मंगलवार, 20 जनवरी 2009

कुछ विचार

कभी कभी किसी मोड़ पर रूककर
टटोलती हूँ, अपने आपको
सोचती हूँ
क्या तुम सही थे?

कई बार सोचती हूँ
और जब तुम याद दिलाते हो
कि आज भी तुम हो
तब बेचैनी बढ जाती है

पर सोचो ना
"तुम हो" तुमने यह जताया
पर "मै भी हूँ"
क्या तुम यह जान सके?

"मेरे होने" को तुम
अनदेखा करते रह गये
तुम्हारा होना
इतना हावी हो गया कि
मुझे खुद को बचाने के लिये
तुम्हारी गली छोड़नी पड़ी

"तुम हो" मै जानती हूँ
पर "मै" भी "हूँ"
तुम नही जान पाये
"मै" वही जी पाऊँगी
जहाँ "मेरा होना" भी होगा

यही सोचकर
फिर से चल पड़ी हूँ
पर तुम्हे बताकर जाना चाहती हूँ
कि जब तुम्हे लगे कि
"तुम्हारे" साथ "मेरा" भी होना
तुम्हे परेशान नही करता
आ जाना
फिर इस अनंत गगन मे
"हम" रहेंगे
मै और तुम से अलग
"हम" बनकर

15 टिप्‍पणियां:

RADHIKA ने कहा…

अच्छा लिखा हैं गरिमा जी ,काफी भावपूर्ण .

Dr. G. S. NARANG ने कहा…

muje khud ko bachane ke liye , tumari gali chodani padi...............kahi bahut gahrai lag rahi hai garima ji?

निर्मला कपिला ने कहा…

tum ho mai jaanti hoon par mai hoon tum nahi jaan paaye bahut achha likha hai

बेनामी ने कहा…

di ke chupe bhav sundar tarike se bayan huye,tum,main ko kabh nahi samajh sakta.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

पता नहीं, क्या पुरुष भी इस तरह के भाव व्यक्त करता? शायद हां, शायद नहीं भी।

बेनामी ने कहा…

बेहद सुंदर अभिव्यक्ति. मेरी छोटी बहिन हो इसलिए बस शाबाशी दूँगा. दिल खुश हो गया.

अमिताभ मीत ने कहा…

बहुत अच्छा है.

संगीता पुरी ने कहा…

यही सोचकर
फिर से चल पड़ी हूँ
पर तुम्हे बताकर जाना चाहती हूँ
कि जब तुम्हे लगे कि
"तुम्हारे" साथ "मेरा" भी होना
तुम्हे परेशान नही करता
आ जाना
फिर इस अनंत गगन मे
"हम" रहेंगे
मै और तुम से अलग
"हम" बनकर

इस कविता का क्‍या कहना !!!

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

स्वागतेय रचना है. नारी प्रधान अभिव्यक्ति ने जहाँ एक ओर आपका व्यक्तित्व निखारा है, वहीं नारी स्वाभिमान और नारी विमर्श पर भी कलम प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष बहुत कुछ कह गई है
ये पंक्तियाँ मुझे अच्छी लगीं>>
"तुम हो" मै जानती हूँ
पर "मै" भी "हूँ"
तुम नही जान पाये
"मै" वही जी पाऊँगी
जहाँ "मेरा होना" भी होगा

- विजय

Himanshu Pandey ने कहा…

प्यारी कविता. अपने आप को टटोलना जरूरी है,
पर यदि प्रेम की उपस्थिति हो तो आत्म तो विसर्जित होता ही है. अपना ’आप’ तो खोता ही है.

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

अरे वाह....! मेरी छुटकी के गहरे विचार......! बहुत अच्छे....! आशीष

सागर नाहर ने कहा…

मेरे होने" को तुम
अनदेखा करते रह गये
तुम्हारा होना
इतना हावी हो गया कि
मुझे खुद को बचाने के लिये
तुम्हारी गली छोड़नी पड़ी

क्या बात है, बहुत खूब।

रंजू भाटिया ने कहा…

तुम्हारे" साथ "मेरा" भी होना
तुम्हे परेशान नही करता
आ जाना
फिर इस अनंत गगन मे
"हम" रहेंगे
मै और तुम से अलग
"हम" बनकर

बहुत सुंदर भाव लगे इस के सुंदर लिखा है आपने गरिमा

Unknown ने कहा…

bahut accha likha hai....

anuradha srivastav ने कहा…

"तुम हो" मै जानती हूँ
पर "मै" भी "हूँ"
तुम नही जान पाये
"मै" वही जी पाऊँगी
जहाँ "मेरा होना" भी होगा
गरिमा विचारोपूर्ण कविता । अक्सर हमारी बातों में यह विषय प्रमुखता से उठा है। तुमने बहुत सुन्दर तरीके से अपने मत को रखा है जो कि काबिलेतारीफ है।