जिंदगी तेरे कई रुप
कभी छाँव कभी धुप
कभी गम, कभी खुशी
चाँद के तरह बदले रुप
ये तो हुआ हरेक कि जिंदगी की कहानी, किसी की भी जिंदगी पर ये नियम चरितार्थ होता है।
फिर भी अक्सर ऐसा होता है कि लोग अपनी मिली हुई जिंदगी को कोसते रहते है। अब ये बात पक्की है कि वो कोसने वाले लोग के कारण ही कोसते होंगे।
तो बात करते है सुख और दुख की ताकि ऐसा रास्ता रास्ता निकाल सके की सिर्फ सुख सुख ही रहे दुख ना हो ताकि जिंदगी को कोसना न हो।
तो सबसे पहले दुख क्या है?
इसकी कोई परिभाषा है?
मेरे खयाल से दुख तब होता है जब हमे हमारी इच्छित वस्तु न प्राप्त हो।
युँ तो और कई कारण होंगे हरेक इंसान की अपनी व्यक्तिगत समस्या होगी फिर भी सभी प्रकार के दुखो मे आप यही पायेंगे, तो मुख्य कारण यही हुआ कि हमे हमारी इच्छित वस्तु न प्राप्त होने की स्थिती मे दुख होता है।
सुख की परिभाषा भी मिल गयी यानि दुख की ना-मौजुदगी मतलब की हमारी सारी इच्छायें जब पुरी होती रहे तो दुख नही होगा।
अब रोज-मर्रा की जिंदगी मे इतना संभव नही कि हमारी सभी माँगे पूरी हों।
फिर ऐसा क्या करें कि हमारी ज़िंदगी मे सिर्फ सुख ही सुख हो दुख ना हो?
इतना आसान होता सभी हसरतो को पा लेना,
तो चाँद पर घर नही बना लेती।
मेरे इक इशारे पर पुरी होती सभी चाहते,
हर किसी के आँखो के अश्क मै चुरा लेती।
इतना हो जाये तो क्या कहना,
दिल से मै हँसती हर दिल को हँसा लेती।
पर जमीन पर तो घर ही नही है,
चाँद कि क्या बात करुँ।
फिर भी खुशियाँ बांटनी हैं,
कहाँ से इसकी शुरुआत करुँ।
ये एक दलील हर किसी के मुँह से सुनने को मिल जाता है।
बस इतना अन्तर है कि कोई रोता है, कोई झुठी हँसी हँसता है, और कोई जिंदगी को खुबसुरत बनाने के लिए जी-जान से मेहनत करता है।
रोने की बात तो मझे कभी जमी नहीं, औ झुठी हँसी यानि समझौता जो मुझे पसन्द नहीं, बस मेहनत का रास्ता सही लगता है।
जिंदगी फूलों की सेज नही जो हर पल सुखदायी हो। सबने सुनी होगी ये बात, मानते भी होंगे पर कभी-कभी सोचती हुँ कि अगर ये जिंदगी हर पल सुखदायी हो गयी तो क्या जीने का मजा आयेगा?
जिस तरह की सिर्फ दुख ही दुख हो सुख न हो तो जीना मुश्किल हो जाता है उसी तरह सिर्फ सुख ही सुख हो तो मुश्किल न हो जायेगा।
कभी कल्पना करती हुँ सिर्फ दिन हो रात न हो, सिर्फ बसंत हो और कोई मौसम ना आये, बहुत अजीब सा लगेगा ना, तब ये सुख ही दुख का कारण बन जायेगा। फिर क्या करेंगे?
इसलिये मेरे ख्याल मे -
नदी सी कल-कल जो बहती जायें।
हर रंग, हर मौसम का असर छाये।
जो हर लम्हे को जीना सिखलाये।
असल मे यही तो जिंदगी कहलाये।
8 टिप्पणियां:
गरिमाजी, आपका चिट्ठाजगत में हार्दिक स्वागत है।
आपकी कविताएँ, आपके चिट्ठे पर नियमित प्रकाशित होगी, ऐसी आशा है।
तो सबसे पहले दुख क्या है?
इसकी कोई परिभाषा है?
:) दुख की परिभाषा क्यों???
"कविताएँ लिखो, पाठकों को पकड़-पकड़ कर पढ़वाओ और जबरदस्ती टिप्पणी लो" - इस सिद्धांत का नियमित पालन करते रहें और सदा मौज मे रहें :)
गरिमा जी, चिट्ठा जगत में आपका हृदय से स्वागत करता हूँ। अच्छा हुआ जो आपने चिट्ठा शुरु कर दिया अब आपकी कवितायें और विचार यहाँ पढ़ने को मिल जायेंगे।
लिखते रहिये और हमे पढ़ाते रहिये।
गरिमाजी
चिट्ठा जगत में मैं भी आपका स्वागत करता हूँ, आशा है कविताओं के साथ मजेदार लेख भी पढ़ने को मिलेंगे।
॥दस्तक॥
सबसे पहले तो आपका स्वागत है चिट्ठाजगत में। आप भी इस बीमारी की पकड़ में आ ही गई डॉक्टर साहिबा। अब कुछ कर लेना ये बीमारी न छूटेगी।
वो कविराज का फार्मूला ध्यान रखना बस, पाठक के साथ साथ मरीज भी मिल जाएंगे। :)
वो देखिए सागर भाई तो अभी से घबरा गए, "आशा है कविताओं के साथ मजेदार लेख भी पढ़ने को मिलेंगे।"
सभी को गरिमा का दिल से शुक्रिया :)
जोशी भईया लिख तो लेती हुँ पर पाठ्को के लिये कम, अपने लिये ज्यादा,और एक का ध्यान रखने कि कोशिश रहती है कि, बात वो हो जिस पर कोई टिप्पणी दे या ना दे पर जरुरत पर मेरी बात काम आ जाये.. हँसा जाये कुछ बता जाये...:)
शुक्रिया सोमेश जी कोशिश करुँगी कि कुछ अच्छा सा लिखती रहुँ।
सागर जी कुछ लिखुँगी तो जरुर कितना मजेदार होगा आप ही बता पायेंगे।
कुछ बीमारियाँ ना ही जायें तो ही अच्छा होता है ना श्रीश जी :)
फिर से आप सबका धन्यवाद :)
aramjitbaliगरिमा जी,आप अच्छा लिखी हैं ।जिन्दगी के बारे मे जो आपने लिखा उस से लगता है आपको अभी बहुत कुछ ऒर जानना होगा ।सिर्फ सुख की आशा करना ही हम सब को भटका रही है। शायद सुख की तलाश ही हमें दुखी कर रही है ।खेर ये तो मेरे निजि विचार हैं । आपकी ऒर रचनाएं भी पढ्ने को मिलती रहेगीं ऎसी आशा है।
परमजीत जी मै तो अभी कुछ नही जानती जिन्दगी के बारे मे, पर जितना जानती हुँ उतना भी नही बोलुँगी तो आगे कैसे जानुँगी :)
शुक्रिया
गरिमा
garima ji, apki to kavitaye ek se badker ek hai,
apke liye sirf ek hi baat
" app hai kamal ke"
ur poems are nothing else but only "superb"
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