खुला आकाश, महकता पवन, खिलखिलाता मौसम... और अचानक कही दर्द, रूठता मौसम, सिमटता जीवन, ये सभी रूप जीवन के ही रूप है, एक दुसरे से अलग पर एक दुसरे के बिना अधूरे
जैसे विस्फोट थे उससे ज्यादा हल्ला था। न्यूज को सेनशेसन से अलग कर देखने की आदतनहीं है मीडिया की। बोलने वाले/वाली व्यर्थ में शब्दों को चबा कर खींच कर और संयुक्ताक्षर का प्रयोग कर व्यर्थ सनसनी बनाते हैं।
3 टिप्पणियां:
कुछ समझ में नहीं आया
हाँ गरिमा जी
नमस्कार
ध्यान क्या है ....
जैसे विस्फोट थे उससे ज्यादा हल्ला था। न्यूज को सेनशेसन से अलग कर देखने की आदतनहीं है मीडिया की। बोलने वाले/वाली व्यर्थ में शब्दों को चबा कर खींच कर और संयुक्ताक्षर का प्रयोग कर व्यर्थ सनसनी बनाते हैं।
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