अहसासो के शहर मे
खो गये हैं बोल मेरे,
मूक होकर खडी हूँ
टूट गयी है क़लम।
जो कहना है
कह ना सकूंगी,
तुम्हारे सामने
चुप भी ना रह सकूंगी।
पर कहूँ भी तो कैसे कहूँ
शब्द मिलते नही।
मौन की आवाज़
तुम सुनते ही नही।
खुला आकाश, महकता पवन, खिलखिलाता मौसम... और अचानक कही दर्द, रूठता मौसम, सिमटता जीवन, ये सभी रूप जीवन के ही रूप है, एक दुसरे से अलग पर एक दुसरे के बिना अधूरे
सोमवार, 30 अप्रैल 2007
बुधवार, 25 अप्रैल 2007
उदय-अस्त
हर रोज उदय होता है सुरज
और रोज ही अस्त होता है
सिर्फ क्षितिज पर नही
"ये" अपने दिल मे भी होता है
फर्क इतना है कि...
आसमान कि एक ही कहानी होती है
"जो" दिल मे है
उसकी रोज नयी निशानी होती है
रोज एक नये सपने को जीने के लिये
रोज एक नये सपने पर मरने के लिये
जिन्दगी के भाग-दौड मे बढने के लिये
अविचलित इस जगत मे उथल-पथल होता है
हां वहा क्षितिज पर
यहा दिल मे होता है...
और रोज ही अस्त होता है
सिर्फ क्षितिज पर नही
"ये" अपने दिल मे भी होता है
फर्क इतना है कि...
आसमान कि एक ही कहानी होती है
"जो" दिल मे है
उसकी रोज नयी निशानी होती है
रोज एक नये सपने को जीने के लिये
रोज एक नये सपने पर मरने के लिये
जिन्दगी के भाग-दौड मे बढने के लिये
अविचलित इस जगत मे उथल-पथल होता है
हां वहा क्षितिज पर
यहा दिल मे होता है...
शुक्रवार, 13 अप्रैल 2007
क्या है सुसंगतता?
पिछली पोस्ट हाय रे मैं भुलक्कड कुछ कशमकश के साथ डाली थी, सकरात्मक टिप्पणी देखकर राहत मिली।
आगे कुछ नया लिखूँ उसके पहले खयाल आया कि कुछ दोस्त सुसंगतता के बारे मे नहीं जानते। तो कोई नया मेडिटेशन टिप दूँ उसके पहले जरूरी है कि सुसंगतता का मतलब बताया जाये।
सुसंगतता... अपने नाम के ही अनुरूप है... इस प्रक्रिया के दौरान आपके एनर्जी लेबल को ब्रम्हांडीय एनर्जी लेबल से मैच कराते हैं।
उदाहरण के तौर पर रेकी को लेते हैं... (रेकी इसलिये कि इसे बहूत लोग जानते हैं)। मोटे तौर पर रेकी एक हीलींग पद्धति है, जिसके द्वारा कई मानसिक शारीरिक रोगो का ईलाज सम्भव है।
हां तो बात हो रही थी सुसंगतता की... तो ये प्रमाणिक तथ्य है कि रेकी की शक्ति किरणे हमारे अन्दर और ब्रम्हांड मे पहले से ही विद्यमान है बस हमे उसके बारे मे पता नही होता ना ही हम उसे संचालित कर पाने मे सक्षम होते हैं।
अब सवाल उठता है कि जब हमारे अन्दर ये ताकत मौजूद है तो हमे आभास क्यूँ नहीं और हम इसे संचालित क्यूँ नहीं कर पाते?
मनीषियो ने तो इस कारण को बहूत अच्छे से समझाया है, लेख की लम्बाई कम रखने के मक्सद से मै एक उदाहरण मे स्पष्ट कर रही हूँ, कि जिस प्रकार कस्तूरी मृग अपने ही नाभि मे पल रहे कस्तूरी से अनजान रहता है, ठीक उसी प्रकार हम अपने अन्दर की रेकी से अंजान रहते हैं।
सुसंगत प्रक्रिया मे आपको उक्त एनर्जी लेवल से पहचान करा दी जाती है।
सुसंगत प्रक्रिया को ऐसे भी समझा जा सकता है कि आपको रीसीवर बनाया जाता है, ताकि ब्रम्हांड मे उपस्थित रेकी आपके लिये सुग्राह्य हो।
किसी भी तरह के सुसंगतता मे यही बात होती है, चाहे वो रेकी के लिये हो, अल्फा के लिये या कोई अन्य सभी चरणो मे सुसंगतता की मुख्य भूमिका होती है।
रेकी, अल्फा जैसे प्रणालियाँ सुसंगतता के बिना उतनी ही अधूरी है जिस प्रकार जलधारा के बिना नदी का अस्तित्व।
सुसंगतता कि विधियाँ अलग अलग हो सकती हैं, कई लोग दो दिन मे करते हैं, कई लोग खाली पेट करते हैं, लेकिन अहम बात ये होती है कि सुसंगतता के दौरान उक्त विषय का मास्टर आपके चैनल( चक्र) को औरा के तरंग को सुव्यस्थित करता है।
कई लोग सुसंगतता को लेकर तरह तरह के वहम पाल रखे हैं, सुसंगतता के पहले मुझसे की सवाल पुछे जाते हैं, जैसे कि क्या इस दौरान कोई कष्ट होता है, कोई कठिन प्रणाली है ये? इत्यादि
जवाब हमेशा कि तरह ये है कि-
ये बहूत आसान और कष्टरहित प्रक्रिया है। सुसंगतता के कुछ दिनो बाद ही आपको अपने आपमे फर्क महसूस होने लगता है, और आपको अपने अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति मे अत्यंत सहायक होता है
हाँ सुसंगतता के बाद ये ना समझे कि बस काम हो गया बल्कि आपको जो मेडिटेशन कि विधी दी जाती है, उसका अभ्यास करते रहें।
तभी आपका अभीष्ट सिद्ध होगा।
चलते चलते जोशी भईया के सवाल दिख गयें तो फिर आ गयी...उनका सवाल है-
सुसंगत कैसे करेंगी? और सुसंगत करने के बाद यह मेरे उपर असर कैसे करेगा? क्या यह संभव है
जी जैसा कि बताया है, इसके अलग अलग तरीके होते हैं... मुख्यतः आपको निश्चित समय बता दिया जाता है। जिस वक्त आपको आपने चयनित मेडिटेशन कोर्स को करना होता है, उस निश्चित समय पर आपको कोर्स मास्टर आपके औरा को संगत करके सुसंगत करता है, यह प्रक्रिया आमने सामने होती है.. ग्रैंड मास्टर दुरस्थ सुसंगत करने मे भी सक्षम होता है।
जहाँ तक मेरी बात है, मै दुरस्थ सुसंगत ज्यादा करती हूँ :)
सुसंगत के दौरान ही आपको इसका असर अनुभव होने लगता है, बाकी आपके मेडिटेशन अभ्यास से होता है।
क्या ये सम्भव है??? अब क्या कहूँ... खूद अजमाईये और अपना अनुभव भी बताईये.. चूँकि आप खूद ध्यान क्रिया करते हैं इसलिये इसका जवाब तो आपको पहले से ही पता होगा। :)
विशेष- अभी भी किसी दोस्त को सुसंगतता पर कोई सवाल हो तो जरूर पुछे जवाब देने कि कोशिश हमेशा रहेगी, और लिखने मे कोई भूल चूक हूई हो तो माफी चाहती हूँ।
आगे कुछ नया लिखूँ उसके पहले खयाल आया कि कुछ दोस्त सुसंगतता के बारे मे नहीं जानते। तो कोई नया मेडिटेशन टिप दूँ उसके पहले जरूरी है कि सुसंगतता का मतलब बताया जाये।
सुसंगतता... अपने नाम के ही अनुरूप है... इस प्रक्रिया के दौरान आपके एनर्जी लेबल को ब्रम्हांडीय एनर्जी लेबल से मैच कराते हैं।
उदाहरण के तौर पर रेकी को लेते हैं... (रेकी इसलिये कि इसे बहूत लोग जानते हैं)। मोटे तौर पर रेकी एक हीलींग पद्धति है, जिसके द्वारा कई मानसिक शारीरिक रोगो का ईलाज सम्भव है।
हां तो बात हो रही थी सुसंगतता की... तो ये प्रमाणिक तथ्य है कि रेकी की शक्ति किरणे हमारे अन्दर और ब्रम्हांड मे पहले से ही विद्यमान है बस हमे उसके बारे मे पता नही होता ना ही हम उसे संचालित कर पाने मे सक्षम होते हैं।
अब सवाल उठता है कि जब हमारे अन्दर ये ताकत मौजूद है तो हमे आभास क्यूँ नहीं और हम इसे संचालित क्यूँ नहीं कर पाते?
मनीषियो ने तो इस कारण को बहूत अच्छे से समझाया है, लेख की लम्बाई कम रखने के मक्सद से मै एक उदाहरण मे स्पष्ट कर रही हूँ, कि जिस प्रकार कस्तूरी मृग अपने ही नाभि मे पल रहे कस्तूरी से अनजान रहता है, ठीक उसी प्रकार हम अपने अन्दर की रेकी से अंजान रहते हैं।
सुसंगत प्रक्रिया मे आपको उक्त एनर्जी लेवल से पहचान करा दी जाती है।
सुसंगत प्रक्रिया को ऐसे भी समझा जा सकता है कि आपको रीसीवर बनाया जाता है, ताकि ब्रम्हांड मे उपस्थित रेकी आपके लिये सुग्राह्य हो।
किसी भी तरह के सुसंगतता मे यही बात होती है, चाहे वो रेकी के लिये हो, अल्फा के लिये या कोई अन्य सभी चरणो मे सुसंगतता की मुख्य भूमिका होती है।
रेकी, अल्फा जैसे प्रणालियाँ सुसंगतता के बिना उतनी ही अधूरी है जिस प्रकार जलधारा के बिना नदी का अस्तित्व।
सुसंगतता कि विधियाँ अलग अलग हो सकती हैं, कई लोग दो दिन मे करते हैं, कई लोग खाली पेट करते हैं, लेकिन अहम बात ये होती है कि सुसंगतता के दौरान उक्त विषय का मास्टर आपके चैनल( चक्र) को औरा के तरंग को सुव्यस्थित करता है।
कई लोग सुसंगतता को लेकर तरह तरह के वहम पाल रखे हैं, सुसंगतता के पहले मुझसे की सवाल पुछे जाते हैं, जैसे कि क्या इस दौरान कोई कष्ट होता है, कोई कठिन प्रणाली है ये? इत्यादि
जवाब हमेशा कि तरह ये है कि-
ये बहूत आसान और कष्टरहित प्रक्रिया है। सुसंगतता के कुछ दिनो बाद ही आपको अपने आपमे फर्क महसूस होने लगता है, और आपको अपने अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति मे अत्यंत सहायक होता है
हाँ सुसंगतता के बाद ये ना समझे कि बस काम हो गया बल्कि आपको जो मेडिटेशन कि विधी दी जाती है, उसका अभ्यास करते रहें।
तभी आपका अभीष्ट सिद्ध होगा।
चलते चलते जोशी भईया के सवाल दिख गयें तो फिर आ गयी...उनका सवाल है-
सुसंगत कैसे करेंगी? और सुसंगत करने के बाद यह मेरे उपर असर कैसे करेगा? क्या यह संभव है
जी जैसा कि बताया है, इसके अलग अलग तरीके होते हैं... मुख्यतः आपको निश्चित समय बता दिया जाता है। जिस वक्त आपको आपने चयनित मेडिटेशन कोर्स को करना होता है, उस निश्चित समय पर आपको कोर्स मास्टर आपके औरा को संगत करके सुसंगत करता है, यह प्रक्रिया आमने सामने होती है.. ग्रैंड मास्टर दुरस्थ सुसंगत करने मे भी सक्षम होता है।
जहाँ तक मेरी बात है, मै दुरस्थ सुसंगत ज्यादा करती हूँ :)
सुसंगत के दौरान ही आपको इसका असर अनुभव होने लगता है, बाकी आपके मेडिटेशन अभ्यास से होता है।
क्या ये सम्भव है??? अब क्या कहूँ... खूद अजमाईये और अपना अनुभव भी बताईये.. चूँकि आप खूद ध्यान क्रिया करते हैं इसलिये इसका जवाब तो आपको पहले से ही पता होगा। :)
विशेष- अभी भी किसी दोस्त को सुसंगतता पर कोई सवाल हो तो जरूर पुछे जवाब देने कि कोशिश हमेशा रहेगी, और लिखने मे कोई भूल चूक हूई हो तो माफी चाहती हूँ।
गुरुवार, 5 अप्रैल 2007
हाय रे मैं भुलक्कड
ओह कल ही तो पढा था याद नही आ रहा है.....
लगता है कही देखा है आपको.... बस ध्यान मे नही आ रहा है...
अर्रे... ये समान कहा रख दिया.....
इत्यादि आम समस्यायें बनती जा रहीं हैं... यही नही एक विकट समस्या है विद्यार्थियो के लिये... पुरे साल जो पढते हैं परीक्षा भवन मे याद रहेगा कि नही...
इस समस्या के विभिन्न कारण होते है... कारण फिर कभी बताऊँगी... मै सीधे-सीधे निवारण पर आ रही हूँ।
इस समस्या के निवारण के लिये मेरी टीम ने कई लोगो पर मेडिटेशन कोर्स की कई सुसंगत क्रियाओं और स्वयं मेडिटेशन कोर्स को प्रयोग मे लिया.. आखिरकार हम एक ऐसे सुसंगत कोर्स की तरफ बढे जो दिखता तो आम कोर्स की तरह है... पर काम बहूत ज्यादा करता है।
ये पैकेज दो भागो मे बँटा है-
सम्पुर्ण शिथीलीकरण और सम्पुर्ण कल्पनाशीलता
नियम ऐसा है-
1. किसी भी शांत जगह पर कुर्सी पर बैठ जायें, इस समय आपके हाथ पैर सीधे रखे, रीढ कि हड्डी सीधी हो पर अकडी ना हो, या आप आलथी पालथी लगा के भी बैठ सकते है, बैठने कि स्थिती वैसी ही होगी या सीधे बिस्तर पर अपने मन चाही स्थिती मे लेट सकते हैं (ध्यान रहे कि लेटने कि विधी आरामादायक तो है पर कई लोगो को नींद आ जाती है, अतः अगर आप अतिनिद्रा के आदी है तो लेटने के विधी आपके लिये नही है।)
2. अब आँखे हल्की सी बन्द रखे, आप 10 बार गहरी साँस ले, और प्रत्येक साँस के साथ 10 से 0 कि गिनती लेते जायें.... जैसे कि पहली साँस और उसके साथ 10 फिर दुसरी 9 ऐसे करके 0 तक आयें।
3. अब सामान्य साँस लें... और धीरे धीरे अपने पुरे शरीर को अन्दर से सिकोडने कि कोशिश करें, फिर ढीला छोड दें, ये प्रक्रिया 5 बार दुहराये।
4. अब आज्ञा चक्र पर ध्यान लगाने कि कोशिश करें, आज्ञा चक्र यानि दोनो भौहों के बीच की जगह
कम से 5 मिनट ऐसा करने के बाद ही आपको अपने शरीर मे गर्मी या कुछ अलग सा झंझनाहट महसुस होने लगेगा, अब इस एहसास को पुरे शरीर मे फैल जाने दे (आपकी कल्पना शक्ति जितनी मजबूत होगी, उतनी जल्द रिजल्ट मिलेगा)।
5. उसके बाद पॉवर ट्रिगर बनायें, इसके लिये बाये हाथ कि मुट्ठी बन्द कर लें... जिसमे अँगुठा पहले बन्द होगा उसके उपर चारो अँगुलियां आ जायेंगी।
6. 5 मिनट तक ऐसा करके, फिर गहरी साँस ले 5 बार और आँखे खोल लिजीये, उठ जायें।
जब भी आप कुछ पढ रहे हो तो ये पॉवर ट्रिगर लगाने के बाद पढना शूरु करें, वो बात आपको याद रहेगा। और हाँ ये कोई मैजिक नही है, आप जितना इसका अभ्यास करेंगे दिन पर दिन याददाश्त बढने लगेगी।
हाँ इसके साथ एक सबसे बडी परेशानी ये है कि यह स्वयँ मेडिटेशन कोर्स जैसा काम नही करता, इसके लिये सुसंगतता की जरूरी है... कोशिश है कि इसे जल्द से जल्द स्व संचालित मेडिटेशन का रूप दिया जाये।
इसके साथ भ्रामरी प्राणायाम का पुट भी दे दिया जाये तो सोने पर सुहागा का काम होता है...
भ्रामरी प्राणायाम-
प्राणायाम स्वस्थ वातावरण मे करें।
खाली पेट या खाने के 4 घंटे बाद करें।
बूखार और कब्ज की अवस्था मे ना करें।
किसी शांत अच्छे जगह पर आलथी पालथी लगाकर या बैक वाली कूर्सी पर सीधे बैठ जायें।
रीढ की हड्डी सीधी रखें पर तनी हूई ना हो।
अब दोनो हाथो को ऊपर हवा मे लायें, मूट्ठी कुछ इस प्रकार बन्द होगी कि तर्जनी अंगुली बाहर की तरफ रहेगी।
अब तर्जनी से दोनो कान अच्छी तरह बन्द करेंगे, गहरी स्वास लेकर हल्के बन्द होंठो से ॐ का नाद करेंगे।
5 बार से शूरू कर 11 बार तक कर सकते हैं।
ये दोनो अभ्यास याददाशत शक्ति को बढाने के लिये महत्वपूर्ण है। इनका रोज अभ्यास करना चाहिये।
जाते-जाते एक विनम्र निवेदन है कि- यह मेरा व्यव्साय का अंग है इसलिये कृपया घोडे को घास से दोस्ती करने के लिये ना कहें।ही... ही... ही...:D
लगता है कही देखा है आपको.... बस ध्यान मे नही आ रहा है...
अर्रे... ये समान कहा रख दिया.....
इत्यादि आम समस्यायें बनती जा रहीं हैं... यही नही एक विकट समस्या है विद्यार्थियो के लिये... पुरे साल जो पढते हैं परीक्षा भवन मे याद रहेगा कि नही...
इस समस्या के विभिन्न कारण होते है... कारण फिर कभी बताऊँगी... मै सीधे-सीधे निवारण पर आ रही हूँ।
इस समस्या के निवारण के लिये मेरी टीम ने कई लोगो पर मेडिटेशन कोर्स की कई सुसंगत क्रियाओं और स्वयं मेडिटेशन कोर्स को प्रयोग मे लिया.. आखिरकार हम एक ऐसे सुसंगत कोर्स की तरफ बढे जो दिखता तो आम कोर्स की तरह है... पर काम बहूत ज्यादा करता है।
ये पैकेज दो भागो मे बँटा है-
सम्पुर्ण शिथीलीकरण और सम्पुर्ण कल्पनाशीलता
नियम ऐसा है-
1. किसी भी शांत जगह पर कुर्सी पर बैठ जायें, इस समय आपके हाथ पैर सीधे रखे, रीढ कि हड्डी सीधी हो पर अकडी ना हो, या आप आलथी पालथी लगा के भी बैठ सकते है, बैठने कि स्थिती वैसी ही होगी या सीधे बिस्तर पर अपने मन चाही स्थिती मे लेट सकते हैं (ध्यान रहे कि लेटने कि विधी आरामादायक तो है पर कई लोगो को नींद आ जाती है, अतः अगर आप अतिनिद्रा के आदी है तो लेटने के विधी आपके लिये नही है।)
2. अब आँखे हल्की सी बन्द रखे, आप 10 बार गहरी साँस ले, और प्रत्येक साँस के साथ 10 से 0 कि गिनती लेते जायें.... जैसे कि पहली साँस और उसके साथ 10 फिर दुसरी 9 ऐसे करके 0 तक आयें।
3. अब सामान्य साँस लें... और धीरे धीरे अपने पुरे शरीर को अन्दर से सिकोडने कि कोशिश करें, फिर ढीला छोड दें, ये प्रक्रिया 5 बार दुहराये।
4. अब आज्ञा चक्र पर ध्यान लगाने कि कोशिश करें, आज्ञा चक्र यानि दोनो भौहों के बीच की जगह
कम से 5 मिनट ऐसा करने के बाद ही आपको अपने शरीर मे गर्मी या कुछ अलग सा झंझनाहट महसुस होने लगेगा, अब इस एहसास को पुरे शरीर मे फैल जाने दे (आपकी कल्पना शक्ति जितनी मजबूत होगी, उतनी जल्द रिजल्ट मिलेगा)।
5. उसके बाद पॉवर ट्रिगर बनायें, इसके लिये बाये हाथ कि मुट्ठी बन्द कर लें... जिसमे अँगुठा पहले बन्द होगा उसके उपर चारो अँगुलियां आ जायेंगी।
6. 5 मिनट तक ऐसा करके, फिर गहरी साँस ले 5 बार और आँखे खोल लिजीये, उठ जायें।
जब भी आप कुछ पढ रहे हो तो ये पॉवर ट्रिगर लगाने के बाद पढना शूरु करें, वो बात आपको याद रहेगा। और हाँ ये कोई मैजिक नही है, आप जितना इसका अभ्यास करेंगे दिन पर दिन याददाश्त बढने लगेगी।
हाँ इसके साथ एक सबसे बडी परेशानी ये है कि यह स्वयँ मेडिटेशन कोर्स जैसा काम नही करता, इसके लिये सुसंगतता की जरूरी है... कोशिश है कि इसे जल्द से जल्द स्व संचालित मेडिटेशन का रूप दिया जाये।
इसके साथ भ्रामरी प्राणायाम का पुट भी दे दिया जाये तो सोने पर सुहागा का काम होता है...
भ्रामरी प्राणायाम-
प्राणायाम स्वस्थ वातावरण मे करें।
खाली पेट या खाने के 4 घंटे बाद करें।
बूखार और कब्ज की अवस्था मे ना करें।
किसी शांत अच्छे जगह पर आलथी पालथी लगाकर या बैक वाली कूर्सी पर सीधे बैठ जायें।
रीढ की हड्डी सीधी रखें पर तनी हूई ना हो।
अब दोनो हाथो को ऊपर हवा मे लायें, मूट्ठी कुछ इस प्रकार बन्द होगी कि तर्जनी अंगुली बाहर की तरफ रहेगी।
अब तर्जनी से दोनो कान अच्छी तरह बन्द करेंगे, गहरी स्वास लेकर हल्के बन्द होंठो से ॐ का नाद करेंगे।
5 बार से शूरू कर 11 बार तक कर सकते हैं।
ये दोनो अभ्यास याददाशत शक्ति को बढाने के लिये महत्वपूर्ण है। इनका रोज अभ्यास करना चाहिये।
जाते-जाते एक विनम्र निवेदन है कि- यह मेरा व्यव्साय का अंग है इसलिये कृपया घोडे को घास से दोस्ती करने के लिये ना कहें।ही... ही... ही...:D
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