बुधवार, 10 सितंबर 2008

लौट आओ

लौट आओ कि अंधरी ये रात हुई
अब तक खफ़ा हो, ये क्या बात हुई

चुपके से किसी तन्हा सी घड़ी में
याद आती है, थी जो मुलाकात हुई

सालती है दर्द-ए-दिल को ये खा़मोशी
आवाज दो कि अब ये ज़र्द रात हुई

कहो कैसे जिये" गरिमा" तुम्हारे बिना
तुम बिन अन्धेरी ये कायनात हुई

नहीं लौट सकते तो मत आओ
इतना बता दो इस बेरुखी की क्या बात हुई

27 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

चुपके से किसी तन्हा सी घड़ी में
याद आती है, थी जो मुलाकात हुई
बहुत सुंदर गरिमा जी....हर शेर लाजवाब है...
नीरज

Unknown ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा आपने गरिमा जी। इस बेहतरीन गजल के लिए बधाई और इंतजार अगले पोस्ट का।

श्रद्धा जैन ने कहा…

achha lag raha hai beta tumhe wapis se rang main dekh kar
ab dono mil gaye hain to rang bhi jam jayega

likhte rahna
mujhe hamesha intezaar rahega

Abhishek Ojha ने कहा…

वाह... बड़ी प्यारी पुकार है !

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

behatareen gajal .badhai.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

नीरज गोस्वामी जी की मुक्त कण्ठ से कविता/गजल की प्रशँसा बहुत मायने रखती है। मैँ उस प्रशंसा को बहुत अहमियत से देखता हूँ।

बेनामी ने कहा…

जो बतलाने आयेगा
जरूर मान जायेगा।

गिरते शेयर बाजार
को सहारा देते ये
शब्‍दों के सशक्‍त शेर।

वीनस केसरी ने कहा…

लौट आओ कि अंधरी ये रात हुई
अब तक खफ़ा हो, ये क्या बात हुई

अच्छे भाव
पहले शेर के लिए कहना चाहुगा की कल तक तो आप ये शेर समीर जी को पोस्ट कर सकती थी मगर आज माहौल बदल गया

वीनस केसरी

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुन्दर!!

वीनस की बात सुनी..:)

---------
आपके आत्मिक स्नेह और सतत हौसला अफजाई से लिए बहुत आभार.

Smart Indian ने कहा…

क्या खूब संगम रचा है पीडा और सौंदर्य का!

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

sundar..........!

Sanjeet Tripathi ने कहा…

क्या बात है।!

बेनामी ने कहा…

वाह, बहुत खूब! :)

roushan ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
roushan ने कहा…

क्या खूब है
ये कोई बात तो नही कि नाराजगी हो भी तो उसऐ जारी रखा जाय
यूँ ही लिखती रहिये

travel30 ने कहा…

aree Itne pyar se bulayeg to bhala kyon nahi lautege :-)


New Post :
I don’t want to love you… but I do....

Ranjeet ने कहा…

नमस्ते गरिमा जी,
बहुत बड़ीया , शिकार जारी रखे और एक दो अच्छे नस्ल के शेरों का इन्तजार रहेगा.

संतोष अग्रवाल ने कहा…

बकौल सागरजी के :
तुम लगती इतनी प्यारी हो
दिल कहे बहन हमारी हो

Dr. Nazar Mahmood ने कहा…

लौट आओ कि अंधरी ये रात हुई
अब तक खफ़ा हो, ये क्या बात हुई

GOOD ENOUGH

BrijmohanShrivastava ने कहा…

आज दीपक जी के ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी पढी =यहाँ आया तो सुंदर कविता मिली /कविता या ग़ज़ल जो भी हो भावः की अभिव्यक्ति बहुत सुंदर है ख़ास तौर पर यह कि नहीं आना है तो मत आओ नाराजी कि वजह बतलाओ / यही बात यदि मैं अपने ब्लॉग में लिखता तो यही लिखता कि .आना है तो आओ नहीं तो भाड़ में जाओ

बेनामी ने कहा…

बहुत ही सुंदर .
बधाई

अजित वडनेरकर ने कहा…

सुंदर है रचना है डाक्टर साहिबा...

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

बेहतरीन
बधाई स्वीकारें

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

तीर स्नेह-विश्वास का चलायें,
नफरत-हिंसा को मार गिराएँ।
हर्ष-उमंग के फूटें पटाखे,
विजयादशमी कुछ इस तरह मनाएँ।

बुराई पर अच्छाई की विजय के पावन-पर्व पर हम सब मिल कर अपने भीतर के रावण को मार गिरायें और विजयादशमी को सार्थक बनाएं।

Dev ने कहा…

कहो कैसे जिये" गरिमा" तुम्हारे बिना
तुम बिन अन्धेरी ये कायनात हुई

नहीं लौट सकते तो मत आओ
इतना बता दो इस बेरुखी की क्या बात हुई...

Mujhe yah lines bahut achchi lagi,pyar me ek jo dart hota hai
vah man ko khooo jata hai....

Bahut achcha .....

http://dev-poetry.blogspot.com

Manish Kumar ने कहा…

aapki is rachna par aaj hi nazar gayi. achcha likha hai apne.

BrijmohanShrivastava ने कहा…

दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं /दीवाली आपको मंगलमय हो /सुख समृद्धि की बृद्धि हो /आपके साहित्य सृजन को देश -विदेश के साहित्यकारों द्वारा सराहा जावे /आप साहित्य सृजन की तपश्चर्या कर सरस्वत्याराधन करते रहें /आपकी रचनाएं जन मानस के अन्तकरण को झंकृत करती रहे और उनके अंतर्मन में स्थान बनाती रहें /आपकी काव्य संरचना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय हो ,लोक कल्याण व राष्ट्रहित में हो यही प्रार्थना में ईश्वर से करता हूँ ""पढने लायक कुछ लिख जाओ या लिखने लायक कुछ कर जाओ "" कृपा बनाए रखें /