मंगलवार, 22 जुलाई 2008

भोजपूरी कहानी के अगिला भाग

पिछलिका भाग से आगे-

अभी बाबाजी ईया अरू गुडिया खाते रहल लो कि दरवाजा पर केहु के खटखटावे के आवाज आ गईल।
बाबा , ओ बाबा घरे बानी, हेने आई नु राऊर जरूरत आ गईल बा।
आवतानी हो, तनिक रुक।
बाबाजी थारी ओसही छोडी के उठी जात बानी, हाथ धोई के बहरी गईनी, उहां के पिछे-पिछे गुडियो उठी गईली।
का भईल बा हो, काहे अतना घबराईल बाड लोग, कवन परेशानी आई गईल।
बाबा, ऊ नु राम दुलारी के बेटी के हावा लागी गईल बा।
अर्रे डॉक्टर के देखाव लो भाई, कौनो बेमारीयो हो सकेला, अईसे पहिले हवे के ना सोचे के चाही, जुग बदली गईल बा, एघरी कतना किसिम के बेमारे चलल बा। जा लो पहिले डॉक्टर के देखाव लोग, तबे हम देखबी।
(गुडिया एने ईया से पुछत लागे लि, ईया, हवा लागल माने?
हवा लागल माने कौनो आत्मा के परकोप हो गईल बा)
हाँ बाबा डॉकटर के देखा ले आईल बानी जा, लो कहल हा कि केस हाथ से जा चुकल बा, अब कुछुओ ना हो सकेला, राऊरे आसरा बा अब, रऊए कुछु क सकेनि।
हमनी के लछमियाँ के अपना सनही ले आईल बानी जा, देखी ना।
पिछे से कुछु लो, एगो लईकी के लेके खडा हो गईल, बाबा हाथ के इशारा से ओकरा के सामने के बिस्तर पर सुतावे के इसारा कई के, खुदुए कुछु कुस और कुछु ताबीज ले आवे कोठरी मे चल जात बानी, बाबा जी कहनी कि गुडिया हमरा पुजा वाला लोटा मे गंगाजल ले के आव।
ईया पुजा घर से रुद्राक्ष के माला अरू रोज के हवन मे से तनी भभुती लेके आईली, तलेले बाहर से एगो आदमी खाकी बाबा के मठ से भभुत लेके आईल।
बाबा जी लईकी के सामने बैठी के मन्त्र पढे लगनी, लईकी, बेहोस ओजुगे परल बिया, दाँत लागी गईल बा, ईया बार बार बाबाजी के कहला प गंगा जल छिटल शुरू कदेले बाडी, माई के आवज आईल गुडिया तु अन्दर आ जा, तु मत देख, राती खा डर लागी, लेकिन गुडिया आज ई देखे के मन से बहरीये खडा बाडी।
कुछ देर मे, ऊ लईकी बोल उठल, अर्रे पंडितवा, तोहार हम का बिगडले बानी जे ते हमरा के परेशान करत बाडे, अब बाती साफ़ हो गईल बा कि लईकी के सवा लागल बा, कुल्ही लोग सुरक्षा खाती तनी तनी भभुती अपन माथ प लगा लेत बा, अब बाकी भभुती ओ लईकी के लगावल जात बा, जसही लगावल जात बा, ऊ चिलत बिया, अर्रे पण्डितवा का बिगडने बानी तोर, ते मनबे ना, गुडिया के बहुत खिसी आ गईल, हमरा बाबाजी के आजु ले केहु अतना खराब भाषा मे नईखे बोलले, तहार ई हिम्मत, अभिये सबक सिखावत बानी, बाकी एगो आदमी गुडिया के पकड लेत बा कि ई नु आत्मा बोलतिया, लछमियाँ नईखे बोलत, अरू आत्मा से लडे खाती अभी तु छोट बाडु, मुश्किल से ऊ आदमी गुडिया के सम्भाल पाईल बा।
अब बाबा जी बोलल बानी, ई मुनिया तहार का बिगडले बीया जे तु एकरा के खत्म करे प तुलल बाडु, जा जे तोहार कुछू बिगडले होई ओजुगा जा, एकरा के छोडी द, हम कुछुओ ना करब, हम अन्याय के खिलाफ़ बोलेनि, ई मुनिया के परति अन्याय ना होखे देबी, बाबा जी के कडक आवज सुनी ऊ अरू खिसिया गईल।
पुछ एकरा से ई काहे हमरा पेड पर खेलत रहली हा, एकरा ओजुगा ना खेले के चाहत रहल हा, ई हमरा के तंग कईलसिहा त हमहु करत बानी।
जतना तंग करे के रहल हा क ले लु, अब छोड एकरा के, जा।
पर ऊ हवा जाये के तैयार ना भईल, फ़ेर बाबा जी कुस के गंगाजल मे डुबा के मन्त्र पढी पढी ओ से ओ पे छींटा देबे लागल बानी, बाद मे जैसे मन्त्र खतम भईल बा, लछमियाँ खुब तेज से गुर्रा के फ़ेर ठीक हो गईल, अब ओकरा कौने परेसानी नईखे, ऊ होस मे आके बोलतिया, अर्रे हम एजुगा कईसे आ गईनी हा, हम त ऊ इमलीया के पेडवा प खेलत रहनी हा।
ई बात सुनी के कुल्ही लो के जान मे जान आईल की, ई ठीक होई गईल, बाबा जी रुद्राक्ष के माला के गंगाजल मे धोई के, लछमियाँ के पहिनाई देनी, अरू कहनी की दोई दिन बाद हमरा के लौटाई दिह लो।
लोग बाग बाबा के जयकार करत, ओजुगा से चली गईल, फ़ेरु गुडिया के समझ मे आईल की काहे कबो कबो माई, जब ढेर लो दुआर प आवेला तो गुडिया के घर मे लाखी ले ली, बहरी ना आवे देली।
बाबा जी एक बार फ़ेरु से अपना ऊपर गुडिया के ऊपर अवरू ईया के ऊपर गंगाजल छिरीके के फ़ेरु हाथ मु धोई के खाये चली गईनी।
खाये के दौरन केहु कुछुओ ना बोलल, सब लो अब चुपे-चाप रही गईल, बाती तय भईल की आजु केहु घर मे अकेले ना सुती ना ज्यादा बतियाई, ना त कौनु खतरा आई सकेला, अवरू कुल्ही लो भभुते ले के सुती।
गुडियो को कुछु पुछे के हिम्मत ना पडल... चुप-चाप बाबा जी कहला अनुसार सुते चली गईली।

गुडिया अभी तक के ई पहिला किस्सा देखले रहली आ त उनुका अंदर बहुत बेचैनी समाईला बा लेकिन, बाबजी बोले से मना क देले बानी, अब सुबहे कुछुओ पुछल जा सकेला, ई सोची के चुप-चाप लेटल रह बाडी, एहेमी जाने कब निन्नी आ गईल पता ना लागल।

सुबह के बाते काल्हु सुबह जानल जाई.....:)

4 टिप्‍पणियां:

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

अच्छा है - मिट्टी से जुड़ी भाषा में लिखना।
यह जरूर है कि मुझे अपनी पत्नी की सहायता लेनी होगी भोजपुरी पूर्णत समझने में।

Udan Tashtari ने कहा…

यह बढिया रहा कि इतनी बैचेनी मे भी नींद आ गई. अब सुबह का इन्तजार! अच्छा प्रवाह है.भाषा अज्ञानता की वजह से रुक रुक कर समझ आ रही है. :)

Tiwari jee ने कहा…

बहुते निमन कहानी बाटे राउर गरिमा जी .... लिखत रहीं .... हमनी के नीक लागताटे ... धन्यबाद

Unknown ने कहा…

Dekhi hamar aapse gujarish ba ki aisan jhuthi aur andhviswasi kahani logan ke na sunayi e thik na hoi.

Santram Nishad 8793139312