बुधवार, 13 जून 2007

मै भी कुछ लाऊँ

आजकल सबको अपना-अपना कलेक्शन दिखाने का बुखार हो गया है, तो मुझे भी ये बुखार लग गया है, पिछले 10 दिनो से सोच रही हूँ, मै क्या दिखाऊँ !

मेरे पास कार नही है, जुता भी एक ही है, हाँ मेरे भाई के खिलौने हैं पर वो तो हाथ नही लगाने देगा, फिर मुझे कुछ दिखाना भी ऐसा है जो मेरे कलेक्शन मे आता हो... सोच सोच के परेशान हो गयी...
फिर सोचा कि अपना बाल्कनी गार्डेन ही दिखा दूँ, पर गर्मी की वजह से कुछेक पौधो को छोडकर उसकी हालत खस्ता है, फिर सोचा मै अपनी लाईब्रेरी की किताबे ही दिखा लेती हूँ, पर आईडिया जमा नही, उसके बाद कई कलेक्शन दिमाग मे आते रहे और किसी ना किसी वजह से सबको काटती गयी

अभी ध्यान मे आया कि क्यूँ ना मै अपने हीलींग प्रोडक्टस ही दिखाऊँ.. एक पंथ दो काज हो जायेंगे.. मतलब दिखाना और कौन सा प्रोडक्ट क्या काम करता है बताना दोनो.


तो बस शुरू हो गयी जो प्रोड्कट्स अभी मेरे पास हैं, उनका लिस्ट बनाने मे, एक बात जरूर ध्यान रखियेगा की यह साधारण प्रोड्कट्स नही है, बल्कि इन पर घँटो का मेडिटेशन एनर्जी लगा है, अतः अगर बजार से लाकर सीधे आप उपयोग मे लायेंगे तो शायद ही काम करे।
यह है ॐ पेंडेंट विद पर्ल इसको अपने साथ रखने सात्विक विचार उत्पन्न होटल है तथा आने वाली परेशानियों से सुरक्षा होती। तथा त्रिशक्तियों का साथ मिलता है।




यह है ॐ पेंडेंट इसको , यह जीवन ऊर्जा को सम्बल बनाये रखने मे मददगार होता है।





मोती -साधारणतया यहाँ उन लोगो के लिये फायदेमंद है जिन्हे बार सर्दी जुकाम होता हो, पर अभी यहाँ दिमागी संतुलन, शांति और सात्विक सम्पूर्ण आनन्द के लिये प्रयुक्त होता है।



जिरकॉन- यहाँ है गोल्डेन जिरकॉन, वैसे जिरकॉन कई रंगो मे मै सिर्फ गोल्डेन का फोटो दिखा रही हूँ, आगे के फोटु जल्दी ही लगाऊँगी।
गोल्डेन जिरकॉन, अवसाद से दूर होने के लिये, और एकाग्रता बढाने के लिये दिया जाता है, यह और पीले रंग को एक साथ रखने से, सारे काम अच्छे ढंग से होते हैं, भाग्य साथ देता है।
बाकी बाद मे अभी और फोटु खिचने होंगे... जैसे ही और फोटु खीच कर कम्प्युटर मे लगाऊँगी, यहा हाजिर हो जाऊँगी, अभी आधी अधूरी कलेक्शन को ही बर्दाश्त कर लिजिये :)

गुरुवार, 7 जून 2007

आखिर क्यूँ?

दोस्तो कोई कहानी, कविता नही बना पायी, और ना ही कुछ लिखने का मन हो रहा था।
पर कुछ ऐसा कयी दिनो से घटित हो रहा है जिससे मन व्याकुल हो जाता है।

मेरे पास एक केस आया है जिसके संदर्भ मे लिख रही हूँ, मरीज के privacy ध्यान मे रखते हूए नाम बदल कर दे रही हूँ। मुझे कहानी लिखने का अभ्यास नही इसलिये ऐसा कोई पुट नही डाल सकी, सीधी सी सच्ची बात है, जैसे मेरा दिल गवाही दे रहा है वैसा ही लिख रही हूँ।

15 मई को बिजनौर से एक केस मिला... केस है 12 वर्षीया एक शालिनी का, मेरी यह मरीज दिन पर दिन पागल होती जा रही है।

खैर जब यह केस मुझे मिला था तो यह बताया गया कि, यह लडकी पढने मे कमजोड रही है, इस कारण अवसाद के कारण इसकी ये हालात है, तब इसके पापा से बात हूई थी, अब अवसाद दूर करना तो कोई बडी बात नही, मुझे यकिन था 2-4 दिनो मे शालिनी सामान्य होने लगेगी।

5 दिन बीत गये कुछ नही हूआ, शालिनी के पापा मुझ पर बरसे, बात थी भी, मैने बहुत यकिन से कहा था की सब ठीक हो जायेगा।
8वे दिन शालिनी की मम्मी ने रात गये फोन किया, कहने लगी इसकी बिमारी का कारण पढाई नही कुछ और है, उन्होने इतना ही बताया।

10वे फिर मम्मी ने ही फोन किया, उन्होने कहा, बेटा मेरी बेटी का इलाज जितनी जल्दी हो सके करो, और इसके पापा से बात न करना वो कुछ कहे तो कह देना मै नही कर रही हूँ। मै कुछ आगे पिछे पुछूँ उसके पहले फोन कट गया।

15वे दिन शालिनी होश मे थी, उसने जो कुछ अपनी माँ को बताया वो रिश्तो की धज्जियाँ उडा देने मे पूर्णतः समर्थ था, वैसे ये बात मुझे नही पता लगी।

3 जुन शालिनी की मम्मी को मैने कहा कि, आप जरूर कुछ छुपा रही हैं, मुझे इसके प्राभामंडल की तरंगे बहुत असमान्य लग रही हैं, बहुत जद्दोजेहद के बाद जो मुझे बताया गया-

वो है कि शालिनी के इस हालत के जिम्मेदार खुद उसके पापा हैं, उन्होने 12 वर्षीया बच्ची के साथ जो किया वो.........

शायद आगे क्या हूआ बताने की जरूरत नही है।

अब शालिनी ठीक हो रही है, पर क्या वो वास्तव मे ठीक हो पायेगी?
5 जुन को शालिनी ने आत्महत्या करने की कोशिश की थी.... कारण हम समझ सकते हैं।

मैने यह बात यहा क्यूँ लिखी समझ मे नही आ रहा है, शायद एक जद्दोजेहद मेरे मन मे भी चल रही है, शालिनी के रूप मे मेरे दिल मे भी कुछ टुट सा रहा है।
आज थोडी देर पहले मैने शालिनी से बात की... उसका दर्द, उसकी भावनाये, एहसास, कही ना कही मेरे अन्दर भुचाल पैदा कर रहे हैं।

12 साल की लडकी से क्या कहूँ, मुझे याद है जब मै 12 साल की थी तो कितनी निर्भीक निडर आत्म- स्वाभिमानी थी, और यह सब सिर्फ इसलिये कि मेरे पापाजी को मै हमेशा अपना आदर्श मानती हूँ थी और रहूँगी।
मैने जो अपने पापा से direct और indirect सीख पायी, वो हमेशा मुझे प्रेरणा देती रही, पर शालिनी के साथ ऐसा कयूँ हूआ?

ऐसा नही की ऐसी कोई घटना पहली बार हूई है, पर हर बार ऐसी घटनाये मुझमे झंझावात पैदा करती है,

आखिर क्यूँ होता है ऐसा.....? क्यूँ रिश्तो की मर्यादा की इंसानियत की बलि चढाने मे लोग बाज नही आते..... क्यूँ? हर दिशा से यही सवाल गुँज रहा है...............