गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

तुम बिन

मेरी मुहब्बत इबादत से कम नही है।
तुम्हारे बिना ये जीवन सनम नही है।
तुम ही मेरे ईश्वर मेरे खुदा हो
सच कहूँ तो तुम नही तो मै भी नही हूँ।
मेरी शबो-रात तुम से होती है शुरू
और हर लम्हा तुम पर खत्म होता है।
आगाज़ हो तुम मेरे जीवन का
अब अंजाम का डर है कहां
कि होगा इस सफर अब क्या
संग तुम्हारे चलती रहूँगी
रास्ता भले ही हो कैसा भी कभी।

मेरी मुहब्बत इबादत से कम नही है
तुम्हारे बिना ये जीवन सनम नही है।

मेरे दिल मे बस रही हर धड़कन की कसम
कि हर पल बसता है चेहरा तुम्हारा ही
जब से देखा है तुमको
कुछ और दिखता नही है
हर शय मे दिखता है चेहरा बस तुम्हारा ही।
आगाज़ो-अंजाम की परवा है कि अब
तुम्हारे मुहब्बत मे डूबी ऐसी
कि अब उठने कि इच्छा ही नही है।

मेरी मुहब्बत इबादत से कम नही है।
तुम्हारे बिना ये जीवन सनम नही है।

मंगलवार, 23 मार्च 2010

इच्छा

याचना नही है
बता रही हूँ।
कि अब जीना चाहती हूँ
बहूत हो गया
अब तलक तुम्हारे बताये रास्ते पर
जीती गयी,
जीती गयी या
यूँ कहूँ की
जीवन को ढो़ती गयी।
पर अब ऐसा नही होगा
हाँ
तुम्हे कोई दोष नही दे रही हूँ
ना ही अपनी स्थिती को
जायज या नाजायज
बताने के लिये लड़ रही हूँ।
मै बस इतना कह रही हूँ
कि
आगे से अब सब बदलेगा
मै अपने शर्तो पर
अपने आपको रखूँगी
और जीवन को ढो़ने के बजाय
जीऊँगी।
हाँ मेरे जीवन मे
अगर तुम चाहो तो
तुम भी शामिल रहोगे।
ना यह न्योता है
ना निहोरा है।
बतला रही हूँ।
तुम चाहो तो
मेरे हमकदम बनकर
साथ चल सकते हो।
एक आसमान जिसमे हम दोनो का
अपना अपना अस्तित्व हो
वो जमीं
जिसमे हम दोनो की अपनी अपनी
जड़े हों
वो मौसम
जिसमे हम दोनो की खुशबु हो
ऐसे वातावरण मे जहा
हम दोनो साँस ले सकें।
पर अगर तुम्हे ये मन्जूर ना हो
तो भी
मै बता रही हूँ।

गुरुवार, 7 जनवरी 2010

जानते हो?

मेरे सेन्टर पर आने वाली लगभग हरेक महिला अपने पति से यह कहना चाहती है... बस उन्ही के कुछ भावो को शब्द देने की कोशिश की है...

जानते हो
एक दबी हुई इच्छा है कि
मै ऑफिस से आऊँ
और तुम घर पर रहना
आकर तुम्हे कहूँ
जान, आज काम ज्यादा था
इतना थक गयी की
कि पुछो मत
तुम्हारा ही काम अच्छा है
घर मे रहते हो
सारा दिन सोये रहते हो....

जानते हो
जी चाहता है कि
मै भी मचल के कहूँ
जान, तुम ऐसे क्यों रहते हो
हमारा भारतीय परिधान
धोती कुर्ता
कितना अच्छा लगता है
क्यो तुम हर दिन अंग्रेज
बन इठलाते हो

जानते हो
कुंडली मारकर
एक इच्छा दबी बैठी है
कि एक दिन शान से कहूँ
जानते हो दाल चावल का भाव
इतने महंगे सामान
मेरी जेब से आते हैं
तुम्हारे घरवाले थोड़ी ना लाते हो

जान... जानते हो...