मंगलवार, 23 मार्च 2010

इच्छा

याचना नही है
बता रही हूँ।
कि अब जीना चाहती हूँ
बहूत हो गया
अब तलक तुम्हारे बताये रास्ते पर
जीती गयी,
जीती गयी या
यूँ कहूँ की
जीवन को ढो़ती गयी।
पर अब ऐसा नही होगा
हाँ
तुम्हे कोई दोष नही दे रही हूँ
ना ही अपनी स्थिती को
जायज या नाजायज
बताने के लिये लड़ रही हूँ।
मै बस इतना कह रही हूँ
कि
आगे से अब सब बदलेगा
मै अपने शर्तो पर
अपने आपको रखूँगी
और जीवन को ढो़ने के बजाय
जीऊँगी।
हाँ मेरे जीवन मे
अगर तुम चाहो तो
तुम भी शामिल रहोगे।
ना यह न्योता है
ना निहोरा है।
बतला रही हूँ।
तुम चाहो तो
मेरे हमकदम बनकर
साथ चल सकते हो।
एक आसमान जिसमे हम दोनो का
अपना अपना अस्तित्व हो
वो जमीं
जिसमे हम दोनो की अपनी अपनी
जड़े हों
वो मौसम
जिसमे हम दोनो की खुशबु हो
ऐसे वातावरण मे जहा
हम दोनो साँस ले सकें।
पर अगर तुम्हे ये मन्जूर ना हो
तो भी
मै बता रही हूँ।