शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

ओ रे बसंत

बसंत आ गया है। आप कहेंगे कौन सी नई बात है? आप भी जानते हैं कि बसंत आ गया है। हर साल आता है।
बात तो सही है कि बसंत हर साल आता है और आता भी रहेगा। हाँ फिर भी मेरा मन बसंत के आने से खुश है। अब क्यारियों मे नये रंग खिल गये हैं। नई खुशबु ने जैसे घर मे अपनी जगह बना ली है। हर रोज़ कुछ नया दिख जा रहा है। नया रंग नयी खुशबु और अब तो तितलियाँ भी आने लगी हैं।
हालांकि कोई बड़ा सा बगीचा नही है मेरा, पर उतना तो है कि खुले मन से इन सबका स्वागत कर रही हूँ। हाँ एक कमी है कि काश वीणा वादिनी मुझपर थोड़ी सी मेहरबान होतीं और थोड़ी सी खनक मेरे आवाज मे भी होती तो मेरी सखियाँ जो रोज़ पौधो के पास आकर गुनगुनाते हैं उनके साथ मै भी थोड़ा सुर मिला लेती।
पर मुझे डर लगता है कि कहीं मैने अपनी बेसुरी तान छेड़ी और ये पंख फैलाकर उड़ जायेंगी, मेरे पास क्या पता दुबारा फिर आयें ना आयें...

इसलिये चुपचाप इनकी चहचहाहट का आनन्द ले लेती हूँ।

और .... और क्या बस आप भी बसंत के आने का आनंद उठाईये।

आगे का हाल फिर कभी

3 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हम भी आनन्द उठा रहे हैं बसंत का।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

गरिमा जी
सादर अभिवादन !

ओ रे बसंत पढ़ने का अवसर बहुत विलब से मिला , लेकिन पढ़ कर आनन्द आ गया ।
काश वीणा वादिनी मुझपर थोड़ी सी मेहरबान होतीं और थोड़ी सी खनक मेरे आवाज मे भी होती तो मेरी सखियां जो रोज़ पौधो के पास आकर गुनगुनाती हैं उनके साथ मै भी थोड़ा सुर मिला लेती …
यह गुण तो सब में होता ही है … :) विश्वास करें …
आपके लिए एक लिंक है , अवश्य पढ़ने-सुनने के बाद अपनी बहुमूल्य राय अवश्य दीजिएगा
प्यारो न्यारो ये बसंत है

- राजेन्द्र स्वर्णकार

* श्रीरामनवमी , वैशाखी , महावीर जयंती की शुभकामनाएं ! *

सुनील अमर ने कहा…

आपके ब्लॉग से गुजरा. लगा कि रेगिस्तान में चलते-चलते अचानक किसी ऐसी शीतल छाँव में आ गया हूँ जहां मीठा जल भी है. ऐसा इसलिए लगा कि नेट पर ब्लॉगों की जो उबाऊ और अपच पैदा करने वाली भीड़ है, उसके बीच में ऐसा अ-कृत्रिम और सरल भाव से अपनी ही ज़िन्दगी को उदाहरण बना कर पेश करते हुए आप द्वारा जो कुछ भी लिखा गया है, वह मन को बहुत सुकून देता है. कथ्य,शिल्प और बनावट अक्सर बोझ लगने लगते हैं और सादगी अपना एक अलग असर डालती है.
जीवन की व्यस्तताओं से कुछ पल निकाल कर अपने इस ब्लॉग की Gardening भी कर दिया करिए. ये आप का ही लगाया हुआ पौधा है. इसका हक़ है आप पर.