सोमवार, 25 मई 2009

पत्रो वाली दास्तां

यूँ तो अब पत्र लिखने का वक्त नही रहा... मुझे खुद पत्र लिखे कई साल बीत गये... पर यहाँ कुछ सच्ची और काल्पनिक घटनाओं को मिलाकर कुछ लिखने कि कोशिश कर रही हूँ,ना ही पत्र लिखने आता है ना ही कहानी लिखने आता है... और ना ही किसी के व्यक्तिगत पत्र का उल्लेख करना उचित होगा... इसलिये खुद ही गलत सही करते हुए पहले से माफी मांगते हुए इस श्रृंखला को आगे बढ़ाने कि कोशिश कर रही हूँ और फिर लिखूँगी नहीं तो लिखने आयेगा कैसे?
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"मम्मी यह पुराने लिफाफो का पुलिंदा कैसा है? किसके पत्र हैं यह सब?" गुड़िया को एक ब्रीफकेस मे जैसे ही पुलिंदा मिला वह चहकते हुए मम्मी से पुछने लगी।
"यह तुम्हारे पापाजी और मेरे लिखे पत्र हैं।" मम्मी ने प्यार से बताया।
"ओ, वाह!" पहले तो वह चहकी, "पर मम्मी आप दोनो की तो..." गुड़िया पुछते पुछते रूक गयी, तभी अचानक पापाजी कमरे मे आ गये
"हमारा क्या बेटा?" पापा जी ने पुछा। गुड़िया बोली "मेरा मतलब आप दोनो की तो लव मैरिज नही थी, अरैन्ज मैरिज थी ना.. फिर ये पत्र...?"
मम्मी पापा जी हँसने लगे...और एक साथ बोले... "किसने कहा बेटा कि हम पत्र नहीं लिख सकते थे? "ना मेरा मतलब ऐसा नही था", गुडिया थोड़ा झेंपते हुए बोली। कुछ देर रूककर पापा जी बोले "तुम्हे इन पत्रों को पढ़ना चाहिये... तुम समझोगी की ये हमारे लिये कितनी मायने रखती है।"
"मेरे कहने का मतलब ये नही था पापा जी, गुड़िया बोली वैसे तो मै समझ रही हूँ कि ये पत्र बहुत खास हैं आप दोनो के लिये, तभी तो २७ सालो से आपने इनको सम्भाल कर रखा है" वह मुस्कुराती हुए बोली।
मम्मी पापा जी भी मुस्कुरा उठे "अच्छा तो लो पहला पत्र पढ़ो आज... ये तब के है जब मै शादी के कुछ दिनो बाद ही तुम्हारी मम्मी और घरवालो से दूर गरीबी मिटाने का संकल्प लेकर चला गया था...।" पापा जी ने यह बोलकर एक पत्र उसकी तरफ बढ़ा दिया

"जी" और गुड़िया बिना एक सेकेन्ड भी गंवाये पत्र पढ़ने लगी।



प्रिये,
जानता हूँ पत्र लिखने मे बहुत देर हो गयी है... और तुम नाराज हो रही होगी... पर क्या करूँ भारी भरकम शब्द नही आते ना ही शायरी आती है, जिन्हे लिखकर मनाऊँ, बस इतना सा आता है कि तुम नाराज मत होना... समझना... जो कुछ भी हो रहा है, हमारे लिये हो रहा है। तुम जब मेरी जिन्दगी मे आयी तो लगा कि, मै तो अंधकार मे जी ही रहा था, तुमको भी इस अंधकार मे ले आया। अंधकार भी ऐसा कि प्रकाश की किरण दूर दूर तक नज़र नही आ रही है। इसलिये भाग आया ताकि तुमको प्रकाश मे जिन्दा रखने का सामर्थ्य पा सकूँ। यहाँ आकर लग रहा है कि सिर्फ हम ही क्यों? हमारा परिवार भी उसी अंधकार मे जी रहा है, और हमारा यह उद्देश्य बनता है कि हम मिलकर उन्हे भी प्रकाश मे लायें... कहो, सही बोल रहा हूँ ना? मै जानता हूँ कि तुम "हाँ" ही कहोगी और इसलिये मेहनत बढ़ा दी... और सिर्फ इसी वजह से पत्र देने मे देर हो रही है। ज्यादा कुछ नही कहूँगा उम्मीद है कि तुम समझ जाओगी। तुम समझ जाओगी की मै क्या कर रहा हूँ और क्यों?

कहो समझ जाओगी ना?
तुम्हारा
अपना

"ओ ओ... फिर मम्मा आपने क्या जवाब दिया?" गुड़िया ने पुछ ही लिया
मम्मा ने जवाब के तौर पर एक और पत्र गुड़िया को थमा दिया।

प्राणनाथ,
आपका पत्र मिला... पढ़कर अत्यन्त खुशी हुई। मै जान गयी हूँ कि आप जो भी करेंगे अच्छा ही करेंगे, और मै आपके हर कदम पर साथ ही रहूँगी। आपसे नाराज होने का कोई औचित्य नहीं बनता है। आपसे मिलते ही मै आपको समझ गयी थी कि आप गलत नही हो सकते, और अगर कभी गलत हुए भी तो नाराज होकर बैठने से अच्छा होगा कि मै उस विषय पर आपसे बात करूँ। यह हमारा जीवन है, और यह तभी पूर्ण प्रकाश के चादर मे पल सकेगा जब हम दोनो मिलकर कोशिश करें। हमारी मेहनत जरूर रंग लायेगी। है ना? इस सफर मे आप अकेले नहीं हैं, मै भी तो हूँ, आप वहाँ मेहनत करिये और मै यहाँ, और मुझे यकीन है कि एक दिन हम सम्पूर्ण रूप से साथ और सफल होंगे। पर साथ मे मेरा अनुरोध है कि अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखियेगा... आप मेरी बात मानेंगे ना?

आपकी
सिर्फ आपकी


"अच्छा फिर क्या हुआ मम्मी?" गुड़िया ने पुछा
"आगे... हम दोनो अपने अपने कर्मभुमि पर अपना धर्म निभाने मे लग गये। कोई परेशानी भी आती तो उसका समाधान करते किसी से कोई कोई गिला, शिकायत नही... " मम्मी बोलकर चुप हो गयी या शायद यादो मे खो गयीं।
तभी पापा जी बोले "बेटा जब मंजिल तक जाने की ललक हो तो बाधायें नही डराती, पर शर्त यह है कि रास्ते को जीते हुए चलो उसे बोझ समझकर मत चलो... मंजिल से भी बेहतर तुम्हारा सफर होता है, हमेशा याद रखो कि सफर को मौज के साथ पूरा करना चाहिये"
"जी पापा जी", गुड़िया बोली " वैसे फिर दुबारा पत्र कब भेजा आपने?
"बताऊँगा, जरूर बताऊँगा, पर आज नही कल..." पापा जी ने कहा।
"ठीक है पापा जी पर कल पक्का... है ना", गुड़िया बोल पड़ी।
"हाँ, हाँ, एकदम पक्का" मम्मी पापा जी साथ मे बोले... या फिर वो उस पल एक साथ जीने लगे, शायद अपने पत्रो की दुनिया मे... उन्हे एकसाथ एक दुनिया मे देखकर गुड़िया कमरे से बाहर आ गयी... कल के इंतजार मे।

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हम भी कल मिलते हैं...

9 टिप्‍पणियां:

Akhil ने कहा…

वाह गरिमा.. शब्द नहीं मिल रहे की क्या लिखूँ. कितना प्रेम और विश्वास छिपा हुआ है इन पत्रों में ..

अगली कड़ी का इन्तजार है..

सागर नाहर ने कहा…

बहुत सुन्दर पत्र हैं, कितना प्रेम और विश्वास झलकता है इन पत्रों में।
अगली कड़ी का बेसब्री से इन्तजार है।

श्यामल सुमन ने कहा…

पत्रों के माध्यम से आपने गहरी संवेदना की बात कही है और यह भी कहना चाहूँगा कि अच्छा लिखतीं है, प्रवाह भी है। शुभकामना।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

सुन्दर पोस्ट।

Abhishek Ojha ने कहा…

सुन्दर ! अति सुन्दर !

अनिल कान्त ने कहा…

आपने इतना अच्छा लिखा है कि क्या कहूं ...बेहतरीन ...बहुत बहुत बहुत अच्छा लगा

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर ने कहा…

गरिमाjiiiii
Aap ki "पत्रो वाली दास्तां" " padke accha laga..... very good wishes to you .hope to see you writing more and more of this kind
Thank you and god bless you.
PRABHU YEH TERAPATH

सतीश पंचम ने कहा…

ये वो गहन अनुभूति वाले पत्र हैं जिनसे काफी कुछ सीख मिलती है।

डाकिये की गलती से मेरे हाथ एक कैदी का पत्र लगा था। यरवडा जेल का ठप्पा उस चिट्ठी के कोने पर लगा था। चिट्ठी के नीचे उल्टे सीधे लकीरों से फूल और कुछ चित्र वगैरह बनाये गये थे। न चाहते हुए भी मैंने वह पत्र पढा जिसमें एक चाचा अपने भतीजे को लिख रहा था कि अपनी मां-पिताजी का ख्याल रखना । खूब पढना और मुझसे सीख लेना ताकि कभी कोई गलत काम न कर सको नहीं तो मेरी तरह तुरूंग (जेल) में जीवन बिताओगे।


यह वे स्नेहल शब्द हैं जो अपराधी के भीतर से फूटे थे और कुछ अच्छा सोचने को उत्प्रेरित करते थे।

हाथ से लिखी चिट्ठियां पढे काफी दिन हो गये । अब तो मेल और फोन के जमाने में वह सब इतिहास की बातें हो गई हैं।

अच्छी पोस्ट और अलग विषय।

Rashmi Swaroop ने कहा…

wow !!!
really great !
hope youth could understand that form of love.
:)