tag:blogger.com,1999:blog-6191283940613008943.post8598836397350090434..comments2023-06-14T20:37:21.304+05:30Comments on मैं और कुछ नहीं...: आत्म हत्या क्यों जनाब?गरिमाhttp://www.blogger.com/profile/12713507798975161901noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-6191283940613008943.post-77199582494906424692022-03-05T05:23:26.308+05:302022-03-05T05:23:26.308+05:30Slots Casino - MapyRO
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हीलिन्ग में बहुत विश्वास रखती हूं,इसलिये यकीन के साथ आपकी बात का समर्थन कर सकती हूं.ये बात भी सच है कि इस प्रकार की मानसिकता वाले लोगों को लोगों के साथ ज़्यादा समय बिताना चाहिये.Ila's world, in and outhttps://www.blogger.com/profile/13648932193142137941noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6191283940613008943.post-30928843199113294082008-07-23T10:30:00.000+05:302008-07-23T10:30:00.000+05:30बहुत अच्छा लेख लिखा आपने... मुझे बहुत ज्यादा जानका...बहुत अच्छा लेख लिखा आपने... मुझे बहुत ज्यादा जानकारी तो नहीं है पर अपने जैसे परिवेश वाले ऐसा करते हैं तो बहुत दुःख होता है... ऐसे ही एक दिन <A HREF="http://ojha-uwaach.blogspot.com/2008/06/iit.html" REL="nofollow"> ये पोस्ट</A> लिखी थी.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6191283940613008943.post-53513682560802580512008-07-22T12:27:00.000+05:302008-07-22T12:27:00.000+05:30देर से टिपण्णी के लिए क्षमा करियेगा डा दीदी. आज ही...देर से टिपण्णी के लिए क्षमा करियेगा डा दीदी. आज ही लेख देखा पर कुछ कहे बिना नही रुका गया. बहुत अच्छा लिखा है आपने. सबसे अची बात है की विषय बहुत सही चुना. आजकल आत्महत्या की प्रवृत्ति बहुत बढ़ रही है. अब उसके कारण पर बहुत चर्चा आपके लेख और टिप्पणिओं में हो ही गई है, पर एक बात और जोडूंगा, कई बार न तो कायर करते हैं और न ही समझदार, आजकल जब पता चलता है की मात्र ११ -१२ साल के बच्चे ने २ नम्बर कम आने पे आत्महत्या कर ली तो ये दोष बच्चे की समझ या कायरता का न होके समाज और उसके अभिवावक का होता है..<BR/>चलिए, चर्चा होती रहेगी अब. कृपया ऐसे ही लेख लिखती रहिये..Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6191283940613008943.post-56343434567876059262008-07-22T08:49:00.000+05:302008-07-22T08:49:00.000+05:30भईया, मुझे भी अच्छा लग रहा है कि पहली टिप्पणी आपकी...भईया, मुझे भी अच्छा लग रहा है कि पहली टिप्पणी आपकी आयी। अब वो कायर होते हैं कि नही इस पर कभी सोचा नही है।<BR/><BR/>अनुराग जी मै शुक्रिया, पेशे से मै ऊर्जा चिकित्सक हूँ इस नाते क्रिस्टल हीलींग भी करती हूँ, ऊजान्वित क्रिस्टल आपके औरा को बैलेंस करने मे अत्यन्त सहायक होता है, और जब औरा संतुलुत हो तो बहुत हद तक ऐसे आवेश के दौरान सही फ़ैसला लिया जायेगा, इसलिये क्रिस्टल की बात कही, मानना ना मानना आपकी अपनी मर्जी पर है।<BR/><BR/>आशीष जी, ऐसी सोच हो फ़िर क्या परेशानी हो सकती है भला? शाकाहारा या मांसाहार इस पर कोई खास टिप्पणी नही दे सकती, मै खुद शाकाहारी हूँ, सिर्फ़ इसलिये कह देना कि मेरे दुसरो से शुद्ध होंगे, प्रासंगिक नही लग रहा है।<BR/><BR/>ज्ञानदत्त जी मै बस लिखना जानती हूँ, पाठक कैसे आयेंगे कहाँ से आयेंगे जानकारी नही है, अब कभी किसी विषय पर अच्छा सोच लेती हूँ और कभी खुद जब दुबारा सोचती हूँ तो लगता है कि क्या बकवास सोच है।<BR/><BR/>समीर लाल जी बिल्कुल सही कहा आपने, चिन्तन होना चाहिये इस मुद्दे पर।<BR/><BR/>अनीता जी आपसे सहमत हूँ और अभी हम दोनो को और भी इस पर सोचना बाकी है, अभी सोच की असीम संभावनाये हमे बुला रही हैं।<BR/><BR/>विपिन जी शुक्रिया।<BR/><BR/>राज भाटिया जी, जैसा कि मैने भईया को बोला कि अभी इस पर नही सोचा कि वो कायर होते हैं या नही पर इतना समझती हूँ कि भले ये जिन्दगी अकेले की नही होती पर अपनी मजबुत पहचान बनाने की इच्छा हर किसी के अन्दर होता है, जब इस कडी मे अपने ही दुश्मन से दिखने लगे(हालांकि वो होते नही हैं, भ्रांति मात्र है) उस वक्त उनपर क्या बीतेगी, सोच उत्पन्न ही नही होती है।<BR/><BR/>अनुप जी वास्तव ने हल तो यही है। अब आपकी बात को टालना मेरे बस मे नही था, इसलिये पोस्ट तो डालना ही था। आज की भोजपूरी कहानी भी जरूर पढियेगा।<BR/><BR/>अमित जी वास्तव मे कुछ नही बहुत कुछ बाते रह गयी हैं, आपके लेख इंतजार रहेगा।<BR/><BR/>और अन्त मे सबको अच्छा वाला धन्यवाद। :)गरिमाhttps://www.blogger.com/profile/12713507798975161901noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6191283940613008943.post-90256817997201456702008-07-22T00:23:00.000+05:302008-07-22T00:23:00.000+05:30अच्छा लिखा है, कुछ बातों छूट गई महसूस होती हैं जो ...अच्छा लिखा है, कुछ बातों छूट गई महसूस होती हैं जो मेरे ज़ेहन में आ रही हैं, इस पर मैं भी एक पोस्ट ठेल दूँगा। कुमार आशीष जी की शाकाहारी टिप्पणी से सहमत नहीं हूँ, इस पर भी लिखूँगा। और अनीता जी की कायरता वाली टिप्पणी से भी असहमति(पूर्णतया नहीं) है, इसलिए इस पर भी लिखूँगा।<BR/><BR/>कब? जल्दी ही, बस अभी विचार आदि ज़ेहन में आ रहे हैं तो उनको एकत्र कर रहा हूँ, जल्द ही एक पोस्ट के रुप में मेरे ब्लॉग पर हाज़िर। :)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6191283940613008943.post-56422826649568865012008-07-21T23:41:00.000+05:302008-07-21T23:41:00.000+05:30अच्छा किया जो आपने इसे पोस्ट किया। निष्कर्ष अच्छे ...अच्छा किया जो आपने इसे पोस्ट किया। निष्कर्ष अच्छे हैं। अपने पर भरोसा रखना और सफ़लता असफ़लता को दिल पर न लेना बहुत जरूरी है संतुलन बनाये रखने के लिये। :)अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6191283940613008943.post-86974741326157442192008-07-21T22:25:00.000+05:302008-07-21T22:25:00.000+05:30गरिमा जी,आप ने एक अलग सा विषय चुना हे, मे अंकुर जी...गरिमा जी,आप ने एक अलग सा विषय चुना हे, मे अंकुर जी से सहमत हु,एक कायर आदमी ही यह कदम उठाता हे,यह जीवन सिर्फ़ हमारा अकेले का नही हे, ओर हम चाह कर भी आजाद नही हो सकते, फ़िर कोन से हक से हम इसे खत्म कर सकते हे,इन्सान वही हे जो हर स्थिति से लडे,आत्म हत्या एक कायर पन ही हे, ओर अपने पीछे जिन को छोड कर जाते हे ऎसे लोग उन की जिन्दगी भी खाराब कर जाते हे,लोग उम्र भर ताने मारते हे, इन के परिवार मे से उसने आत्म हत्या की थी बेचारा दुखी था... बाप से , मां से या किसी का भी नाम ले कर उसे बदनामी मिलती हे उस मरने वाले की वेवकुफ़ी से,राज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6191283940613008943.post-24813261215830402772008-07-21T20:24:00.000+05:302008-07-21T20:24:00.000+05:30ज्वलंत गंभीर मुद्दे................चिन्तन की आवश्य...ज्वलंत गंभीर मुद्दे................<BR/><BR/>चिन्तन की आवश्यकताvipinkizindagihttps://www.blogger.com/profile/06698270014124048966noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6191283940613008943.post-6449111662731157662008-07-21T18:42:00.000+05:302008-07-21T18:42:00.000+05:30गरिमा जी बहुत अच्छा विश्लेष्ण किया है आत्महत्या का...गरिमा जी बहुत अच्छा विश्लेष्ण किया है आत्महत्या का। कुछ और विस्तार जोड़ना चाहूंगी, पहली बात तो ये कि मैं अकुंर जी से सहमत नहीं कि आत्महत्या करने वाले कायर होते हैं( हालांकि जमाना यही कहता है), खुद को तकलीफ़ पहुंचाना और वो भी इस हद्द तक बहुत बड़ा जिगरा मांगता है। <BR/>दूसरी बात कई आत्महत्या करने वाले वो होते हैं जो लंबे अर्से तक अपने जीवन में लगी गांठे सुलझाने की कौशिश कर रहे होते हैं (वो काबिल होते हैं जैसा आप ने भी कहा) पर गांठे जितनी सुलझाओ उतनी और लग जाती हैं। बेसिकली अपने अच्छेपन की वजह से मार्गिनलाइज्ड होते चले जाते हैं, ऐसे में यां तो अपने परिवेश से दूर कहीं नयी शुरुवात करनी होती है और अगर ऐसा करना मुमकिन नहीं और इस परिवेश को बर्दाश करना भी मुमकिन नहीं तो मुक्ति का यही एक विक्ल्प दिखता है। <BR/>मरने वाला ये नहीं सोचता कि उसके मरने के बाद लोग उसके बारे में क्या कहेगें, या उसके घर वालों को क्या तकलीफ़े उठानी पड़ेगीं, सिर्फ़ एक ही बात सर्वोपरी होती है, इस रिसते दर्द से मुक्तिAnita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6191283940613008943.post-6367514369888133352008-07-21T17:56:00.000+05:302008-07-21T17:56:00.000+05:30बहुत गंभीर मुद्दे पर अति सार्थक एवं आवश्यक आलेख. ब...बहुत गंभीर मुद्दे पर अति सार्थक एवं आवश्यक आलेख. बहुत पसंद आया. सभी को इस कायरता भरे कृत्य पर चिन्तन मनन करना चाहिये.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6191283940613008943.post-15723208786270879192008-07-21T15:55:00.000+05:302008-07-21T15:55:00.000+05:30ओह, बहुत सुन्दर लिखा और बहुत गरिमामय! मैं कल्पना न...ओह, बहुत सुन्दर लिखा और बहुत गरिमामय! मैं कल्पना नहीं कर सकता था कि किसी व्यक्ति का मेरे ब्लॉग पर कमेण्ट मुझे उसके ब्लॉग पोस्ट पर ले जायेगा और अच्छी पोस्ट मुझे उसका पाठक बना देगी!<BR/><B>आत्महत्या</B> पर इतने विस्तृत आयाम से लिखना वाकई प्रशंसनीय है। <BR/>मुझे लगता है कि आपको मालुम है पाठक कहां से आते हैं और आपके पास आयेंगे भी। निरन्तरता बनी रहे - बस!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6191283940613008943.post-18028110311984867292008-07-21T15:46:00.000+05:302008-07-21T15:46:00.000+05:30ईशावास्यमिदं सर्वं यद्किंचत् जगत्याम जगततेन त्य...ईशावास्यमिदं सर्वं यद्किंचत् जगत्याम जगत<BR/>तेन त्यक्तेन भुंजीथा: मा गृध: कस्यस्विद धनम्..<BR/>यह उक्ति अंत:करण में रची बसी हो.. फिर उद्धत कार्य सम्भव नहीं। समय पर प्रभु की याद आ जाये इसके लिए अधिकाधिक समर्पण और विश्वास आवश्यक है। मेरे जीवन में भी ऐसा एक क्षण आया था, जो दूसरे क्षण जीवन के प्रवाह में डोल गया। <BR/>एक बात और शाकाहार जरूरी है, आत्महत्या के आवेश को धनात्मक दिशा में मोड़ने के लिए।आशीष "अंशुमाली"https://www.blogger.com/profile/07525720814604262467noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6191283940613008943.post-72369977482584499582008-07-21T13:17:00.000+05:302008-07-21T13:17:00.000+05:30बाकि बातें तो ठीक है ये गोल्डन क्रिस्टल वाली बात ब...बाकि बातें तो ठीक है ये गोल्डन क्रिस्टल वाली बात बिल्कुल अंधविश्वास से भरी लगी..अगर आपके पास ढेरो दोस्त है या सिर्फ़ कुछ चाँद दोस्त है उनसे लगातार संपर्क में रहिये ,अपना दिल खोलकर बातें करिए ओर अपनी जिंदगी में कुछ "क्वालिटी समय"<BR/>जरूर निकाले...डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6191283940613008943.post-12313395227518343542008-07-21T12:19:00.000+05:302008-07-21T12:19:00.000+05:30ख़ुशी हुई गरिमा की पहली टिप्पणी मेरी रही,और ख़ुशी ...ख़ुशी हुई गरिमा की पहली टिप्पणी मेरी रही,और ख़ुशी इस बात की भी है की आपने इस ज्वलंत और सर्वहित मुद्दे पर लेख दिया,कारण जो भी हो पर इस कायरता वाले काम को करने वाले भी कायर ही हैं जो दुनिया से लड़ नहीं सकते बस बाते करते हैं बड़ी बड़ी...............अंकुरhttps://www.blogger.com/profile/15943846029414323195noreply@blogger.com