मेरे सेन्टर पर आने वाली लगभग हरेक महिला अपने पति से यह कहना चाहती है... बस उन्ही के कुछ भावो को शब्द देने की कोशिश की है...
जानते हो
एक दबी हुई इच्छा है कि
मै ऑफिस से आऊँ
और तुम घर पर रहना
आकर तुम्हे कहूँ
जान, आज काम ज्यादा था
इतना थक गयी की
कि पुछो मत
तुम्हारा ही काम अच्छा है
घर मे रहते हो
सारा दिन सोये रहते हो....
जानते हो
जी चाहता है कि
मै भी मचल के कहूँ
जान, तुम ऐसे क्यों रहते हो
हमारा भारतीय परिधान
धोती कुर्ता
कितना अच्छा लगता है
क्यो तुम हर दिन अंग्रेज
बन इठलाते हो
जानते हो
कुंडली मारकर
एक इच्छा दबी बैठी है
कि एक दिन शान से कहूँ
जानते हो दाल चावल का भाव
इतने महंगे सामान
मेरी जेब से आते हैं
तुम्हारे घरवाले थोड़ी ना लाते हो
जान... जानते हो...
3 टिप्पणियां:
kya baat kahi hai....sach dil khush kar diya ji aapne.
नर-नारी हैं भिन्न, मगर पूरक हैं इक-दूजे के.
इक-दूजे सा बनना चाहें, समझें ना दूजे के.
ना समझें दूजेके भाव, बस इतना ही झगङा है.
पति-पत्नी के बीच चले, आजीवन यह रगङा है.
साधक समा गई गृहस्थी, बस इतने में ही सारी
पूरक हैं इक-दूजे के, दुश्मन नहीं नर-नारी.
sahiasha.wordpress.com
Online Books Store http://sahiasha.com/ making us the best books Writing in India to Read books Online, Buy books Online, Online books shopping site with good price, make online book purchase.
Online Books Store
एक टिप्पणी भेजें