़ेगा... तब माँ बेटी में ऐसा रिश्ता क्यों नहीं बन पाता कि अपनी बेटी को इस नाजुक दौर मे पूरी सहायता दे, उसका पथ प्रदर्शक बने ना कि एक डिक्टेटर बन जायें।
मातृत्व समुदाय मुझे माफ करें पर अधिकांश लड़कियों की माँ यही काम करती हैं... जबकि माँ बेटी का रिश्ता अत्यंत मधुर होना चाहिये... इस रिश्ते पर अगर यूंही डिक्टेटरशिप लगी रही तो प्यार की स्थिती इससे भी कहीं ज्यादा भयावह होगी। यह सोच जब तक नही बदलेगी कि बेटा भी बदमाश नही शरीफ हो, इज्जत करना जाने, प्यार की पवित्रता को पहचाने वह अपने अनुभव अपने अन्दर हो रहे बदलाव को समझे तब तक अच्छे युवक के जन्म लेने का सवाल ही नही उठता, यही बात बेटी के लिये भी लागू होती है। अगर ऐसा नही हुआ तो प्यार का जो अर्थ अनर्थ निकलेगा/निकल रहा है वो शर्म-सार करता ही रहेगा... चाहें कितने भी बन्दिशें लगा दी जायें... जब तक नींव मजबूत ना हो इमारत को तो ढ़हना ही है...
समर्थ, शक्तिशाली, चरित्रवान युवा आसमान से उतर कर नहीं आयेंगे ना ही उनको जबरदस्ती ऐसा बनाया जा सकेगा... उसके लिये शुरूआत करनी पड़ेगी अपने ही घर से... वरना कितने भी दल बन जाये इस अनर्थ के अर्थ को रोक देना किसी के बस का नही हो सकता और जो होगा/हो रहा है उसके जिम्मेदार आप ही होंगे/हैं।
चरित्र कोई घूँटी नहीं हैं जिसे पिला दिया जाये और पीने वाला आत्मसात कर ले। बल्कि चरित्र हनन क्यों हो रहा है इसके कारण को जानकर निवारण की आवश्यकता है... वरना प्रेम दिवस यूँहीं अपमानित होता रहेगा वो भी उस उस देश मे जहाँ राधा कृष्ण की वन्दना की जाती है।
चलिये बहुत हो ली भाषण बाजी अब हम जा रहे हैं... अपने पापा जी को वेलेनटाइन डे विश करने... इसके लिये हमको डंडे नही पड़ने वाले बल्कि बहुत मजा आने वाला है... ये अलग बात है कि पापा जी के अचानक आये बिजनेस टूर के कारण सारे प्लानिंग धरी की धरी रह गयी... पर हम तो रोज रोज वेलेनटाइन डे मनाते हैं, वो भी नये नये अंदाज मे... वो हम आपको फिर कभी बतायेंगे अभी थोड़ी सी ममा पापा जी को तंग करके मजे लेने जा रहे हैं।

बुधवार, 21 जनवरी 2009

शेयर बाजार, मै और नारदमुनि

ओबामा को लेकर हम सब कल बहूत उत्साहित थे। सारे ब्रोकर्स कल बोल रहे थे, मैडम खरीद लिजीये कल बाजार पक्का बढ़ेगा। अच्छा जी, हम भी उत्साहित हूए, पर थोड़ा कम, सिर्फ ट्रेडिंग के लिहाज से खरीददारी मे लग गये, शाम तक बाजार ने कुछ अच्छा मोड़ लिया निचे से ४० प्वाईंट निफ्टी आगे आई तो आधी प्रोफिट घर आई.. और आधी ओबामा जी को सलामी देने के लिये रख ली... पर रात से मेरी सूरत लटक गयी क्योंकि मेरी खरीद F&O की थी, अक्सर मै १५ तारीख के बाद इसमे हाथ नही डालती। पर ओबामा की सलामी मे डाला हुआ हाथ... हाथ जलने का डर सताने लगा। अब हाथ जल जाये तो कोई सलामी कैसे इसलिये रात भर जोड़ती रही कि इतना % गिरेगा तो इतने का लॉस होगा। पापा जी ने धीरज रखवाया कि कोई बात नही आज जितना आया है उतना जायेगा.. जाओ सो जाओ... यकिन मानिये सपने मे भी यही देखा कि बाजार तो गया। सुबह जब बाजार खुला तो राहत की साँस ली... ऐसा कुछ नही था जो सोचा था... १% कि प्राफिट के साथ f&o section को खाली किया और उसके बाद ऑप्शन मे पुट खरीदे.. और अभी.. एकदम मजे ले रही हूँ, ओबामा जी को सलामी तो दे दी, पर अपने तरीके से :)

अब इतनी टेन्शन के बाद नारद जी की कहानी झेलिये...

नारदमुनि का नारदनामा और शेयर बाजार


नारद मुनि अपनी आदत के अनुसार यायावरी में स्वर्ग पहुँच गये। यहां पर नारद जी ने देवराज को दुखी पाया। देवराज इन्द्र को दुखी देख नारदमुनि पहली बार अपना तखल्‍लुस नारायण नारायण का उच्‍चारण भूल गए। इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्‍ड रिकार्ड में दर्ज कराया जा सकता है। प्रणाम देवर्षि, माफी चाहता हूँ पर नारद जी ने अपनी गलती स्‍वीकार की कि वे नारायण नारायण कहना भूल गए इसलिए उनका ध्‍यान न खिंच सका। देवों के देव इन्‍द्र ने बतलाया कि अब मृत्युलोक वासी इंसान उनकी पूजा-अर्चना से विमुख होता जा रहा है जिससे देवताओं का वर्चस्व मृत्युलोक में खतरे में पड़ गया है।

नारद मुनि अपनी त्रिकाल दृष्टि से देखकर बतलाते हैं कि आजकल मृत्युलोक निवासी शेयर बाजार में होने वाले उतार चढाव के कारण भयंकर रूप से परेशान हैं और यह परेशानी शेयर बाजार के न चढ़ने के कारण इतनी अधिक बढ़ गयी है कि वे सांस तक खींचना भूल जाते हैं, फिर भला फिर पूजा-अर्चना भला कैसे याद रह सकती है। इस पर देवराज और चिंता में डूब जाते हैं। इतना डूब जाते हैं कि नारदमुनि उनके सामने साकार हैं, वे यह भी भूल जाते हैं। तब नारद मुनि फिर एक बार नारायण नारायण गुंजायमान करते हैं। और एकाएक झटके से देवेन्‍द्र चिंता से बाहर आते हैं।

नारदमुनि देवराज को सलाह देते हैं कि "देवराज आप कुबेर को आदेश करें कि वे शेयर बाजार को मंदी के इस भीषण प्रकोप से बचायें, अपना धन शेयर बाजार में झोंक दें और किसी भी तरह से बाजार को मंदी की राह से निकाल कर तेजी की राह पर सरपट दौड़ायें और महाराज कुबेर के इस करतब की कथा मृत्‍युलोक में इंडिया टीवी, आईबीएन सेवन सरीखे चैनलों के माध्‍यम से प्रचारित करें, वे चैनल इसी प्रकार की कथाओं के प्रसारण में निपुण हैं और सिद्धता प्राप्‍त कर चुके हैं जिससे उनकी टी आर पी भी तेजी से बढ़ रही है।

कुबेर कथा में यह बतलाया जाये कि महाराज कुबेर द्वारा मृत्‍युलोक निवासियों का यह दुख नहीं देखा गया क्‍योंकि वैसे भी उस लोक के वासियों को तो अंतत: मर ही जाना है तो उनका बार बार मरना असहनीय हो रहा है, जिससे देवताओं के प्रति मृत्‍युलोक वासियों की आस्‍था फिर मजबूत होगी और वे फिर से देवताओं की इबादत में मशगूल हो जायेंगे। वैसे भी पृथ्‍वी पर भारत के सिवाय तो देवताओं की कोई ज्‍यादा पूछ है नहीं, वहां से भी खत्‍म हो गई तो फिर देवताओं को अमर होकर भी क्‍या लाभ मिलेगा इसलिए यह तात्‍कालिक उपाय किए जाने चाहियें।

वो एक उक्ति है न कि विनाशकाले विपरीत बुद्धि तो नारदमुनि की सलाह ने तुरंत असर किया और देवराज इन्‍द्र को यह युक्ति पसन्द आयी और उन्होने फौरन कुबेर को आदेश दे दिया।
उधर नारदमुनि नारायण नारायण अलापते हुए पाताल लोक में भी इस बाबत हंगामा मचा कर सलाह दे आये। इससे एक बार फिर स्‍पष्‍ट हो गया कि इंडिया टीवी, आई बी एन सेवन सरीखे चैनलों की संकल्‍पना नारदमुनि के किरदार से प्रेरित होकर पृथ्‍वीवासियों ने की होगी। इधर नारद जी ने दानवासुर को भी इस गुप्‍त तथ्‍य की जानकारी लगे हाथ दे दी कि मृत्‍युलोक वासियों में देवराज की टी आर पी कम हो रही जिसके मूल में गिरता और तेजी से गिरता शेयर बाजार है और यही वह अवसर है जब रावण के कुकर्मों द्वारा खत्‍म हुई टी आर पी को दोबारा से गेन करने के सुअवसर का लाभ उठाया जा सकता है तो दानव भी भारतीय शेयर बाजार में कुछ इस तरह कूद पड़े कि कहना पड़ा पांचों घी में और सिर कड़ाही के अंदर।

दानवासुर ने भी सोचा कि यही अच्छा समय है जब अपनी टी आर पी में बढ़ोतरी की जा सकती है और इंसानों के कमजोर से नाजुक दिल पर बाजार को संभाल कर कब्जा किया जा सकता है। एक बार मृत्‍युलोक निवासी हमारे झांसे में फंस गये तो फिर दानवों को स्‍वर्ग पर कब्‍जा करने में कोई अड़चन नहीं आयेगी।

दोनों ही पक्षों के फाइनेंसियल एक्‍सपर्ट्स अपनी अमरता का लाभ लेते हुए मृत्युलोक पर कूद पड़े क्‍योंकि अगर वे पारंपिक यातायात सेवा से आते तो देर हो जाती और उतर आयें और उन्‍होंने शुरू कर दिया अपना शेयर बाजार सुधारो अभियान। जहां तक उन्‍हें समझ आया उसके अनुसार अमेरिका में चल रही वित्तीय समस्या, क्रुड के रोजाना बढ़ते गिरते भाव, महंगाई का सुपरक्‍वीन बनते जाना, कम्पनियों का दिवालिया होना, मौसम की मार, करेन्सी मे उठाव-पटक इत्‍यादि ढेरों कारण हैं, जिससे शेयर बाजार रसातल में समाता जा रहा है।ं

दिव्‍य शक्तियों से सराबोर दोनों पक्षों ने सोचा कि क्‍यों न पहले अमेरिका के वित्‍तीय संकट को पहले हल किया जाये और वे बेचारे पैसों का इन्तजाम करते गये... करते गये... नतीजतन अमेरिका के पास लिक्वेडिटी ज्यादा हो गयी जिससे महंगाई बढ़ने लगी, महंगाई के चढ़ने का सीधा असर वॉल स्ट्रीट पर दीखने लगा जिससे देश दुनिया के शेयर बाजारों में हड़कम्‍प बच गया .... चारों तरफ त्राहि माम, त्राहि मामा, त्राहि बाप, त्राहि चाचा इत्‍यादि की चीखें सुनाई पड़ने लगीं जिससे देव-दानव अपने अपने खेमे मे परेशान हो गये... अब क्या होगा ? आखिर यह दांव उनके लिए उल्‍टा कैसे पड़ गया ...

एक बार फिर मृत्युलोक का सरकारी टूर बनाया गया और एक नई सोची समझी नीति के अनुसार इस बार क्रूड कि कीमतों को स्थिर किया पर इससे भी ज्‍यादा सकारात्‍मक असर दिखाई नहीं दिया सिर्फ चंद रिफाईनरीज शेयर्स की दशा ही सुधरी। पर उनके एक जगह टिकने के कारण बहुत मुश्किल हुई कयोंकि अब इन शेयरों के मूल्‍यों कोई खास उतार चढ़ाव न होने के कारण इन स्टाक्स पर शेयर बाजार के महारथी दलालों ने दांव लगाना ही छोड़ दिया जिससे यह आइडिया भी मजबूत पी ई के बावजूद कोई कमाल न दिखला सका।

दोनों खेमों ने अपने एक्‍सपर्ट एडवाइजर्स की सलाह पर कुछ चुनिंदा स्टाक्स बाजार कीमत पर खरीदना शुरू किया। इससे इंवेस्‍टर्स की तो लॉटरी लग गई अपने शेयरों के अच्‍छे भाव मिलने पर उन्‍होंने मुनाफा काटना शुरू कर दिया और शेयर बाजार का सेंसेक्‍स फिर लुढ़क लुढ़क पिछले से भी निचले स्‍तर पर आ गया।

आप बिल्‍कुल सही सोच रहें। इसके बाद न तो देवों और न दानवों के पास ही धन बचा कि वे शेयर बाजार में जमे रहते। नारदमुनि की सलाह पर अपनी टी आर पी बढ़ाने का सपना तो टूट ही गया। तो ऐसा है शेयर बाजार का सेंसेक्‍स कि इसका सही सेक्‍स किसी को भी पता नहीं चलता। जिसके कारण यह रोज रोज है नीचे गिरता।

और आपका यह सोचना भी अपनी जगह ठीक है कि दोनों पक्ष एक ही रणनीति पर क्‍यों चल रहे थे तो आपकी जानकारी के लिए यह बतला दूं कि दोनों के पास दिव्‍य शक्तियां होती हैं जिनसे वे विपक्षी के मन की सही सही जानकारी हासिल कर लेते हैं। पर उनकी ये शक्तियां नारदमुनि पर बेअसर रहती हैं और शेयर बाजार में घुसनेवाला तो विवेकशून्‍य हो जाता है इसलिए शेयर बाजार की लुटिया के बारे में कुछ सोच ही नहीं पाता है कि शेयर बाजार की लुटिया है, डूबा कर ही जान लेगी।

नारदमुनि की सलाह पर शेयर बाजार के चक्कर में देवराज और दानवासुर दोनों ने ही अपना सारा धन गँवा दिया और साथ ही चकनाचूर हुआ उनका प्रभुत्‍व कायम करने का सपना। तो जिस शेयर बाजार ने देव और दानवों तक की वॉट लगा दी तो मृत्‍युलोक निवासी आखिर किस खेत की मूली हैं, वे भी बिल्‍कुल मामूली हैं।

अब ये मत पुछियेगा कि ये सब मुझे कैसे पता चला... भाई वही रात मे जो सपने आये थे ना.. उन्ही सपनो मे नारद जी ने आके सुनाया.. तभी तो हमने उल्टी गंगा मे चैन की बंसी बजाई।

मंगलवार, 20 जनवरी 2009

कुछ विचार

कभी कभी किसी मोड़ पर रूककर
टटोलती हूँ, अपने आपको
सोचती हूँ
क्या तुम सही थे?

कई बार सोचती हूँ
और जब तुम याद दिलाते हो
कि आज भी तुम हो
तब बेचैनी बढ जाती है

पर सोचो ना
"तुम हो" तुमने यह जताया
पर "मै भी हूँ"
क्या तुम यह जान सके?

"मेरे होने" को तुम
अनदेखा करते रह गये
तुम्हारा होना
इतना हावी हो गया कि
मुझे खुद को बचाने के लिये
तुम्हारी गली छोड़नी पड़ी

"तुम हो" मै जानती हूँ
पर "मै" भी "हूँ"
तुम नही जान पाये
"मै" वही जी पाऊँगी
जहाँ "मेरा होना" भी होगा

यही सोचकर
फिर से चल पड़ी हूँ
पर तुम्हे बताकर जाना चाहती हूँ
कि जब तुम्हे लगे कि
"तुम्हारे" साथ "मेरा" भी होना
तुम्हे परेशान नही करता
आ जाना
फिर इस अनंत गगन मे
"हम" रहेंगे
मै और तुम से अलग
"हम" बनकर