लौट आओ कि अंधरी ये रात हुई
अब तक खफ़ा हो, ये क्या बात हुई
चुपके से किसी तन्हा सी घड़ी में
याद आती है, थी जो मुलाकात हुई
सालती है दर्द-ए-दिल को ये खा़मोशी
आवाज दो कि अब ये ज़र्द रात हुई
कहो कैसे जिये" गरिमा" तुम्हारे बिना
तुम बिन अन्धेरी ये कायनात हुई
नहीं लौट सकते तो मत आओ
इतना बता दो इस बेरुखी की क्या बात हुई
27 टिप्पणियां:
चुपके से किसी तन्हा सी घड़ी में
याद आती है, थी जो मुलाकात हुई
बहुत सुंदर गरिमा जी....हर शेर लाजवाब है...
नीरज
बहुत अच्छा लिखा आपने गरिमा जी। इस बेहतरीन गजल के लिए बधाई और इंतजार अगले पोस्ट का।
achha lag raha hai beta tumhe wapis se rang main dekh kar
ab dono mil gaye hain to rang bhi jam jayega
likhte rahna
mujhe hamesha intezaar rahega
वाह... बड़ी प्यारी पुकार है !
behatareen gajal .badhai.
नीरज गोस्वामी जी की मुक्त कण्ठ से कविता/गजल की प्रशँसा बहुत मायने रखती है। मैँ उस प्रशंसा को बहुत अहमियत से देखता हूँ।
जो बतलाने आयेगा
जरूर मान जायेगा।
गिरते शेयर बाजार
को सहारा देते ये
शब्दों के सशक्त शेर।
लौट आओ कि अंधरी ये रात हुई
अब तक खफ़ा हो, ये क्या बात हुई
अच्छे भाव
पहले शेर के लिए कहना चाहुगा की कल तक तो आप ये शेर समीर जी को पोस्ट कर सकती थी मगर आज माहौल बदल गया
वीनस केसरी
बहुत सुन्दर!!
वीनस की बात सुनी..:)
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आपके आत्मिक स्नेह और सतत हौसला अफजाई से लिए बहुत आभार.
क्या खूब संगम रचा है पीडा और सौंदर्य का!
sundar..........!
क्या बात है।!
वाह, बहुत खूब! :)
क्या खूब है
ये कोई बात तो नही कि नाराजगी हो भी तो उसऐ जारी रखा जाय
यूँ ही लिखती रहिये
aree Itne pyar se bulayeg to bhala kyon nahi lautege :-)
New Post :
I don’t want to love you… but I do....
नमस्ते गरिमा जी,
बहुत बड़ीया , शिकार जारी रखे और एक दो अच्छे नस्ल के शेरों का इन्तजार रहेगा.
बकौल सागरजी के :
तुम लगती इतनी प्यारी हो
दिल कहे बहन हमारी हो
लौट आओ कि अंधरी ये रात हुई
अब तक खफ़ा हो, ये क्या बात हुई
GOOD ENOUGH
आज दीपक जी के ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी पढी =यहाँ आया तो सुंदर कविता मिली /कविता या ग़ज़ल जो भी हो भावः की अभिव्यक्ति बहुत सुंदर है ख़ास तौर पर यह कि नहीं आना है तो मत आओ नाराजी कि वजह बतलाओ / यही बात यदि मैं अपने ब्लॉग में लिखता तो यही लिखता कि .आना है तो आओ नहीं तो भाड़ में जाओ
बहुत ही सुंदर .
बधाई
सुंदर है रचना है डाक्टर साहिबा...
बेहतरीन
बधाई स्वीकारें
तीर स्नेह-विश्वास का चलायें,
नफरत-हिंसा को मार गिराएँ।
हर्ष-उमंग के फूटें पटाखे,
विजयादशमी कुछ इस तरह मनाएँ।
बुराई पर अच्छाई की विजय के पावन-पर्व पर हम सब मिल कर अपने भीतर के रावण को मार गिरायें और विजयादशमी को सार्थक बनाएं।
कहो कैसे जिये" गरिमा" तुम्हारे बिना
तुम बिन अन्धेरी ये कायनात हुई
नहीं लौट सकते तो मत आओ
इतना बता दो इस बेरुखी की क्या बात हुई...
Mujhe yah lines bahut achchi lagi,pyar me ek jo dart hota hai
vah man ko khooo jata hai....
Bahut achcha .....
http://dev-poetry.blogspot.com
aapki is rachna par aaj hi nazar gayi. achcha likha hai apne.
दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं /दीवाली आपको मंगलमय हो /सुख समृद्धि की बृद्धि हो /आपके साहित्य सृजन को देश -विदेश के साहित्यकारों द्वारा सराहा जावे /आप साहित्य सृजन की तपश्चर्या कर सरस्वत्याराधन करते रहें /आपकी रचनाएं जन मानस के अन्तकरण को झंकृत करती रहे और उनके अंतर्मन में स्थान बनाती रहें /आपकी काव्य संरचना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय हो ,लोक कल्याण व राष्ट्रहित में हो यही प्रार्थना में ईश्वर से करता हूँ ""पढने लायक कुछ लिख जाओ या लिखने लायक कुछ कर जाओ "" कृपा बनाए रखें /
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