जन्म तो हुआ,
जीवन ना मिला।
साँसे तो मिली,
लेने को इजाजत ना मिली।
दिल तो है...
मुस्कुराने का मौसम न मिला।
है मेरा भी वजूद
सोचने को वक्त न मिला।
बचपन बीता,
तानो की गुँज मे।
मौसम बदला,
चार-दिवारी मे।
कभी जो खेलना चाहा,
इनाम मे मिला,
गर्म सलाखो का तमाचा...
ये जिन्दगी है?
या मौत है?
आज भी...
कई बेटियों की चिखती आवज
पुछ रही है....
कहाँ है उनका बचपन?
क्या जीना मेरा अधिकार नही?
पर ये सवाल घुट के ही रह जाता है...
किसी के कानो तक कहाँ पहुँच पाता है!
खुला आकाश, महकता पवन, खिलखिलाता मौसम... और अचानक कही दर्द, रूठता मौसम, सिमटता जीवन, ये सभी रूप जीवन के ही रूप है, एक दुसरे से अलग पर एक दुसरे के बिना अधूरे
बुधवार, 7 मार्च 2007
गुरुवार, 1 मार्च 2007
एक सवाल
एक सवाल कई दिनो से चल रहा है,
सोचती हूँ पूछ ही लूँ।
पर किससे...?कौन सुनेगा?
कौन देगा जवाब...?
मै... या... आप...?
या वो जो...
कभी देश के नाम पर
कभी जेहाद के नाम पर
कभी जुर्म के लिये
या कानून के खातिर
खेल-खेल मे,
या राजनीति मे आकर
कितने ही घर कर देते है बरबाद।
लड्ने वालो इतना तो बता जाओ
जवाब दे दो उन अपनो को
क्या खता है उनकी...
तुम्हारे बिना
जिनके पल बन जाते हैं
जैसे सुना संग्राम
सोचती हूँ पूछ ही लूँ।
पर किससे...?कौन सुनेगा?
कौन देगा जवाब...?
मै... या... आप...?
या वो जो...
कभी देश के नाम पर
कभी जेहाद के नाम पर
कभी जुर्म के लिये
या कानून के खातिर
खेल-खेल मे,
या राजनीति मे आकर
कितने ही घर कर देते है बरबाद।
लड्ने वालो इतना तो बता जाओ
जवाब दे दो उन अपनो को
क्या खता है उनकी...
तुम्हारे बिना
जिनके पल बन जाते हैं
जैसे सुना संग्राम
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