गुरुवार, 1 मार्च 2007

एक सवाल

एक सवाल कई दिनो से चल रहा है,
सोचती हूँ पूछ ही लूँ।

पर किससे...?कौन सुनेगा?
कौन देगा जवाब...?
मै... या... आप...?
या वो जो...
कभी देश के नाम पर
कभी जेहाद के नाम पर
कभी जुर्म के लिये
या कानून के खातिर
खेल-खेल मे,
या राजनीति मे आकर
कितने ही घर कर देते है बरबाद।

लड्ने वालो इतना तो बता जाओ
जवाब दे दो उन अपनो को
क्या खता है उनकी...
तुम्हारे बिना
जिनके पल बन जाते हैं
जैसे सुना संग्राम

7 टिप्‍पणियां:

Manish Kumar ने कहा…

गरिमा जी अच्छा लिखा है आपने ! वैसे आप अगर वर्त्तनी की अशुद्धियों की ओर ध्यान दें तो कविता पढ़ने वाले का आनंद और बढ़ जाएगा ।

मसलन
हुँ - हूँ,
पुछ - पूछ,
राजनिती - राजनीति
सुना- सूना को सुधार लें ।

खता हमेशा उनकी होगी उनके नहीं !

गरिमा ने कहा…

मनीष जी वर्त्तनी की अशुद्धियों की ओर ध्यान देने और बताने के लिये बहुत-बहुत् शुक्रिया और मैने सुधार भी ली, आगे भी साथ देते रहियेगा।

शुक्रिया
गरिमा

श्रद्धा जैन ने कहा…

kaha koi jawaab deta hai beta haan bus agra sabhi thodi der ke liye khud hi soch le to shayad mahol badal jaaye

tumhari har rachna hi jawalant rahi hai
iske sawal bhi man ko jhkar jhor gaye

Mohinder56 ने कहा…

गरिमा जी,
मेरी कविता "लम्पट मन" पर आपकी टिप्पणी के लिये आपका आभारी हूं.
मैंने मन को लम्पट इसलिये कहा क्यूंकि इसकी लगाम को सदा पकड के रखना पडता है, जहां इसे मौका मिला नही कि यह उडान भरने लगता है.
धन सोना या नर/नारी को देख कर यह सामान्य स्थितियों में भी.. अपने पथ से भटक सकता है.. विषम स्थिती की तो बात ही दूसरी है.
अंत की चार पंक्तियों में मैंने सार लिखा है... कि हमें अपने मन को काबू में रखना आवश्यक है..यदि हम अपने ज्ञान/बुद्धि का सही प्रयोग नही करते एंव यह नही हो पाता तो हम भटक जायेंगे और जीवन भर के प्रयत्न विफल हो जायेंगे..
इस भटकन को कस्तुरी मृग से दर्शाया है जो कस्तुरी को नाभी में लिये फिरता है मगर उसे ज्ञात ही नही होता कि सुगन्ध कहां से आ रही है
जैसे मृग कस्तुरी होते हुये भी उसका प्रयोग नही कर पाता..यदि हम भी अपने ज्ञान व बुद्धी का प्रयोग नही करेंगे तो पतन निश्चित है

आपने भी बहुत अच्छी कवितायें लिखी है.. इसे जारी रखिये मै आपके ब्लोग पर आता रहूंगा और अपनी टिप्पणी छोडता रहूंगा.

गरिमा ने कहा…

वाह! दीदी भी आ गयी, लिखने का मजा दोगुना हो गया।

शुक्रिया
दी

मोहिन्दर जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो मुझे समझाया आपने, आगे भी मार्गदर्शन करते रहेंगे ऐसी आशा है।

शुक्रिया
गरिमा

विनोद पाराशर ने कहा…

बच्चियों के पालन-पोषण में, जो भेद-भाव रखा जाता हॆ-उसका सजीव चित्रण आपकी इस रचना में देखने को मिला.

बेनामी ने कहा…

bahut sunder Garima....padhna safal hua...

aapka mama
Asif jamil