बुधवार, 21 फ़रवरी 2007

शुरुआत... जिंदगी से

जिंदगी तेरे कई रुप
कभी छाँव कभी धुप
कभी गम, कभी खुशी
चाँद के तरह बदले रुप

ये तो हुआ हरेक कि जिंदगी की कहानी, किसी की भी जिंदगी पर ये नियम चरितार्थ होता है।
फिर भी अक्सर ऐसा होता है कि लोग अपनी मिली हुई जिंदगी को कोसते रहते है। अब ये बात पक्की है कि वो कोसने वाले लोग के कारण ही कोसते होंगे।
तो बात करते है सुख और दुख की ताकि ऐसा रास्ता रास्ता निकाल सके की सिर्फ सुख सुख ही रहे दुख ना हो ताकि जिंदगी को कोसना न हो।

तो सबसे पहले दुख क्या है?
इसकी कोई परिभाषा है?

मेरे खयाल से दुख तब होता है जब हमे हमारी इच्छित वस्तु न प्राप्त हो।
युँ तो और कई कारण होंगे हरेक इंसान की अपनी व्यक्तिगत समस्या होगी फिर भी सभी प्रकार के दुखो मे आप यही पायेंगे, तो मुख्य कारण यही हुआ कि हमे हमारी इच्छित वस्तु न प्राप्त होने की स्थिती मे दुख होता है।

सुख की परिभाषा भी मिल गयी यानि दुख की ना-मौजुदगी मतलब की हमारी सारी इच्छायें जब पुरी होती रहे तो दुख नही होगा।

अब रोज-मर्रा की जिंदगी मे इतना संभव नही कि हमारी सभी माँगे पूरी हों।
फिर ऐसा क्या करें कि हमारी ज़िंदगी मे सिर्फ सुख ही सुख हो दुख ना हो?

इतना आसान होता सभी हसरतो को पा लेना,
तो चाँद पर घर नही बना लेती।
मेरे इक इशारे पर पुरी होती सभी चाहते,
हर किसी के आँखो के अश्क मै चुरा लेती।
इतना हो जाये तो क्या कहना,
दिल से मै हँसती हर दिल को हँसा लेती।

पर जमीन पर तो घर ही नही है,
चाँद कि क्या बात करुँ।
फिर भी खुशियाँ बांटनी हैं,
कहाँ से इसकी शुरुआत करुँ।

ये एक दलील हर किसी के मुँह से सुनने को मिल जाता है।
बस इतना अन्तर है कि कोई रोता है, कोई झुठी हँसी हँसता है, और कोई जिंदगी को खुबसुरत बनाने के लिए जी-जान से मेहनत करता है।

रोने की बात तो मझे कभी जमी नहीं, औ झुठी हँसी यानि समझौता जो मुझे पसन्द नहीं, बस मेहनत का रास्ता सही लगता है।


जिंदगी फूलों की सेज नही जो हर पल सुखदायी हो। सबने सुनी होगी ये बात, मानते भी होंगे पर कभी-कभी सोचती हुँ कि अगर ये जिंदगी हर पल सुखदायी हो गयी तो क्या जीने का मजा आयेगा?
जिस तरह की सिर्फ दुख ही दुख हो सुख न हो तो जीना मुश्किल हो जाता है उसी तरह सिर्फ सुख ही सुख हो तो मुश्किल न हो जायेगा।

कभी कल्पना करती हुँ सिर्फ दिन हो रात न हो, सिर्फ बसंत हो और कोई मौसम ना आये, बहुत अजीब सा लगेगा ना, तब ये सुख ही दुख का कारण बन जायेगा। फिर क्या करेंगे?

इसलिये मेरे ख्याल मे -

नदी सी कल-कल जो बहती जायें।
हर रंग, हर मौसम का असर छाये।
जो हर लम्हे को जीना सिखलाये।
असल मे यही तो जिंदगी कहलाये।