शुक्रवार, 18 जुलाई 2008

भोजपुरी कहानी

कहानी सुनावे के पहिले ही बता देता नी कि हमरा कहानी लिखे के कौनो अनुभव नईखे, लेकिन ना लिखब त होईबो ना करी, एसे लिखल सुरु करतानी, लिखते लिखत नु आई। :)

लोग बाग कहेले कि आजु पुरनमासी के राती मे भुत-प्रेत के हमला होला, ई साची बाती हा ईया?
हा गुडिया, ई एक दम साची बाती ह, ऐसन क गो किस्सा हम देखले सुनले बानी, तहार बाबा जी के भी ऐसन क गो किस्सा देखे सुने के मिलल बा।
तबे गुडिया के बाबा जी बहरी से आ जानी अरू पुछने, अर्रे का बाती होत बा, हमरो के बताव लो।
बाबा जी ईया कहत रहली हा कि आजु के रात मे भुत-प्रेत के हमला होला, ऐसन रऊओ देखले सुनले बाने। एके बाद ओजुगा एगो सन्नाटा पसर जात बा, केहु कुछु नईखे बोलत, फ़ेर गुडिया खुदे बोले लाग तारी, बताई ना बाबा जी ई बात साच बा का?
बाबा जी, ईया के धीरे से बोलेनि, तु हु ई का काम करत रहेलु, अब ऊ डेरा जाई कि ना... आ झुठ बोलि के कि अईसन किस्सा नईखी देखले, तहार बाती के काटियो ना सकेनि, ई त भढिया सनिकट हो गईल।
राऊओ नु एकदम से कुछुओ ना बुझेनि, आखिर राऊर उमीर अब बितल जाता, ए परमपरा के एकनिये के तो निभाहे के बा नु, एकेनि के ना बताईब त भुत प्रेत प रऊआ जतना मन्त्र सिद्ध कईले बानी, एही गाऊआ के बचावे मे जतना मेहनत कईले बानी, सब व्यरथ चली जाई।
ह्म्म बतिया त तोहार ठीके बा, पर अभी गुडिय त कतन छोट बिया, अभीये से डेरावल ठीक नईखे लागत।
तब तक गुडिया बोल देले, बाबाजी काहे के डेराईब हम, हमहु ऊहे काम करब, जवन रऊआ करेनि, तनिकियो ना डेराईब, रऊआ बताई ना।
बाबाजी ईया पुजा वाला कमरा मे जाके पहिले हनुमान जी के माथा टेकेनि, फ़ेरु हनुमान जी के झंडा किहा आके ओकरो परिकरमा करेनि, फ़ेरु ओजुगे बैठिके कौनो मन्त्र पढी के, गुडिया के कुस से झाडेनि, तब जाके कहानी सुनावल शुरु करेनि।

ढेर दिन पहिले के बाती ह, जब ई गाँव नु गाँव ना रहल हा, एगो जंगल रहल हा, हमनी के पुरनिया (पुर्वज) ए जंगल के काटी काटी के एकरा के रहे लायक बनावत रहेलो, जे जतना जंगल के काटी के ओकरा के रहे लायक बना सकत रहे, ऊ जमीन ओही आदमी के हो जात रहे, एगो परिवार नु बहुअ बेहनती रहे अरू ऊ ढेर जमीन साफ़ कलेलस, दुसरा लोगन से ई देखल ना गईल, एगो राति, जब कुल्ही लो सुतल रहे, गाँव कुछु लोग मिली के ओ परिवार के पुरनिया के मार दिहल, अरू उनका लैकन के भगा दिहल, ओकरा बाद जतना जमीन ओ लो के रहे, सबे हडप लिहल। पुरनिया के आतमा दुख से भटके लागल, अरू ओ परिवार के सराप दे देलन कि, तहनि लो ए गाँव मे रहिओ के ना रही सकब लो, हमार बेटन के तहनि लो जतना दुख देले बाड लोग ओसे ज्यादा दुख मिली, तहनी लो के घरे कबो कौनो काम खुसी खुसी ना बीती, अरू ए गाँव मे केहु तहनि लो के साथ दी ही तो ओकरो घर मे कौनो दिन खुसी खुसी ना बीती।

तलेले गुडिया बीच मे टोक देलि, बाबाजी ई बतिया आतमा कैसे कहले होई, माने हाँव वालन के कैसे बुझाईल होई, काहे कि आतमा त लऊकेला ना नु?
ना ना गुडिया आतमा लऊकेला ना बाकि ऊ चाहो तो अपना होखे के सबुत दे सकेला।
अच्छा, अच्छा अब आगे बताईं।

पहिले त केहु ई बाती के ना मानल, सब लोग आपन-आपन काम मे लागल रहल अरू वक्त-बेवक्त ओ परिवार के साथे भी रहल।

फ़ेर का भईल बाबा जी, का ऊ आतमा के बाति साच निकलल, का गाँव वालन के परेसानी भईल.....?
हा, उहे तो बताव तानि, एगो राति खुब जोड जोड से पानी पडे लागल, अरू तब बरसाति के मौसमवो ना रहे, सुबह भईल, पानी बन ना भईल, ऐस करत करत क राति बीती गईल, लेकिन पानी परल बन ना होत रहे, अब लोगन के चुल्हा मे लौना-लकडी ना बाचि गईल रहे...

तलेले गुडिया के माई आके कहेलि, माताजी, बाबुजी खाना बनी गईल, चली सब खा ली।

माई अभी रह ना कहानी सुने के बा, बाद मे खाईब जा।

कहानी काल्हु सुनिह गुडिया, एहुतारि राती खा ई कुल्हु के बारे मे ना बतियावे के चाही, सापना मे डर लागी....

अरू गुडिया उनुकर ईया अरू बाबाजी खान खाये चल दे ता लो, बाकी गुडिया के मनवा मे त कहानी के आगे जाने के हुदहुदी ले ले बा.. लेकिन अब माई के कहला के राखी के काल्हु के इनतेजार त करही के पडी।

कहानी के अगिला हिस्सा

11 टिप्‍पणियां:

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत बढ़िया कहानी सुनाई आपने ..दो बार पढ़ी तब समझ में आई .:)बोली सब मीठी लगती है यह भी लगी

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

ए बबुनी तू हेरा कहाँ जालू... औ ई भूत परेत के कहानी जऊन सुनावताड़ू, जानेलू ना कि हम घरा में अकेले रहेनी अ अगर राति में डेरऊनी ना त तू समझि लीहा....

गरिमा ने कहा…

पसंद करने के लिये शुक्रिया रंजना जी।

हे दी दी, हम नु केनियो नईखी हेराईल दिने भर मिली जाईब, तु ही नईखु लौकत, सब ठीक-ठाक बा नु? अरू डेरा मत.. ई कहानी के बुत प्रेत खाली ओ गाँव मे रहल हा एजुगा ना आई, अईबो करी तो हमरा के बोल दिह, भुतवा के भगाई देम।

Udan Tashtari ने कहा…

इस बोली से जो हल्का फुल्का नाता था, उसका साथ छूटे भी एक अरसा बीता फिर भी समझने में कोई परेशानी नहीं आई..प्रवाह ओउर भाव बेहतरीन है-अगली कडी का इन्तजार है.

बेनामी ने कहा…

गरिमा के बधाई बा , मातृभाषा में एकजाई किस्सा सुनवले खातिर । कहानी क चर्चा ब्लॉगजगत में होखे क देरी बा , बस !

Ashok Pandey ने कहा…

गरिमा जी,
कहानी नीमन लागल। अगिला हिस्‍सा के इंतजार रही। भोजपुरी बोली के मिठास त सब केहु के मन मोहि लेला।
जब हम पटना में कौलेज में पढ़त रहीं, त वैकल्पिक विषय के रूप में भोजपुरी लेले रहीं, बाकी परीक्षा ना दे सकलीं। ओह समय हमरा पास भोजपुरी के कई गो किताब रहे। अब त सब हेरा गइल।
बहुत दिन पहिले रेडियो पर भोजपुरी नाटक लोहा सिंह बड़ा नाम कमइले रहे। अब भोजपुरी में ओइसन प्रस्‍तुति कहां। आज के भोजपुरी सिनेमा के त गाने सुन के देखे के मन ना करे।

Abhishek Ojha ने कहा…

नीमन कहानी.

गरिमा ने कहा…

समीर जी शुक्रिया पढने के लिये, अगली किस्त को आपका इंतजार रहेगा।

अफ़लातुन जी, मातृभाषा के सम्मान करे के चाहीं, अवरू हमरा कई दिन से कहानी लिखे सीखे के मन करत रहल हा त सोचनी हां कि एही से सुरू कईल बढिया रही।

ठीक बाती कहनी हां अशोक जी, आजकाल्हु जवन गाना बनी रहल बा ओमे भोजपूरी के नाम प अश्लीता बढत जात बा, अब का देख आ का सुन, बडी जल्दी हमही एगो कडी ले आईब जे मे कुछु पक्का गाँव के रंग के भोजपूरी गाना पढे के मिली, ए खाती हम अपना गऊँआ मे बतियाईले बानी, क जानी तैयार भईल बा लो।

कहानी निमन लागल ह त हमरो खुसी भईल हा :)।

अरू एगु बारे फ़ेरू रऊआ सब के शुक्रिया।

Unknown ने कहा…

गरिमा जी परनाम

आज नेट पे भोजपुरी खोजत खोजत आप के कहानी तक पहुचल बानी.
कहानी पढ़ के बहुत गर्व भएल ह की अपना भासा में भी यह प्रकार के कहानीकार और साहित्यकार लोग बा.
लेकिन आज इतना कुछ होखला के बाद भी हमनी के भासा के पहिचान एगो, ऐतिहास मैं बिलुप्त पजाति के जीव के जैसन बा.
खैर जाऊन बा ऊ बा लेकिन आज नेट पे भोजपुरी के खातिर काम शुरु हो गेल बा ,
जेकर उदाहरण
http://anjoria.com
http://www.bhojpuriexpress.com
www.purvanchalexpress.कॉम

हमार आप से एहे अनुरोध बा की आप यह जगह पर अपना कथा साहित्य के सुगंध मह्कव्ती त हमरा साथे और लोगन के भी हृदय जुड़ा जाइत.

पंकज प्रवीन
०९३५०२२०९७४
praveenjbb@gmail.com

shambhoonath ने कहा…

बहुत बढ़िया कहानी सुनाई आपने ..दो बार पढ़ी तब समझ में आई .:)बोली सब मीठी लगती है यह भी लगी

SANYOG VIRAT ने कहा…

बहुत बढिया कहानी रहे,मजा आ गईल